चौतरफा दबाव के बाद प्रेस कौंसिल ने अपना पक्ष वापस लिया, कहा- कोर्ट में करेंगे प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन

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नई दिल्ली। चौतरफा विरोध, जगहंसाई और आलोचना के बाद आखिरकार प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया यानी पीसीआई ने कश्मीर पर अपना रुख बदल लिया है। सुप्रीम कोर्ट में अनुराधा भसीन की ओर से कश्मीर में मीडिया की पाबंदी के खिलाफ दायर एक याचिका में कौंसिल ने सरकार का पक्ष लिया था और घाटी में पाबंदी को जायज ठहराया था। लेकिन अब उसने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि उसका यह पक्ष नहीं है। कौंसिल ने अपने सदस्यों को इस बात का भरोसा दिलाया है कि वह कोर्ट में प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन करेगी। गौरतलब है कि यह मामला कल चीफ जस्टिस के सामने पेश होना है।

पीसीआई के सचिव अनुपम भटनागर ने इससे संबंधित पत्र भी सुप्रीम कोर्ट को भेज दिया है। जिसमें साफ-साफ कहा गया है कि कश्मीर टाइम्स की इक्जीक्यूटिव एडिटर अनुराधा भसीन की याचिका में कौंसिल प्रेस की स्वतंत्रता के पक्ष में खड़ी होगी।

इसके साथ ही उसमें बताया गया है कि कौंसिल ने जम्मू-कश्मीर में मीडिया की परिस्थितियों के अध्ययन के लिए एक सब कमेटी का गठन किया है। इन परिस्थितियों में इस बात को साफ किया जाता है कि अगर कोर्ट में पूछा जाता है तो कौंसिल कहेगी कि वह प्रेस की स्वतंत्रता के पक्ष में खड़ी है और मीडिया पर किसी भी तरह की पाबंदी को इजाजत नहीं देती है।

इसके साथ ही कौंसिल ने कहा है कि सब कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद वह विस्तार से याचिका का जवाब देगी।

इसके पहले आज प्रेस क्लब में कौंसिल के पुराने रुख के खिलाफ सभा हुई। इसमें सर्वसम्मति से कौंसिल के प्रेस विरोधी रवैये के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में कश्मीर में घाटी में मीडिया कर्मियों की गिरफ्तारी और उनके दमन की कड़े शब्दों में भर्त्सना की गयी। इसके साथ ही दौरे पर गयी दिल्ली की मीडिया की टीम के साथ सुरक्षा बलों के दुर्व्यवहार की भी निंदा की गयी।

इस प्रस्ताव में कहा गया है कि प्रेस कौंसिल के चेयरमैन के एकतरफा तरीके से कश्मीर में मीडिया पाबंदी के सरकार के फैसले के पक्ष में खड़े होने का एकमत से विऱोध किया जाता है। साथ ही वह पीसीआई के नियमों के खिलाफ भी है क्योंकि उसे पूरी कौंसिल की सहमति नहीं प्राप्त है। और प्रेस कौंसिल के चेयरमैन को तत्काल कोर्ट से अपने हस्तक्षेप को वापस लेना चाहिए और परिषद की पूरी बैठक बुलाकर इस मसले पर उन्हें विचार करना चाहिए।

इस मौके पर हुई सभा में वक्ताओं ने इन्टरनेट और टेलीफोन सुविधा पर रोक के चलते जम्मू कश्मीर में समाचार पत्रों और टीवी चैनलों के न चलने पर चिन्ता जाहिर की। पत्रकारों ने कहा कि ऐसा आजाद भारत में पहली बार हुआ है बीते  पांच अगस्त से जम्मू कश्मीर से एक भी समाचार किसी न्यूज एजेंसी के पास नहीं आ सका है। वहां अखबारों के न छपने के चलते जम्मू कश्मीर और लद्दाख सूचनाओं के स्तर पर पूरे देश और दुनिया से कट गया है।

देश को भी यह नहीं मालूम कि वहां क्या हो रहा है। सरकार जो सूचनाएं दे रही है वह सूचनाएं भ्रामक हैं। वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने कहा कि इमरजेंसी में भी अख़बार के छापने पर प्रतिबंध नहीं था। वक्ताओं ने सवाल किया कि जब सब कुछ वहां ठीक है तो पत्रकारों को वहां जाने क्यों नहीं दिया जा रहा है। प्रेम शंकर झा और हरतोष बल ने भी अपनी बातें रखीं। जम्मू कश्मीर में मीडिया की आजादी पर रोक विषय पर परिचर्चा का आयोजन एडिटर्स गिल्ड, प्रेस एसोसिएशन, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन प्रेस कॉर्प ने संयुक्त रूप से किया। प्रेस असोसिएशन के अध्यक्ष जयशंकर गुप्त ने सभा की अध्यक्षता की।

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