प्रयागराज। प्रयागराज के पवित्र त्रिवेणी संगम पर महाकुंभ मेले का आयोजन शुरू हो चुका है। यह आयोजन भारतीय संस्कृति का प्रतीक और आस्था का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। यहां हर बार की तरह इस बार भी लाखों श्रद्धालु संगम पर स्नान करने और पूजा-अर्चना के लिए जुट रहे हैं।
संगम का अद्भुत दृश्य श्रद्धा और भक्ति से भरा है। जहां एक तरफ नावों की कतारें हैं, तो दूसरी ओर असंख्य तंबुओं का अंतहीन संसार। चारों ओर सुरक्षा व्यवस्था के लिए सतर्क पुलिसकर्मी मौजूद हैं।
लेकिन इस बार महाकुंभ में एक और पहलू देखने को मिल रहा है, जो चर्चा का विषय बन गया है। धार्मिक आयोजन के बीच सत्तारूढ़ दल के नेताओं की बढ़ती आवाजाही, उनके तामझाम, और हर तरफ बड़े-बड़े होर्डिंग्स ने इस आयोजन को नया रूप दे दिया है।

बीजेपी सरकार द्वारा लगाए गए होर्डिंग्स और बैनरों में सरकार की उपलब्धियों और योजनाओं का इतना प्रचार किया गया है कि कई श्रद्धालु इसे धार्मिक आयोजन के बजाय राजनीतिक मंच में बदलने का आरोप लगा रहे हैं।
महाकुंभ को हमेशा से भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा माना गया है। इस आयोजन में करोड़ों लोग गंगा में स्नान कर अपनी आस्था प्रकट करते हैं और भगवान की अराधना करते हैं। लेकिन इस बार आयोजन का स्वरूप बदलता नजर आ रहा है।

कुंभ के चारों ओर सरकार के प्रचार का अभूतपूर्व दृश्य दिखाई देता है। हर तरफ नेताओं की बड़ी तस्वीरें, सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों का महिमामंडन करती होर्डिंग्स ने आयोजन की पवित्रता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि इस आयोजन में इतना पैसा कहां से खर्च किया गया और क्यों? यह पैसा धार्मिक आयोजन के लिए था या राजनीतिक प्रचार के लिए? श्रद्धालु जहां संगम में स्नान और भक्ति में लीन हैं, वहीं इन राजनीतिक गतिविधियों से वे असहज भी हो रहे हैं। कई लोग इसे “डबल इंजन सरकार का इवेंट” कहकर आलोचना कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें कुंभ मेले की होर्डिंग्स पर जगह-जगह दिखाई दे रही हैं। हालांकि अन्य किसी नेता के पोस्टर बहुत कम नजर आते हैं। साधु-संतों और अखाड़ों की राजसी झलक हर ओर बिखरी हुई है।

