(सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर और इंदिरा जयसिंह के घर और ठिकानों पर कल सीबीआई ने छापा डाला था। सीबीआई का कहना था कि ऐसा उसने एनजीओ “लायर्स कलेक्टिव” के विदेशी धन के स्रोतों की जांच के सिलसिले में किया था। लेकिन इन छापों को बदले की कार्रवाई माना जा रहा है। जिसकी तमाम संगठनों और व्यक्तियों ने एक स्वर में निंदा की है। खुद इंदिरा जयसिंह ने इसे मानवाधिकार को लेकर अपनी सक्रियता का नतीजा बताया है। इस सिलसिले में ढेर सारी प्रतिक्रियाएं आयी हैं। जनचौक उनमें से कुछ प्रतिक्रियाओं को यहां दे रहा है-संपादक)
नयी दिल्ली। मानवाधिकार संगठन जनहस्तक्षेप ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और उनके पति आनंद ग्रोवर के घर तथा गैरसरकारी संगठन ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ के कार्यालयों पर केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के छापों की कड़ी निंदा करते हुए इसे कानून के राज, सांवैधानिक मूल्यों और आम जनता के हकों के लिये लड़ने वालों के दमन के मोदी सरकार के पिछले पांच बरसों से जारी अभियान की ताजा कड़ी बताया है।
झुग्गीवासियों, मजदूरों, दलितों और आदिवासियों, महिलाओं तथा अन्य दबे-कुचले समुदायों के हकों के लिये लगातार काम करने वाली अधिवक्ता और जनअधिकार कार्यकर्ता श्रीमती जयसिंह एक अरसे से मोदी सरकार के निशाने पर हैं। उन्होंने जज लोया की मौत के मामले की फिर से जांच के लिए उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका के पक्ष में जिरह की थी। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष और मौजूदा केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह समेत सत्ता से जुड़े कई लोग शक के घेरे में हैं।
इसके पहले भी श्रीमती जयसिंह गुजरात सरकार की कई ज्यादतियों के खिलाफ मोर्चा ले चुकी हैं। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ एक महिला के यौन उत्पीड़न के आरोप की जांच की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाये थे।
जनहस्तक्षेप श्रीमती जयसिंह के खिलाफ विदेशी योगदान विनियमन कानून (एफसीआरए) के तहत की गयी सीबीआई की ताजा कार्रवाई को मानवाधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के पक्ष में उठने वाली हर आवाज को खामोश करने की मोदी सरकार की अलोकतांत्रिक और फासीवादी नीति की एक कड़ी के रूप में देखता है।
इंदिरा जयसिंह से पहले भी सरकार शोषितों और वंचितों की आवाज बुलंद करने वाले जीएन साईबाबा, रोना विलसन, सुधीर धवले, सुरेन्द्र गाडलिंग,महेश राउत, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंजालवेस, आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा जैसे अनगिनत जनअधिकार कार्यकर्ताओं को अपनी इस नीति का शिकार बना चुकी है।
जनहस्तक्षेप सरकार से मांग करता है कि वह अपनी फासीवादी और जनविरोधी नीतियों की मुखालफत करने वालों के खिलाफ आपराधिक कानूनों तथा सीबीआई, राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी (एनआईए), खुफिया ब्यूरो (आईबी) और आयकर विभाग जैसी एजेंसियों का गैरवाजिब और विद्वेषपूर्ण इस्तेमाल तुरंत बंकरे। वह देश की विभिन्न जेलों में कैद तमाम क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं की तुरंत रिहाई और उनके खिलाफ सभी फर्जी मामले वापस लिये जाने की भी मांग करता है।
राज्यसभा के सांसदों ने इसकी एक सुर में निंदा की है। और उन्होंने सरकार से तत्काल इस पर रोक लगाने की मांग की है।
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