फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इजराइल के 75 वर्ष पुराने युद्ध के ताज़ा चरण पर हर चर्चा की शुरुआत हमें इस सवाल के जवाब से करनी पड़ती है – “लेकिन क्या आप हमास की हरकत की निंदा करते हैं?”
कभी-कभी, चूंकि कठोर शब्दों की जरूरत होती है, वह कहते हैं, हमास ने “कायराना” हरकत की, जैसा कि एक टेलीविज़न ऐंकर ने हाल ही में किया, उसने फिलिस्तीनी लेखिका सुज़ेन अब्दुल हवा से जारी “मानवीय संकट” की ज़िम्मेवारी हमास पर डलवाने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। न ही मानवीय संकट जैसे हल्के शब्द को स्वीकार किया और उसे इरादतन नरसंहार करने वाला युद्ध करार दिया।
यह दुर्भावना से भरा सवाल “सेकंडली” (“दूसरी बात”) से शुरू होता है, जैसा कि फिलिस्तीनी कवि मौरीद बरगौती कहते हैं:
“यदि आप लोगों को बेदखल करना चाहते हैं, सरल तरीका है उनकी कहानी “दूसरी बात” से शुरू कीजिए।”
इसे दूसरे तरीके से इतालवी इतिहासकार कार्लो जिंजबर्ग ऐसे बयान करते हैं – इतिहास में, सिनेमा की तरह, हर क्लोज़-अप (या हर स्थिर तस्वीर) एक चल रहे ऑफ-स्क्रीन दृश्य का संकेत देती है।”
फिलिस्तीन पर इजराइली कब्जे को सही ठहराने के लिए, फ्रीज़ फ्रेम, क्लोज़-अप से शुरू और समाप्त करें। ऑफ-स्क्रीन दृश्य को काट दें।
जैसा कि मिस्र के कॉमेडियन और टीवी होस्ट बासेम यूसुफ ने हमास की निंदा करने के लिए दबाव डालने पर जवाब दिया:
“हमास के बिना विश्व की कल्पना कीजिए, दुनिया कैसी दिखेगी? हम इस दुनिया को एक नाम देते हैं और उसे वेस्ट बैंक के नाम से बुलाते हैं। हमास का वेस्ट बैंक पर कोई नियंत्रण नहीं है। यहां, केवल इसी साल अगस्त में, 37 फिलिस्तीनी बच्चों को मार दिया गया। कोई संगीत उत्सव नहीं, कोई पाराग्लाइडिंग नहीं, कोई हमास नहीं। वेस्ट बैंक पर कब्जे के बाद से अब तक, 7000 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं। कोई संगीत उत्सव नहीं, कोई पाराग्लाइडिंग नहीं, कोई हमास नहीं।
दूसरे शब्दों में, फिलिस्तीनीनियों और फिलिस्तीन का समर्थन करने वालों से लगातार फिलिस्तीनी प्रतिरोध की हिंसा की घटनाओं की निंदा करने को कहा जा रहा है, लेकिन किसी को भी रंगभेदी इजराइल की 75 वर्षों से जारी हिंसक गतिविधियों की निंदा के लिए टेलिविज़न स्टूडियो में नहीं बुलाया जाता है।
लेकिन हमास ने 7 अक्तूबर को क्या किया, मुझे, कई फिलिस्तीनियों के शब्दों में, रीफ्रेम करने दीजिए। उसने जेल तोड़ने का काम किया।
चूंकि, मेरे उद्देश्य का एक हिस्सा यहां उन फिलिस्तीनी आवाजों को बुलंद करना है जो भारत में मुख्यधारा का मीडिया नहीं दिखाता, मुझे वेस्ट बैंक में रामल्ला में बसी फिलिस्तीनी अमेरिकी मरियम बरगौती के लेख से उद्धृत करने दीजिए:
“शनिवार, 7 अक्तूबर, की अल सुबह, वेस्ट बैंक के फिलिस्तीनी विस्फोटों की आवाज़ों से जागे।
किसी को पता नहीं था कि वास्तव में क्या हो रहा है, फिर खबरें आने लगीं कि गज़ा के लड़ाकों ने बेत हनौन क्रॉसिंग का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है। यह एकमात्र क्रॉसिंग है जिससे गज़ावासी बहुत ही दुर्लभ मौकों पर ऐतिहासिक फिलिस्तीन के बाकी हिस्से में जा सकते हैं, यदि कब्जाधारक उन्हें ऐसा करने की इजाजत दे तो।
फिर जल्द ही सोशल मीडिया में जानकारी आने लगी कि इजराइल ने गज़ा पट्टी के इर्दगिर्द 23 लाख लोगों को स्थायी रूप से कैद रखने के लिए जो दीवार बना रखी थी, वह तोड़ दी गई है।
और फिर टूटी दीवार की तस्वीरें और फुटेज सामने आई। एक वीडियो में बुलडोजर दीवार को गिराते दिख रहा था, एक फिलिस्तीनी व्यक्ति को जोश में यह कहते सुना जा सकता है, “हां, जाओ! अल्लाहु अकबर! इसे मारो, लड़कों! दीवार गिरा दो!”