हाथी, घोड़े, ऊंट और भक्तों के साथ साधु-संतों का आगमन मेले को भव्यता प्रदान कर रहा है। सड़कों पर साधु-संतों के दर्शन के लिए जुटी भीड़ के कारण यातायात बाधित हो रहा है। एक किलोमीटर का रास्ता तय करने में गाड़ियों को घंटों का समय लग रहा है।
महाकुंभ मेले में चंदौली से पहुंचे संजय सिंह कहते हैं, “महाकुंभ जैसे आयोजनों का धार्मिक महत्व किसी से छिपा नहीं है। लेकिन अगर इन आयोजनों का उपयोग केवल राजनीतिक प्रचार के लिए किया जाए, तो यह धर्म और आस्था के साथ खिलवाड़ है”।
“सरकार को चाहिए कि वह श्रद्धालुओं के लिए बुनियादी व्यवस्थाएं बेहतर बनाए, न कि इसे प्रचार का माध्यम। महाकुंभ जैसे आयोजन को केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित रखना चाहिए। श्रद्धालुओं को सुविधाएं देना सरकार का दायित्व है। अगर यह आयोजन केवल बड़े लोगों तक सीमित रहेगा और आम जनता परेशान रहेगी, तो यह धार्मिक आयोजन असली उद्देश्य खो देगा।”
महाकुंभ जैसा आयोजन भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक है, लेकिन इसके साथ राजनीतिक प्रचार का जुड़ाव कहीं न कहीं इसकी पवित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
क्या धार्मिक आयोजनों को राजनीति से जोड़ना उचित है? या फिर आस्था और प्रचार को अलग रखना समय की मांग है? ये ऐसे सवाल हैं जो हर श्रद्धालु के मन में गूंज रहे हैं। धार्मिक आस्था और विश्वास से यहां पहुंचे करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्थाओं का आलम कुछ और ही कहानी बयां करता है।
बुजुर्ग और महिलाओं की मुश्किलें
टेंट में रहने वाले लोगों के लिए स्नान के लिए भी सुविधाएं इतनी दूर हैं कि बुजुर्ग महिलाएं पैदल चलने में असमर्थ हो जाती हैं। कई महिलाएं तो मजबूरी में खुले में सोने को मजबूर हैं। स्नान के लिए आने-जाने में कई किलोमीटर चलना पड़ता है, जिससे थकान और परेशानी और बढ़ जाती है।
श्रद्धालुओं का कहना है कि व्यवस्थाएं केवल दिखावे के लिए हैं। टेंट, शौचालय, और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं दूरदराज में हैं। इन तक पहुंचने के लिए घंटों पैदल चलना पड़ता है। वहीं, VIP श्रद्धालुओं के लिए सभी सुविधाएं गाड़ियों के साथ उपलब्ध हैं।
राघोपुर, सुपौल (मध्य प्रदेश) से आईं इंदिरा देवी बताती हैं, “हम 25 महिलाओं का समूह यहां आया है। हमारे पास कोई साधन नहीं है। हमें खुले आसमान के नीचे ही सोना पड़ रहा है। सारे इंतजाम सिर्फ बड़े लोगों के लिए हैं। गाड़ियां उनके लिए आती हैं, लेकिन हमारे जैसे आम लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं है। टेंट इतनी दूर हैं कि हम वहां तक चल भी नहीं सकते।”

रामदेवी, जो मध्य प्रदेश से आई हैं, कहती हैं, “हमने सुना था कि यहां बहुत बढ़िया व्यवस्था होगी, लेकिन यहां सिर्फ ठंडे आसमान और नमकीन बिस्किट पर गुजारा करना पड़ रहा है। खाने के लिए दूर जाना पड़ता है, इसलिए हम कुछ खा भी नहीं पाते। ठंड में रात गुजारना किसी चुनौती से कम नहीं है।”
दिल्ली की राधा देवी कहती है, “मेले में सुविधाएं भले ही पहले से बेहतर है, लेकिन यहां आने पर पता चलता है कि यह आयोजन धार्मिक कम, राजनीतिक ज्यादा है। सिर्फ मेला ही नहीं, समूचे प्रयागराज में कदम-कदम पर मोदी और योगी के अलावा बीजेपी नेताओं की होर्डिंगें लगाई गई हैं।

नेताओं की गाड़ियों की आवाजाही पर कोई रोक-टोक नहीं है। लग्जरी गाड़ियों से आने-जाने पर अखाड़ों के साधुओं को भी कोई नहीं बोल रहा है। सभी रोक-टोक सिर्फ आम श्रद्धालुओं के लिए है।”
मुंबई से आई सीता पहली बार कुंभ मेले में आई हैं। वे अपने महाराज जी के आश्रम में ठहरी हैं और 14 जनवरी के शाही स्नान के बाद लौटने की योजना बना रही हैं। वहीं, उनकी साथी जया का कहना है कि 12 साल पहले की तुलना में इस बार व्यवस्था बेहतर है।
हालांकि, हर किसी का अनुभव सुखद नहीं है। बिहार के भागलपुर से आईं रजनी, सड़क किनारे प्लास्टिक डालकर रह रही हैं। वे बताती हैं कि गांव से आए 30 लोगों के लिए यहां रहने की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। पुलिस वाले उन्हें हर जगह से हटा देते हैं, और टेंट में रहने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसा नहीं है।

