नई दिल्ली। श्रीनगर में सुरक्षा बलों के जवानों ने डाउनटाउन के कई रिहाइशी इलाकों के घरों पर कब्जा करने की तैयारी शुरू कर दी है। इस सिलसिले में स्थानीय प्रशासन के जरिये कई बाशिंदों के घरों पर दस्तक दी गयी है। बताया जा रहा है कि सीआरपीएफ उनमें अपने कैंप बनाना चाहती है। डाउनटाउन स्थित रैनवारी के तंगबाग इलाके में इस तरह की कई घटनाएं सामने आयी हैं। इस इलाके के कुछ लोगों का कहना है कि पुलिस के अधिकारियों ने इसके लिए तीन बहुमंजिला घरों को चिन्हित किया है। ये सभी डल झील के सघन बसाहट वाले इलाके में स्थित हैं।
हालांकि अर्धसैनिक बलों के पड़ोस में रहने की बात सुनकर लोग चिंतित हो गए हैं। उन्होंने अपने घरों को उन्हें देने से इंकार कर दिया है। उनका आरोप है कि स्थानीय पुलिस उन पर अपना मकान खाली करने का दबाव डाल रही है।
हफिंग्टन पोस्ट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इसको लेकर इलाके के लोग बेहद भयभीत हैं। इस सिलसिले में पोर्टल के रिपोर्टर की कई नागरिकों से बात हुई। उनमें से दो ने उसे बताया कि इलाके के एक मकान मालिक 60 वर्षीय जहूर अहमद ने एसएचओ राशिद अहमद खान पर उनको धमकाने का आरोप लगाया है।
उन्होंने बताया कि “एसएचओ के नेतृत्व में सुरक्षा बलों के जवान दरवाजे को तोड़ कर पहले घर में घुस गए और फिर उन्होंने खिड़कियों को तोड़ दिया।” यह बात उन्होंने 28 सितंबर को हफिंग्टन पोस्ट से बातचीत में कही। “मैंने उन्हें बताया कि मैं यह स्थान आपको किराए पर नहीं दे सकता हूं। यहां मेरा परिवार रहता है।”
उन्होंने बताया कि “वो जबरन घर पर कब्जा करना चाहते हैं। यह बिल्कुल उत्पीड़न है।”
जहूर की पत्नी ने बताया कि खान ने उनसे कहा था कि “ग्राउंड फ्लोर पर आप रहिए और ऊपरी तल को अर्धसैनिक बलों को दे दीजिए।”
अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर उन्होंने बताया कि “वह कैसे मुझसे मकान को किराए पर देने की अपेक्षा कर सकते हैं और वह भी गन लिए जवानों को। जबकि मेरे घर में जवान लड़कियां रहती हैं।”
1990 से ही ढेर सारे सीआरपीएफ कैंप श्रीनगर के विभिन्न इलाकों में स्थापित किए गए हैं। तंगबाग से बिल्कुल सटे दाग मोहल्ला में एक कैंप दशकों से चला आ रहा है। पड़ोस के डाउनटाउन इलाके के हबाकदल में स्थित सीआरपीएफ कैंप अब सीआरपीएफ के जवानों का घर है।
यहां तक कि जम्मू-कश्मीर की पुलिस का कहना है कि रिहाइशी संपत्तियों को अर्धसैनिक बलों के रहने के लिए कब्जा करना अब आम बात हो गयी है। मोदी सरकार द्वारा सूबे के विशेष दर्जे को समाप्त करने के बाद संचालित होने वाले इस कार्यक्रम को लेकर तंगबाग इलाके के लोग बेहद डरे हुए हैं।
इस पूरी कवायद को शुरू करने से पहले केंद्र ने सूबे में सीआरपीएफ के अतिरिक्त जवानों को भेजा था। जिनके लिए बने श्रीनगर की गलियों में नये बंकर देखे जा सकते हैं।
लोगों का कहना है कि फैसले के बाद पुलिस और इलाके के बाशिंदों के बीच होने वाले संघर्ष से लोग परेशान हो गए हैं। इकोनामिक टाइम्स के मुताबिक जम्मू-कश्मीर पुलिस ने रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष को भी कुछ दिनों पहले गिरफ्तार कर लिया है। महिलाओं के लिए यह सोचना ही कि पड़ोस में सुरक्षा बलों के जवान रहेंगे बिल्कुल डरावना है।

लोगों का आरोप है कि पुलिस रात के समय आकर इलाके के लोगों को डराने का काम करती है।
संबंधित घर के बगल में रहने वाली एक महिला ने कहा कि “एसएचओ राशिद खान के नेतृत्व में आये जवान एकाएक मेरे दरवाजे को बूटों से धक्का देने लगे।” अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर उसने बताया कि “हम डर गए थे और किचेन में इकट्ठा हो गए थे। वह हम लोगों को गालियां दे रहा था।”
रैनवारी पुलिस स्टेशन के प्रभारी एसएचओ खान ने दावा किया कि चिन्हित की गयी संपत्तियों को हासिल करने को लेकर पुलिस के पास सहमति पत्र है। उसके मालिकान पहले ही सुरक्षा बलों के रहने को लेकर अपनी सहमति दे चुके हैं। ग्राउंड फोर्सेज के लिए एक टैक्टिकल तैनाती के लिहाज से यह एक अस्थाई व्यवस्था है जिससे उन्हें कवर दिया जा सके।