यह अविश्वसनीय था। यह सपने जैसा लगा। हम आश्चर्यचकित थे कि यह कैसे संभव है कि गज़ा के लोग जेल तोड़कर बाहर आ गए।
दुनिया में चंद लोग ही होंगे जिन्होंने उस पल हमारी भावनाओं को समझा होगा। शायद राजनीतिक कैदी इसे समझ सकते होंगे।
ऐतिहासिक फिलिस्तीन में बची फिलिस्तीनी आबादी का बड़ा हिस्सा जेल में ही पैदा हुआ है और केवल जेल को ही जानता-पहचानता है। गज़ा को इजराइल की रंगभेदी दीवार से बाकी दुनिया से काट दिया गया है और असहाय बना देने वाली घेरेबंदी कर दी गई है, जिसमें उसका पड़ोसी मिस्र सहर्ष शामिल है।
कब्जे वाले वेस्ट बैंक में, हर फिलिस्तीनी गांव, कस्बे और शहर के सभी प्रवेश और निकासी बिंदुओं पर इजराइली कब्जाधारी ताकतों का नियंत्रण है; फिलिस्तीनियों को, उनकी ज़मीनें चुराने वाले इजराइली सेटलरों के विपरीत- कहीं आने-जाने की कोई आजादी नहीं है..
…जैसा वास्तविक जेल में होता है, सार्वजनिक स्थानों पर कैमरों के जरिए, ड्रोन के जरिए, हमारे फोन टैप कर, घुसपैठियों और जासूसों के नेटवर्क आदि से हम पर चौबीसों घंटे निगरानी रखी जाती है।
और हां, कैदियों की तरह ही, “दुर्व्यवहार” के लिए हमें “दंडित” किया जाता है। गज़ा में सज़ा का मतलब घनी आबादी वाले इलाकों पर अंधाधुंध बमबारी है, जिसकी परिणिति हमेशा नागरिकों की सामूहिक हत्याओं में होती है।
वेस्ट बैंक में, हम हर रात “तलाशी और गिरफ़्तारी-छापों” का सामना करते हैं, जिनमें कब्जाधारक हमारे घरों में घुस आते हैं, डरे-सहमे बच्चों के सामने उनके अपनों पर अत्याचार करते हैं और उन्हें ले जाते हैं (कई बार बच्चों को भी ले जाते हैं) और बिना किसी आरोप के अनिश्चितकालीन अवधि के लिए हिरासत में रखते हैं। इन छापों के दौरान गोली मारकर फिलिस्तीनी नागरिकों की हत्या, आम बात है।
इस संदर्भ में, गज़ा में जेल की दीवार को तोड़े जाने की तस्वीरें और वीडियो देखना मुक्ति का अनुभव देता है। उसकी प्रतीकात्मक ताकत को बयान नहीं किया जा सकता।
बिल्कुल, हमें पता था कि युद्ध उसी पल शुरू हो चुका था जिस पल फिलिस्तीनियों ने गज़ा में अपने इजराइली जेल को तोड़ डाला। अपने सहयोगियों, दोस्तों, से बातचीत, मेरे ग्रुप चैट और फोन वार्ताएं इसी अंधियारी भविष्यवाणी से लबरेज थी: वह हमें मार डालेंगे।”
हम अपने प्रत्यक्ष अनुभव से जानते हैं, इजराइल की प्रतिशोध की नीति के मायने क्या हैं। हम यह भी जानते हैं कि उनकी सेना चाहे जितनी बर्बरता को अंजाम दे, पश्चिम “उनके पक्ष में” जाएगा और “फिलिस्तीनी अपराधों” पर उंगली उठाएगा।
इज़राइल ने गाजा पर पांच युद्ध छेड़े थे, हर बार बड़े पैमाने पर फिलिस्तीनी नागरिकों की हत्या की थी क्योंकि पश्चिमी नेताओं ने हर बार यही कह कर नरसंहार को उचित ठहराया कि “इजरायल को अपनी रक्षा करने का अधिकार है।”
और इस समय भी यही हो रहा है।
हमें इजराइल ने दशकों से बंधक बना रहा है। हम अपनी ही ज़मीन पर पीढ़ियों से कैदी बने हुए हैं। लेकिन इस अक्टूबर, कमजोर बच्चे ने मुक्का मारा है और दादागीरी हिल गई है।
अब जब हमारे उत्पीड़क अंधे गुस्से में अंधाधुंध हत्याएं कर रहे हैं तो उनमें भी यह असुविधाजनक भावना घर बना रही है कि उन्होंने हमें जिस जेल में रखा है, दरक रहा है।”