राजस्थान से आई महिलाओं का एक समूह भी ऐसी ही कठिनाइयों का सामना कर रहा है। संगीता बताती हैं कि 25 से ज्यादा महिलाएं गंगा स्नान के लिए आई हैं, लेकिन रहने की व्यवस्था न होने के कारण वे सड़क पर ही समय बिता रही हैं।
हालांकि, इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराना अभी भी एक बड़ी चुनौती है। श्रद्धालुओं की शिकायतें दिखाती हैं कि अभी सुधार की गुंजाइश है। प्रशासन की ओर से व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और कहती है।

आने वाले दिनों में श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़ने की संभावना है। प्रशासनिक टीमों की सक्रियता और व्यवस्थाओं में सुधार की कोशिशें इस मेले को सफल बनाने में मददगार साबित हो सकती हैं। कुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा की जीवंत तस्वीर है।
प्रशासन के लिए चुनौती है महाकुंभ
कुंभ मेले में जुटती भीड़ आस्था की शक्ति का प्रतीक है। त्रिवेणी संगम पर श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन को साक्षी मानकर अपनी मान्यताओं को और अधिक गहरा कर रहे हैं। संगम का किनारा मंत्रोच्चार, भजन और आरती के सुरों से गूंज रहा है।
वहीं, प्रशासन के लिए यह आयोजन चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। संगम क्षेत्र में सफाई और स्वच्छता को बनाए रखना एक बड़ी जिम्मेदारी है। सफाईकर्मी दिन-रात जुटे हैं, लेकिन इतनी विशाल जनसंख्या के कारण यह काम किसी तपस्या से कम नहीं लगता।
श्रद्धालुओं के लिए तंबुओं में ठहरने, खाने-पीने और जरूरी सुविधाओं की व्यवस्था की गई है। लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर लोग, जिनके पास टेंट में रुकने का साधन नहीं है, वे सड़क किनारे अस्थायी ठिकाने बनाकर रह रहे हैं। यह स्थिति प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े करती है।

अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संत अपने अनुयायियों के साथ भव्य जुलूस में कुंभ मेले में प्रवेश कर रहे हैं। इन जुलूसों में हाथी, घोड़े, ऊंट, झंडे और नाच-गाने का माहौल दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। साधु-संतों के साथ भक्तों का उत्साह देखने लायक है। साधुओं के पास पहुंचे श्रद्धालु उनसे आशीर्वाद लेने और उनके प्रवचनों को सुनने के लिए घंटों इंतजार कर रहे हैं। हर तरफ आस्था का सागर उमड़ता दिख रहा है।
13 जनवरी से शुरू हुए इस महाकुंभ मेले का महत्व केवल आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशासनिक क्षमता का बड़ा इम्तिहान भी माना जा रहा है। 26 फरवरी, महाशिवरात्रि के दिन, मेले का समापन होगा। सरकार का दावा है कि इस बार कुंभ में 40 करोड़ लोगों की भागीदारी होगी।
महीनों से तैयार योजनाओं का इस मेले में परीक्षण हो रहा है। हर तरफ संगम की ओर जाते श्रद्धालु, सुरक्षाकर्मी और सफाईकर्मी नजर आ रहे हैं। जगह-जगह बैरिकेडिंग के साथ कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। वज्रवाहन, ड्रोन, बम निरोधक दस्ते और एनएसजी को भी तैनात किया गया है।
व्यवस्था श्रद्धालुओं के लिए नाकाफी
प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेला, जो आस्था और श्रद्धा का सबसे बड़ा केंद्र है, को साफ-सुथरा और स्वच्छ बनाए रखने के लिए सरकार ने बड़े-बड़े दावे किए हैं। करीब 4,000 हेक्टेयर में फैले कुंभ क्षेत्र को 25 सेक्टरों में बांटकर पूरी व्यवस्था सुनिश्चित करने की योजना बनाई गई है। इस भव्य आयोजन के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये का बजट तय किया है, जिसमें डेढ़ लाख शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया है।