एचएसओ खान के मुताबिक बहुमंजिला रिहाइशी बिल्डिंग इलाके पर ऊपर से निगाह रखने के लिए जरूरी हो गयी हैं। जिससे जमीन पर तैनात सुरक्षा बल इलाके में होने वाली अवैध गतिविधियों पर न केवल निगाह सकें बल्कि उन पर रोक भी लगा सकें। खान ने कहा कि इसके लिए विभागीय प्रक्रिया का पालन किया जाएगा जिसमें संपत्ति के मालिक से सहमति और उसके बदले उसे किराया देने की बात शामिल है।
श्रीनगर के एसएसपी हसीब मुगल ने इस बात की पुष्टि की कि अर्धसैनिक बलों की कंपनियां अपना कैंप स्थापित करने के लिए स्थान की तलाश कर रही हैं। इसे सिटी ग्रिड के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है जिससे श्रीनगर शहर को कवर करने वाले विभिन्न सुरक्षा बलों के नेटवर्क के तौर पर विकसित किया जाएगा।
सीआरपीएफ की एक कंपनी में 135 सदस्य होते हैं जिसका नेतृत्व एक असिस्टेंट कमांडेंट करता है।
मुगल ने बताया कि महकमे ने रैनवारी के पास स्थित शिव मंदिर के पास एक संपत्ति को चिन्हित किया है उसके साथ ही वहां तीन और घर हैं।

लोग
ों द्वारा एतराज जताए जाने के बावजूद मुगल ने कहा कि पुलिस इस बात को सुनिश्चित करेगी कि हम इसको पूरा करने में सफल हों।
हालांकि उत्पीड़न की बात से इंकार करते हुए मुगल ने इस बात को माना कि लोग सीआरपीएफ कैंप को अपने पड़ोस में स्थापित करने का विरोध कर रहे हैं।
वो केवल उसी एक मुद्दे को लेकर आंदोलनरत हैं कि किसी भी रूप में कैंप उनके पड़ोस में स्थापित नहीं किया जाना चाहिए।
एक दूसरा सौरा
पिछले सप्ताह तक जोगी लैंकर और रैनवारी के बगल में स्थित तंगबाग को जोड़ने वाले जोगी लैंकर पुल को पुलिस ने सील कर दिया था। जबकि तंगबाग और उसके पड़ोस में स्थित चोद्रीबाग तक पहुंचने वाले रास्ते को स्थानीय लोगों ने बैरिकेड के जरिये बंद कर रखा था।
इलाके की इस सीज की तुलना सौरा इलाके में स्थित एक बेहद संघर्षशील क्षेत्र आचार से की जा रही थी। तमाम रिहाइशी घरों की सड़कों से सटी खिड़कियों को मोटे कंबलों या फिर तारपौलीन की शीट से ढंक दिया गया है जिससे सुरक्षा बलों के जवान पत्थर फेंके तो उनका कम से कम नुकसान हो।
बाशिंदों का आरोप है कि सुरक्षा बलों के जवानों ने पड़ोस के चोद्रीबाग स्थित इलाके में लोगों की गाड़ियों को जमकर क्षति पहंचायी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस ने एक पुल से पार्किंग में खड़े एक थ्री ह्वीलर को वहां खड़ी तमाम गाड़ियों पर फेंक दिया जिससे कई गाड़ियों की खिड़कियां टूट गयीं।
एसएसपी मुगल ने इन सभी आरोपों को खारिज कर दिया। उनका कहना था कि यह एक प्रोपोगंडा है जिसे सीआरपीएफ के कैंप को स्थापित करने से रोकने के लिए फैलाया गया है। उन्होंने कहा कि वहां दूसरे आधे दर्जन अफसर हैं अगर बाशिंदों को कोई शिकायत है तो वो उनके पास जा सकते हैं।
हालांकि इलाके के लोगों का कहना है कि पुलिस और सुरक्षा बलों के पास जाने के बारे में सोचना ही बेहद डरावना है।
वो उत्पीड़न के लिए एसएचओ को जिम्मेदार ठहराते हैं। एक सप्ताह पहले के एक मामले का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि कुछ महिलाएं पाबंदियों को ढीला करने का निवेदन लेकर पुलिस स्टेशन गयी थीं लेकिन उनके साथ पुलिस ने हाथापाई कर ली।
तंगबाग की एक महिला ने बताया कि “हम उनसे कुछ रिलीफ देने की गुजारिश करने गए थे लेकिन उन्होंने हमें गालियां दी और हमें पहले भाग जाने के लिए कहा और फिर आंसू गैस के गोले छोड़ने से पहले दस तक की गिनती शुरू कर दी।”
खान ने इन सभी आरोपों को खारिज कर दिया। और उन्हें बिल्कुल आधारहीन करार दिया। उस खास घटना का जिक्र करते हुए खान ने बताया कि उस समय तकरीबन 150 महिलाएं थीं जिन्होंने पत्थर फेंकना शुरू कर दिया था। जिसके बाद उन्हें सुरक्षा बलों द्वारा खदेड़ दिया गया।
चिन्हित किए गए घर के बगल में रहने वाली एक महिला फैयाज गस्सी ने अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि वह अपनी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है।
“मेरे पास दो जवान बेटियां हैं। कुछ सालों पहले मेरे पति गुजर गए। क्या उनके सामने रहने पर हम सुरक्षित महसूस करेंगे? क्या हम अपने सम्मान के बगैर खतरे के आ जा सकेंगे?
उनके पड़ोस में रहने वाली एक दूसरी महिला ने बताया कि “अगर हम अपनी एक खिड़की को खोलेंगे तो सैनिकों को सीधे हमारे कमरे दिखेंगे। अगर हमारे पास जवान लड़कियां हैं तो हम उसकी कैसे इजाजत दे सकते हैं”।