7 अक्तूबर को क्या हुआ और अब क्या हो रहा है, इस बारे में गज़ा से आई यह टिप्पणी याद रखने लायक है।
फिलिस्तीन को निगलता इजराइल
इसका उल्लेख बार-बार- नहीं किया जा सकता – दुनिया भर से यहूदियों का अपने घर इजराइल में आगमन ऐसी ज़मीन पर नहीं हुआ जो लोगों से खाली थी। वह सदियों से रह रहे फिलिस्तीनियों से जबरन खाली कराई गई। यहूदी बस्तियों द्वारा लगातार फिलिस्तीनी ज़मीनों को निगला जा रहा है और फिलिस्तीनियों को लगातार सिकुड़ते वेस्ट बैंक और गज़ा में धकेला जा रहा है।
फिलिस्तीनी ज़मीन कैसे कब्ज़ाई जाती है? कई रणनीतियों से, सैन्य ताकत से, बंदूकों और बमों से, खासकर गैर लड़ाकू किसान परिवारों से। बेतुके कानूनी आधारों पर फिलिस्तीनी घर तोड़कर, या दंड के रूप में और चूंकि फिलिस्तीनी इजराइल से निर्माण परमिट नहीं ले सकते, कई अचानक बेघर हुए फिलिस्तीनियों को अपनी ज़मीन त्यागनी पड़ती है, जो फिर यहूदी परिवार ले लेते हैं।
इजराइली संसद नेसेट ने 2011 में एक कानून पारित किया जिसके अनुसार फिलिस्तीनियों को अपने घर गिराने का खर्च खुद देना होगा और अब रणनीति है कि फिलिस्तीनियों से अपने घर खुद से ही गिरवाये जाएं, जैसा कि इजराइली अधिकारियों ने पिछले साल की शुरुआत में पूर्वी जेरूसलम के एक कब्जाये इलाके में किया।
1948 तक कोई इजराइल नहीं था। मानचित्रों में फ़िलिस्तीन नामक देश दिखाया गया।
1948 से केवल इजराइल है, और फिलिस्तीनी अपनी ही जमीन पर अतिक्रमणकारी, अपराधी और आतंकवादी हैं। फिलिस्तीनियों को ऊपर बताए तरीकों से लगातार निगला जा रहा है। यही कारण है कि बिरजेट यूनिवर्सिटी यूनियन के बयान में स्पष्ट रूप से कहा गया – “एक कब्जाधारी औपनिवेशक ताकत अपने ही क्रूर नियंत्रण के तहत लोगों के खिलाफ आत्मरक्षा के अधिकार का दावा नहीं कर सकती। उपनिवेशक और उपनिवेशित के बीच कोई नैतिक बराबरी नहीं होती।”
हमास के साथ बंधकों का क्या? इलन पापे, इजराइल में जायनवाद विरोधी यहूदी आवाज, ने हालिया संदर्भ में एक सम्बोधन में कहा कि हमास एकमात्र फिलिस्तीनी समूह के रूप में उभरा है जो वेस्ट बैंक में यहूदी सेटलरों, इजराइली सेना और इजराइली सीमा पुलिस के फिलिस्तीनी ज़िंदगियों और इलाकों पर कभी न रुकने वाले हमलों को रोकने के लिए काम करता है।
पापे ने कहा कि इससे भी महत्वपूर्ण है फिलिस्तीनी राजनीतिक कैदियों (अप्रैल 2022 में इजराइली जेलों में 5000 कैदी थे जो बिना मुकदमे के जेलों में हैं) का मुद्दा जिसे सभी फिलिस्तीनी राजनीतिक विभाजनों से ऊपर उठकर सर्वाधिक जरूरी मानते हैं। (2021 से इजराइली सेना ने 1300 नाबालिगों और 184 महिलाओं समेत लगभग 8000 फिलिस्तीनियों को गिरफ्तार किया है।)
फिलिस्तीनी अधिकारी और पीएलओ इस मुद्दे पर गंभीरता से कुछ कर नहीं पाए हैं, जबकि हमास ने, 7 अक्तूबर से बहुत पहले, घोषणा की थी कि वह राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए इजराइली सैनिकों और नागरिकों को बंधक बनाएंगे। पापे कहते हैं, हमास उसी कार्यक्रम पर काम कर रहा है जिसकी घोषणा उसने पहले की थी।
यह वह “फर्स्टली (“पहली बात”) है जिससे हमें शुरू करना चाहिए। यह जारी, ऑफ-स्क्रीन, काफी समय से चलने वाला दृश्य है, जिसमें 7 अक्तूबर को जेल तोड़े जाने की शुरुआत देखी और जिसके बाद बाकी कैदयों पर बर्बर अत्याचार शुरू हुए।