सरकार ने मेला क्षेत्र को ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषित करने और सफाई को लेकर व्यापक इंतजाम किए हैं। 52,000 सामुदायिक शौचालय, 53,000 टेंटों में शौचालय, और पार्किंग व सड़कों पर 14,000 से अधिक शौचालयों के साथ-साथ 20,000 से अधिक सार्वजनिक मूत्रालय बनाए गए हैं।
इन शौचालयों की सफाई और मॉनिटरिंग के लिए 9,800 स्वच्छता कर्मी, 1,800 वॉलंटियर्स, और अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। डस्टबिन और टिपर-हॉपर ट्रक, ऐप्स, क्यूआर कोड और कंट्रोल रूम जैसी सुविधाओं के माध्यम से साफ-सफाई की निगरानी का भी दावा किया गया है।
इन तमाम दावों के बावजूद श्रद्धालुओं की संख्या के अनुपात में यह व्यवस्था नाकाफी साबित हो रही है। लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शौचालयों और स्वच्छता की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। सामुदायिक शौचालयों की संख्या भले ही अधिक हो, लेकिन उनकी साफ-सफाई को लेकर शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं।

शौचालयों के बाहर लगाए गए क्यूआर कोड और ऐप के जरिए शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया केवल दिखावे के लिए है। शिकायतें दर्ज होने के बावजूद, त्वरित समाधान की कोई व्यवस्था नहीं है। श्रद्धालुओं को गंदे शौचालयों के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सेप्टिक टैंक और शॉकपिट पर आधारित शौचालयों की सफाई समय पर नहीं हो रही, जिससे दुर्गंध और असुविधा फैल रही है।
हालांकि सरकार ने हर 25 मीटर पर डस्टबिन रखने और हर दिन तीन बार उन्हें साफ करने का दावा किया है, लेकिन कई जगहों पर डस्टबिन भरकर ओवरफ्लो हो रहे हैं। सफाईकर्मी और वॉलंटियर्स की संख्या भी विशाल कुंभ क्षेत्र में पूरी व्यवस्था संभालने के लिए अपर्याप्त साबित हो रही है।
दावे और हकीकत में बड़ा फर्क
श्रद्धालु सवाल कर रहे हैं कि इतने बड़े बजट और योजनाओं के बावजूद मूलभूत सुविधाओं में कमी क्यों है? सफाई व्यवस्था और शौचालयों की निगरानी के लिए जो तकनीक और व्यवस्था लागू की गई है, वह प्रभावी क्यों नहीं हो रही? महाकुंभ जैसे भव्य आयोजन में सरकार के दावों और जमीनी हकीकत में बड़ा फर्क देखने को मिल रहा है।
श्रद्धालुओं की उम्मीदें और उनकी संख्या को ध्यान में रखते हुए, व्यवस्थाओं में सुधार की तत्काल आवश्यकता है, ताकि कुंभ मेले की पवित्रता और उसकी भव्यता पर कोई आंच न आए।
संगम पर उमड़ती आस्था और चुनौतियां
त्रिवेणी संगम पर उमड़ती आस्था का दृश्य किसी चमत्कार से कम नहीं है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर लाखों श्रद्धालु जुटे हैं, जो इस पवित्र स्थान को अपनी धार्मिक मान्यताओं और आत्मिक शांति का केंद्र मानते हैं। संगम का किनारा मंत्रोच्चार, आरती और भजनों से गूंज रहा है, जो इस वातावरण को दिव्यता से भर देता है।

हालांकि, इतनी विशाल भीड़ के बीच इस आयोजन को सुचारू रूप से चलाना प्रशासन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। संगम क्षेत्र की सफाई और स्वच्छता बनाए रखना एक बड़ा कार्य है। श्रद्धालुओं के लिए तंबुओं में ठहरने, भोजन और अन्य आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था की गई है।
लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए ये व्यवस्थाएं काफी महंगी साबित हो रही हैं। ऐसे लोग सड़क किनारे अस्थायी शेल्टर बनाकर अपनी रातें गुजारने को मजबूर हैं। यह स्थिति प्रशासनिक व्यवस्थाओं की कमी को उजागर करती है।
कुंभ का यह आयोजन सिर्फ आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, सहिष्णुता और सहयोग की मिसाल है। लाखों लोग यहां न केवल गंगा स्नान करने और पूजा-अर्चना करने आते हैं, बल्कि इस अद्भुत आयोजन के हिस्से बनकर आध्यात्मिक शांति भी अनुभव करते हैं। बड़ी संख्या में लोगों की जरूरतें पूरी करना और व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चलाना प्रशासन के लिए हमेशा एक कठिन कार्य होता है।
हालांकि, सरकार की तरफ से व्यवस्थाओं को लेकर बड़े दावे किए गए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अभी भी सुधार की आवश्यकता को दिखाती है।

