अभी 26 नवम्बर को पूरे देश में संविधान दिवस पूरे जोश के साथ मनाया गया। भाजपा नेतृत्व की सरकार द्वारा शुरू किए गए इस दिवस पर सभी ने संविधान की रक्षा की शपथ ली। इसी दिन उत्तर प्रदेश में संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए योगी सरकार ने यूपी पावर कार्पोरेशन के दो प्रमुख निगम पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों जिनमें क्रमशः 1 करोड़ व 62 लाख उपभेक्ता हैं, को निजी कम्पनियों को देने का फैसला किया है।
इस फैसले को लागू करते समय ही अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन लिमिटेड डॉ. आशीष कुमार गोयल ने संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंधन करते हुए कर्मचारियों द्वारा इस निजीकरण के विरूद्ध आवाज उठाने तक पर रोक लगाने का काम किया है। 26 नवम्बर 2024 को ही प्रदेश के सभी आला अधिकारियों व जिलों के डीएम, एसपी, पुलिस आयुक्त आदि को जारी अपने आदेश में कर्मचारी नेताओं की सूची बनाने, उन पर निगाह रखने और किसी भी विरोध से सख्ती से निपटने के लिए कहा गया है।
सभी लोग जानते हैं कि संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत के हर व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित किया जाएगा। संविधान के अनुच्छेद 21 में जिस जीवन को जीने के अधिकार का उल्लेख किया जाता है, उसके बारे में सुप्रीम कोर्ट के तमाम निर्णयों में गरिमापूर्ण जीवन को देना राज्य का प्रमुख कर्तव्य माना गया है। कोई भी व्यक्ति गरिमापूर्ण जीवन तभी जी सकता है जब राज्य उसके शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, बिजली, पानी, सड़क आदि जीवन के लिए जरूरी सुविधाओं को सुनिश्चित करें।
1991 के बाद लागू नई आर्थिक औद्योगिक नीतियों में पूंजी पर राज्य का नियंत्रण खत्म कर दिया गया और राज्य कल्याणकारी नीति से पीछे हट गया। शिक्षा-स्वास्थ्य निजी क्षेत्र के हवाले हो गया। रोजगार का संकट भयावह है। सड़के एक्सप्रेस वे के नाम पर निजी कंपनियों के हाथों में चली गई और इन पर यात्रा करने में अतिरिक्त पैसे की वसूली होने लगी। पूरे देश में पेयजल की व्यवस्था को जल जीवन मिशन के नाम पर अदानी के हवाले कर दिया गया है।
ऊर्जा क्षेत्र भी निजी एकाधिकार पूंजीपतियों के लिए दिया जा रहा है। हाल ही में अमेरिकन न्याय विभाग द्वारा जिस मामले में अदानी को सम्मन और वारंट जारी हुआ है वह भी सोलर एनर्जी से जुड़ा हुआ मामला है। पूरी दुनिया ने इस बात को देखा कि कैसे अदानी ने रिश्वत देकर अपनी कम्पनी की वैल्यू बढ़ाई और इस भ्रष्ट आधार पर अमेरिकन निवेशकों को अपने यहां निवेश करने के लिए आमंत्रित किया।
उत्तर प्रदेश सरकार पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को 3 भाग में और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को 2 भाग में बांटकर निजी क्षेत्र को देने जा रही है। सरकार का तर्क है कि बिजली विभाग में बढ़ रहे घाटे के कारण ऐसा करना जरूरी हो गया। क्योंकि सरकार को लगातार अतिरिक्त सब्सिडी विद्युत वितरण निगम को देनी पड़ रही है, जो बजट पर अतिरिक्त भार है। जिसकी सच्चाई यह है कि इस समय पावर कार्पोरेशन का कुल घाटा 1 लाख 18 हजार करोड़ है जबकि बकाया 2023-24 के अनुसार 1 लाख 15 हजार करोड़ रुपए है।