हमास एक इजरायली रचना के रूप में
दूसरी बात क्या है? कि हमास इजराइल और उसके सहयोगियों की रचना है। हमास को 1988 में गज़ा में पहले इंतिफादा के समय एक चार्टर के साथ लॉन्च किया गया था जो इजरायली राज्य के अस्तित्व की वैधता से इनकार करता था। लेकिन दुनिया भर की साम्राज्यवादी ताकतों के जाने-पहचाने पैटर्न के तौर पर इजराइल लगभग एक दशक तक एक इस्लामी ताकत के उभार का समर्थन करता रहा, फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन के केंद्र यासर इराफ़त की फतेह पार्टी के मुकाबले खड़ा करने के लिए, जो हमास बनी।
फतेह एक सेकुलर, वामपंथी छापेमार अभियान था, जो इस्लामिक दक्षिणपंथी राजनीति के खिलाफ था, और इजराइल उसे मुख्य शत्रु मानता था। सोच यह थी कि हमास फतेह से निबटे और फिर इजराइल हमास से निबटेगा। (यह नीति अमेरिका की तालिबान और अल कायदा के संदर्भ में नीति जैसी ही थी)।
हूसम जुमलोट (यूके के फिलिस्तीन राजदूत) ने सवाल पूछा कि इजराइल पीएलओ से बातचीत क्यों नहीं करेगा जो इजराइल और अहिंसा, अंतर्राष्ट्रीय कानून और प्रस्तावों को मान्यता देता है और इसके बदले में इजराइल को केवल इतना ही करना होगा कि कब्जा हटा ले और अपने औपनिवेशी विस्तार को रोक दे। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय जो जवाबदेही और गारंटियां मुहैया कराने वाला था, केवल इजराइल के बचाव के लिए क्यों मौजूद है?
1993 ओस्लो समझौतों के बाद स्थिति बदली। इजराइल ने औपचारिक रूप से पीएलओ को मान्यता दी और हमास शत्रु हो गया। हमास ने इजराइल को स्वीकार करने से या हिंसा छोड़ने से इनकार कर दिया और जैसा कि ईशान थरूर कहते हैं: संभवतः हमास इजराइली कब्जे के खिलाफ फिलिस्तीनी प्रतिरोध की प्रमुख संस्था बन गया और यही धार्मिक विचारधारा से परे जाकर फिलिस्तीनियों में इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण है।”
2007 में हमास ने गज़ा में चुनाव जीता, यह बात पश्चिम और फतेह दोनों को खली। जैसे ही हमास गज़ा पर शासन करने लगा, इजराइल ने कड़े ब्लॉकेड शुरू किए और गज़ा को दुनिया के सबसे बड़े खुले जेल में बदल दिया।
मीडिया और गलत सूचनाएं
इस बीच, मुख्यधारा का मीडिया जायनवादी दुष्प्रचार के अनुकूल ही है – आपने एक मीम देखा होगा, गज़ा में एक अस्पताल पर इजराइली हमले की न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट का जिसमें एक के बाद एक तीन अलग शीर्षक दिए गए थे। शुरूआत इजराइली “स्ट्राइक” पर जिम्मेवारी के साथ की गई थी और अंत एक अज्ञात “विस्फोट” के साथ।
आप इजराइली रक्षा बलों (आईडीएफ) के वायरल हुए दावे के बारे में भी जानते होंगे कि “महिलाएं, छोटे बच्चे और बूढ़े आईएसआईएस की कार्रवाई में मारे गए थे और हमास बर्बरता की किस हद तक जा सकता है, हम जानते हैं।” लेकिन उसी के साथ आईडीएफ ने इसकी आधिकारिक पुष्टि से औपचारिक तौर पर इनकार किया और एक प्रकाशन से कहा, “हम आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं कर सकते, लेकिन आप मान सकते हैं कि ऐसा हुआ था और रिपोर्ट पर विश्वास कर सकते हैं।”