आने वाले दिनों में मेले में श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़ने की संभावना है। प्रशासनिक टीमें पूरी कोशिश कर रही हैं कि व्यवस्थाएं बेहतर हों। यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि भारतीय परंपरा और संस्कृति की एक जीवंत झलक भी प्रस्तुत करता है।
इसके अलावा शहर में दर्जनों लग्जरी होटल हैं। कुंभ को देखते हुए होटलों का किराया आसमान छू रहा है। जो होटल आम दिनों में दो हजार का मिलता था, वो आज की तारीख में दस-दस हजार से कम नहीं मिल रहा है।
सिर्फ लग्जरी होटल ही नहीं, बल्कि छोटे गेस्ट हाउस और धर्मशालाओं के किराए में भी भारी बढ़ोतरी हुई है। जहां पहले सौ से पांच सौ रुपये में रुकने की सुविधा मिलती थी, वहीं अब यही किराया दो से तीन गुना बढ़ चुका है। स्थानीय लोग भी इस मौके का लाभ उठाने से नहीं चूक रहे। कई घरों के मालिकों ने अपने अतिरिक्त कमरे श्रद्धालुओं के लिए किराए पर उपलब्ध कराए हैं।

हालांकि, इतना अधिक किराया गरीब और मध्यम वर्गीय श्रद्धालुओं के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। अधिकांश श्रद्धालु, जिनके पास इतने पैसे नहीं हैं, सड़क किनारे, पार्कों और खुले मैदानों में तंबू लगाकर या अस्थायी शेल्टर बनाकर रह रहे हैं। ठंड के इस मौसम में खुले में रहने वाले लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
प्रशासन का दावा और वास्तविकता
प्रशासन ने श्रद्धालुओं के लिए उचित आवास और सुविधाएं उपलब्ध कराने के बड़े-बड़े दावे किए थे। लेकिन सच्चाई यह है कि बड़ी संख्या में लोग अब भी उचित सुविधाओं से वंचित हैं। कई जगहों पर पानी, शौचालय और बिजली की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। प्रशासन हालांकि लगातार सुधार की कोशिश कर रहा है और अस्थायी कैंपों और सामुदायिक शौचालयों की संख्या बढ़ाई जा रही है।
कुंभ मेले ने न केवल शहर की अर्थव्यवस्था को गति दी है, बल्कि स्थानीय व्यापारियों के लिए भी यह सुनहरा अवसर बन गया है।
होटल मालिक, रेस्तरां संचालक, ऑटो और टैक्सी चालक, और यहां तक कि छोटे दुकानदार भी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। संगम क्षेत्र और मेले के आसपास लगी अस्थायी दुकानों पर पूजा सामग्री, धार्मिक वस्त्र, गहने और खाने-पीने की चीजों की बिक्री जोरों पर है।
कुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक ऐसा उत्सव है, जो समाज के विभिन्न वर्गों को एक मंच पर लाता है। यहां न केवल देश के कोने-कोने से, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु आ रहे हैं, जो भारतीय आस्था और संस्कृति के इस विराट स्वरूप को नजदीक से अनुभव करना चाहते हैं।
कुंभ का यह अद्भुत आयोजन आस्था, प्रशासन और मानवता की परीक्षा का संगम है, जहां उत्साह और कठिनाइयों का एक अनूठा संतुलन देखने को मिल रहा है।
(आराधना पांडेय स्वतंत्र पत्रकार हैं। प्रयागराज से ग्राउंड रिपोर्ट)
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