साम्राज्यवादी आईएमएफ़ के मकड़जाल में पाकिस्तान !

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पाकिस्तान 13,000 करोड़ के कर्ज में हैं। जिसमें सें 900 करोड़ उसे अगले 3 साल में चुकाने हैं। रविवार (29 सितंबर, 2024) को पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 700 करोड़ रुपये के ऋण सौदे की एवज़ में 1,50, 000 सरकारी पदों को समाप्त करने, छह मंत्रालयों को बंद करने और दो अन्य के विलय की घोषणा की।

आईएमएफ ने 26 सितंबर को अंततः सहायता पैकेज को मंजूरी दे दी थी, जब पाकिस्तान ने देश की अर्थव्यवस्था को आईएमएफ की ढांचागत सुधार की शर्तो के अनुसार ढालने का वादा किया। आईएमएफ ने पहली किस्त के रूप में 1 अरब डॉलर से अधिक राशि भी जारी कर दी है।

आईएमएफ द्वारा यह फंड काफी शर्मनाक शर्तों के साथ पाकिस्तान को दिया जा रहा है। जिसमें सरकारी खर्च को कम करने, कृषि और रियल एस्टेट जैसे गैर-परंपरागत क्षेत्रों पर कर लगाने, सब्सिडी को सीमित करने जैसे शर्तें शामिल हैं।

उपरोक्त बदलाव के परिणामस्वरूप कर में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, बिजली की कीमतें तीन गुना बढ़ गईं, दूध की कीमतें आसमान छू रही है, लोगों को अपनी आमदनी का आधे से ज्यादा खाने पर खर्च करना पड़ रहा है, चावल और जूते जैसी आवश्यक वस्तुए मध्यम वर्ग के पहुंच से बाहर हो गई है, लोगों के जिंदगी में आए इस भूचाल से पूरे देश मे विरोध प्रदर्शन की झड़ी लग गई है।

इन सभी समस्याओं की जड़ 1990 की साम्राज्यवादी नीतियां है। जो अमेरिका के अगुवाई मे जी-7 देशों द्वारा बनाई गई है। इसका उद्देश्य तीसरी दुनिया के देशों के अर्थव्यवस्था का ढांचागत सुधार (structural reform) करना है। ढांचागत सुधार का अर्थ है उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण।

इसको क्रियान्वित आईएमएफ, डब्लूटीओ और डब्लूबी करती है। इसी के तहत आईएमएफ जैसे सार्क बैंक तीसरी दुनिया के देशों को कर्ज देकर अपने मकड़ जाल में फंसा लेती है। और एक बार जब कोई देश इस जाल में फंस जाता है, तो फिर पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है। इसका जीता जागता उदाहरण अरब स्प्रिंग, श्रीलंका, बांग्लादेश और अर्जेंटीना आदि है।

यहीं 1990 की साम्राज्यवादी नीतियां भारत ने भी स्वीकार की है। जिसके तहत भारत बहुत तेजी के साथ अपनी अर्थव्यवस्था का ढांचागत सुधार कर रहा है। सरकारी महकमों का निजीकरण, सरकारी नौकरियों का खात्मा, दवाई और शिक्षा पर सब्सिडी में कटौती, महंगाई आसमान छू रही है और कर में बढ़ोतरी करती जा रही है, तो बचा क्या? बचा कर्जा!

सरकार पर जीडीपी का 97 फीसदी का कर्जा है जो 2 करोड़ 47 लाख 89 हज़ार करोड़ रुपए है। आज नहीं तो कल हमारा देश का भी लाज़मी तौर पर श्रीलंका, बांग्लादेश, अर्जेंटीना और पाकिस्तान की तरह दिवालिया होना तय है।

1990 की नीतियों पर सभी पार्टियों की केंद्रीय सरकारें तथा सभी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां दिलो-जान से एकमत है और सिर झुकाकर पूरे मन से इन नीतियों को लागू करती है।

देशवासियों को, खासकर मध्यम वर्ग को, यह खुशफहमी कि “हमारा तो अच्छा चल रहा है, हमें देश से क्या मतलब” जल्द ही चकनाचूर होने वाली है। टूटेंगे सारे भ्रम धीरे-धीरे… इस साम्राज्यवादी मकड़जाल से मुक्ति का एक ही रास्ता है। वह रास्ता संगठन और संघर्ष का रास्ता है।

(सबिता का लेख)

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