लेकिन गज़ा सीमा पर बस्तियों पर हमास हमले की सर्वाइवर एक इजराइली महिला, ने एक वाइरल इंटरव्यू में कहा कि इजराइली नागरिक “निसंदेह” इजराइली सेनाओं की अंधाधुंध फ़ायरिंग में मारे जा रहे थे। उन्होंने कहा, “उन्होंने बंधकों समेत हर किसी को मारा।” यासमीन पोरत जो रेव में मौजूद थीं, ने इजराइली रेडियो को और बाद में इजराइली टीवी को भी बताया।
उन्होंने कहा कि इसके पहले, वह और कई अन्य नागरिक जिन्हें हमास ने घंटों बंधक बनाए रखा था, से मानवीय तरीके से व्यवहार किया गया था। उन्होंने कहा, “सौभाग्य से, मेरे साथ वैसा कुछ नहीं हुआ जैसा मैंने मीडिया में सुना।” उन्होंने “मीडिया में क्या सुना था”, बहुत सारी गलत सूचनाएं, अल जज़ीरा के अनुसार, इनमें से अधिकांश भारत में दक्षिणपंथी खातों से निर्मित और फैलाई गईं सामग्री थीं।
स्वाभाविक रूप से, इस महिला को इजराइली मीडिया ने हमास प्रचारक के तौर पर खारिज कर दिया।
फिलिस्तीन के समर्थन में विरोध प्रदर्शनों को दुनिया भर में दबाया गया
हम जानते हैं कि यूके में एसओएएस के छात्रों को फिलिस्तीन से एकजुटता दिखने वाले प्रदर्शन के लिए निलंबित किया गया और एक पूर्व यूके डिप्लोमैट क्रेग मुर्रे को आइसलैंड में फिलिस्तीन और इसके लोगों को समर्थन घोषित करने पर आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत डिटेन किया गया।
भारत में, फिलिस्तीन के समर्थन में कई शहरों में प्रदर्शनों को पुलिस कार्रवाई, हिरासत का सामना करना पड़ा।
उत्तर प्रदेश में, योगी सरकार ने एक मुस्लिम उपदेशक को फेसबुक पर फिलिस्तीन के समर्थन में पोस्ट लगाने पर गिरफ्तार कर लिया। मुख्यमंत्री ने इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष पर “केंद्र के विचारों के विपरीत किसी गतिविधि” के खिलाफ चेतावनी दी। जबकि लोगों को किसी भी विषय पर केंद्र के विचारों के विपरीत राय रखने का अधिकार है, फिर केंद्र ने वास्तव में इस तरह विचार व्यक्त किए कि पश्चिमी एशिया के देशों से बिगाड़ न हो और मानवीय कानून के उल्लंघन और आतंकवाद दोनों की निंदा की (इजराइल और हमास दोनों की तरफ इशारा करते हुए)।
इसके अलावा, विदेश मंत्रालय ने कुछ दिन पहले दोहराया कि भारत संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन की स्थापना का समर्थन करता है। सो, लोगों को जेलों में ठूंसने से पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को बताना होगा कि केंद्र के किस विचार के खिलाफ नहीं जाना है।
यह विरोधाभासी बयान भू-राजनीतिक मजबूरियों का संकेत देता है, पश्चिम एशियाई देशों की भावनाओं और उनसे भारतीय श्रमिकों और निवेशकों को होने वाले लाभों का भी ध्यान रखना है। उसके साथ, जायनवादी और हिन्दुत्व एजेंडा की अनुकूलता भी जग जाहिर है और वर्तमान शासन 2024 चुनाव तक ध्रुवीकरण और इसलामोफोबिया को तीव्र करने की कोशिश कर रहा है। और हां, इजराइल भारत को हथियारों की आपूर्ति करने वाला दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी तो है। सो जायनवादी हिन्दुत्व गठजोड़ फासीवाद के लिए दोनों हाथ में लड्डू जैसी स्थिति है।