सरकार के विभिन्न डिस्काम में बकाया इस प्रकार है- दक्षिणांचल 24947 करोड़, पूर्वांचल 40962, मध्यांचल 30031 करोड़, पश्चिमांचल 16017, केस्को कानपुर 3866 करोड़, कुल बकाया 115825 करोड़ रुपए का है। जो इस वित्तीय वर्ष में तो और भी ज्यादा हो जायेगा। विद्युत उपभोक्ता परिषद् के अनुसार इसमें बड़ा बकाया सरकार और बड़े कारोबारियों के हैं। यदि सरकार अपना बकाया दे दें और बड़े कारोबारियों से कड़ाई से वसूली करें तो पावर कार्पोरेशन मुनाफे में आ जायेगा।
सरकार द्वारा विद्युत घाटे के कारण बजट पर अतिरिक्त बोझ की बात भी सही नहीं है। इस वर्ष सरकार ने 46130 करोड़ रुपए कार्पोरेशन को दिया है जिसमें 20 हजार करोड़ रुपया सब्सिडी का है। जिसे विद्युत कानून 2003 के तहत देना सरकार की सामाजिक जिम्मेदारी है। इतना ही नहीं प्रदेश में उलटी अर्थव्यवस्था चलाई जा रही है। प्रदेश में 1 रुपए प्रति यूनिट में जल विद्युत गृह, 4.28 रुपए में तापीय परियोजनाओं, 4.78 रुपए प्रति यूनिट एनटीपीसी में बिजली का उत्पादन होता है। इन संस्थानों में थर्मल बैकिंग करा कर यानी उत्पादन रोक कर शार्ट टर्म एग्रीमेंट के नाम पर निजी क्षेत्र से 7.50 रुपए से लेकर 19 रुपए प्रति यूनिट तक बिजली की खरीद होती है। विद्युत विभाग के घाटे का एक बड़ा कारण कारपोरेट मुनाफे की यह नीति भी है।
विद्युत विभाग के आला अधिकारियों का अखबार में दिया गया यह बयान कि इस निजीकरण में उपभोक्ताओं, बिजली कर्मचारियों और स्टेक होल्डरों के सभी हित सुरक्षित रहेंगे, आंखों में धूल झोकना है। देश में जहां भी निजी क्षेत्र बिजली दे रहा है वहां महंगी बिजली खरीदने के लिए उपभोक्ताओं को मजबूर होना पड़ा है।
मुंबई में टाटा पावर द्वारा दी जा रही बिजली का रेट 1 अप्रैल 2024 के अनुसार 100 यूनिट तक 5.33 रुपए, 101 से 300 यूनिट तक 8.51 रुपए, 301 से 500 यूनिट तक 14.77 रुपए और 500 यूनिट से ज्यादा पर 15.71 रूपए है। जबकि उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन में 100 यूनिट तक 3.35 रुपए, 101 से 150 यूनिट तक 3.85 रुपए, 151 से 300 यूनिट तक 5.50 रुपए, 300 से ज्यादा यूनिट पर 5.50 रुपए है। यहीं नहीं टाटा पावर द्वारा मुंबई में बिजली की फैक्सी टैरिफ व्यवस्था है यानी अलग-अलग समयों के लिए बिजली के भिन्न-भिन्न रेट हैं।
जहां तक कर्मचारियों के हितों की बात है। इस समय पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में 7 मुख्य अभियंता स्तर एक, 25 मुख्य अभियंता द्वितीय, 109 अधीक्षण अभियंता, 362 अधिशासी अभियंता, 1061 सहायक अभियंता, 2154 अवर अभियंता, 23818 तकनीशियन, लिपिक व अन्य कर्मचारी है। इसके अलावा करीब 50 हजार संविदा कर्मी है। इसमें से संविदा श्रमिकों पर इसकी मार सबसे ज्यादा पड़ेगी।
दिल्ली और ओडिशा में हुए निजीकरण के प्रयोग में कार्यरत सभी संविदा कर्मियों को काम से हाथ धोना पड़ा है। सरकार ने खुद कर्मचारियों को तीन प्रस्ताव दिए हैं। पहला उसी स्थान पर बने रहें, दूसरा अन्य डिस्काम में चले जाए और तीसरा आकर्षक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) स्वीकार कर लें। इन विकल्पों से ही साफ है कि कर्मचारियों के हित बुरी तरह प्रभावित होंगे।