इसका क्या अर्थ है कि फिलिस्तीन से एकजुटता दिखाने वालों से दुनिया भर में सरकारें अपराधियों की तरह व्यवहार कर रही हैं, जबकि कई यूरोपीय देशों में इजराइलियों और यहूदियों को खास तौर पर पीड़ित के रूप में चित्रित किया जा रहा है? जायनवाद-विरोध और यहूदी विरोध का मिश्रण जर्मनी में ज्यादा स्पष्ट है उनके ऐतिहासिक अपराधबोध के भार की वजह से, जो उन्होंने आसानी से फिलिस्तीनियों पर डाल दिया है। इस मिश्रण का उल्टा है फिलिस्तीनियों का “आतंकवाद” से मिश्रण।
फ्रैंकफ़र्ट बुक फेयर का फिलिस्तीनी लेखिका अदानिया सिबली के उपन्यास माइनर डीटेल को पुरस्कार रद्द करना। उपन्यास 1949 में एक बदुई लड़की के इजरायली सेना यूनिट द्वारा बलात्कार और हत्या की सच्ची घटना को एक महिला पत्रकार की दशकों बाद रामल्ला में उस अपराध की पड़ताल की काल्पनिक कहानी से मिलाकर लिखा गया है।
एक राजनीतिक समूह की गतिविधियों के लिए एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी लेखक को जिम्मेदार ठहराने का क्या संभावित नैतिक औचित्य हो सकता है?
अगर युद्ध और हिंसा अनिश्चित काल तक चलती है तो किसको सबसे ज्यादा फायदा होगा? अंतर्राष्ट्रीय शस्त्र उद्योग को। यह हथियार बनाने वालों के लिए उछाल का समय है और अमेरिका के लिए गठजोड़ों के नेटवर्क में सैन्य रिश्ते निर्माण करने का, जिसमें भारत भी एक संभावित साझीदार है (भले जूनियर पार्टनर), इंडो पेसिफिक में पांव पसारने के अमेरिका की महत्वकांक्षा में सहायता करने के नाते।
आगे क्या रास्ता है?
उभरते राजनीतिक विन्यासों में दीर्घावधि समाधान क्या है? पारंपरिक एक राज्य समाधान इजराइल ने नामुमकिन बना दिया है, इजराइल के लिए इसकी अपनी सेटलमेंट नीतियों, जो फिलिस्तीनी ज़मीन में घुसपैठ कर चुकी हैं, ने फिलिस्तीन से स्पष्ट रूप से अलग संप्रभु इजराइली राज्य का आधार समाप्त कर चुकी हैं।
द्विराज्यीय समाधान, स्वतंत्र फिलिस्तीन और स्वतंत्र इजराइल, की अब भी कई वकालत करते हैं जिनमें नोआम चोमस्सकी भी शामिल हैं। लेकिन, जैसा की एडवर्ड सैद ने 1999 में कहा था, “जातीय सफाये या ‘सामूहिक स्थानांतरण”, जैसा कि 1948 में हुआ, के अलावा इजराइल के लिए फिलिस्तीनियों से छुटकारा पाने या फिलिस्तीनियों के लिए इजराइलियों को दूर करने का कोई रास्ता नहीं है।”
ऐसे हालात में, जायनवादी कब्जे के खिलाफ फिलिस्तीनी प्रतिरोध में कुछ आवाज़ें, द्विराष्ट्रीय देश फिलिस्तीन-इजराइल या इजराइल-फिलिस्तीन की वकालत करती हैं। इसी तरह के विचार कुछ कब्जा-विरोधी इजराइलियों के भी हैं जिनमें इलन पापे शामिल हैं। इसका मतलब होगा इजराइलियों और फिलिस्तीनियों के लिए एक देश, जहां सभी के लिए समान नागरिक अधिकार हों, जिनमें वह पीढ़ियां भी शामिल हैं जिन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया था। पापे के शब्दों में यह देश “न्याय, सुलह और सहअस्तित्व के सिद्धांतों” के आधार पर बनेगा।”
भविष्य में क्या होगा, इतिहास हमें बताएगा, लेकिन एक बात तय है कि लोगों की आजादी की चाह जिद्दी है, यह फिर-फिर उठेगी।
(निवेदिता मेनन का लेख काफिला ऑनलाइन से साभार। यह लेख दिल्ली में 20 अक्तूबर 2023 को जनहस्तक्षेप की तरफ से “गज़ा में फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इजराइली युद्ध” विषय पर आयोजित पैनल चर्चा में पेश एक प्रस्तुति पर आधारित है।)
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