सरकार ने यह भी कहा कि निजीकरण से लाइन हानियों को कंट्रोल किया जायेगा। देश में निजी क्षेत्र द्वारा दी जा रही बिजली में लाइन हानियां ज्यादा है। एक रिपोर्ट के अनुसार उडीसा में रिलांयस द्वारा 2015 तक दी गई बिजली में 47 प्रतिशत लाइन हानि थी। 2020 से वहां टाटा पावर द्वारा दी जा रही बिजली में सदर्न एरिया में 31.3 प्रतिशत, वेस्र्टन एरिया में 20.5 प्रतिशत और सेन्ट्रल एरिया में 22.6 प्रतिशत बिजली हानि है। जबकि यूपी पावर कार्पोरेशन में कुल लाइन हानि महज 19 प्रतिशत ही है।
दरअसल निजीकरण के जरिए सरकार सार्वजनिक सम्पत्ति की लूट को भी अंजाम दे रही है। बिजली कर्मियों के अनुसार पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत निगम में पुनर्विकसित वितरण क्षेत्र सुधार योजना (आरडीएसएस) में 42968 करोड़ रुपए के सरकारी काम चल रहे हैं। साथ ही बिजनेस प्लान के तहत पूर्वांचल में 1204 करोड़ रुपए और दक्षिणांचल में 1190 करोड़ रुपए के काम चल रहे है। इतनी बड़ी सरकारी खजाने में जमा जनता की धनराशि को मुफ्त में निजी क्षेत्र को दे दिया जायेगा।
इस तरह की लूट नई नहीं है। 2010 में मायावती सरकार द्वारा आगरा के बिजली वितरण को गुजरात की टोरंट पावर को देने में सैकड़ों करोड़ रूपए के सरकार को घाटे की बात सीएजी रिपोर्ट में प्रमाणित हुई थी। सरकार के अनुसार 51 प्रतिशत शेयर निजी कम्पनी के होंगे और प्रबंध निदेशक उनका ही होगा। तो स्वभाविक रूप से डिस्काम पर नियंत्रण निजी कम्पनी का होगा।
वैसे देखें तो देश में भाजपा की सरकार जब-जब आती है तो बिजली क्षेत्र का निजीकरण तेज हो जाता है। सबको याद होगा ही कि 13 दिन की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने एनरॉन के साथ बिजली का समझौता किया था जहां बिना बिजली दिए हुए ही महाराष्ट्र सरकार को करोड़ों रुपए देने पड़े थे और जिसे बाद में रद्द किया गया।
उत्तर प्रदेश बिजली बोर्ड का बंटवारा भी भाजपा राज में ही हुआ। बिजली के निजीकरण और कॉर्पोरेट मुनाफे का रास्ता खोलने वाला विद्युत कानून 2003 भाजपा राज में आया। अब मोदी सरकार विद्युत संशोधन विधेयक 2022 लेकर आई है। जिसमें सब्सिडी और क्रास सब्सिडी की व्यवस्था खत्म कर दी गई यानी किसानों को जो अभी सिंचाई व कृषि कार्य के लिए सस्ती बिजली मिलती थी वह भी उनसे छीन ली जाएगी। हालत यह हो जायेगी कि 7.5 हार्सपावर के सिंचाई कनेक्शन पर किसानों को 10000 रुपए प्रति माह देने होंगे। जो संकटग्रस्त खेती को बुरी तरह प्रभावित करेगा।
निजीकरण के इस फैसले के अमल के लिए ही प्रदेश में इसके विरोध की प्रबल ताकत कर्मचारी आंदोलन को योगी सरकार ने कुचलने का काम किया। दिसम्बर 2022 और मार्च 2023 में चले बिजली कर्मचारियों के आंदोलन पर दमन ढाया गया। मार्च 2023 में कर्मचारियों के आंदोलन में तमाम नेताओं के ऊपर एफआईआर दर्ज की गई, उनके वेतन और पेंशन से कटौतियां की गई, कई को सस्पेंड कर दिया गया और 4000 के करीब संविदा श्रमिकों को काम से निकाल दिया गया। बावजूद इसके कर्मचारी प्रदेश की जनता के हित में निजीकरण का विरोध कर रहे है।
प्रदेश में बिजली कर्मचारियों के द्वारा आगामी 4 और 10 दिसंबर को क्रमशः वाराणसी और आगरा में जन पंचायत आयोजित की जा रही है। जिसमें उन्होंने सभी संगठनों व नागरिक समाज से सहयोग मांगा है। उम्मीद है कि बिजली के निजीकरण का सवाल आने वाले समय में उत्तर प्रदेश में एक बड़े राजनीतिक आंदोलन का केंद्र बनेगा।
(दिनकर कपूर ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश महासचिव हैं)
+ There are no comments
Add yours