भाजपा, संघ और उनके सहयोगी संगठनों की ओर से हाल के दिनों में उत्तराखंड में अलग-अलग जगहों पर साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिशों के बाद अब उत्तराखंड की लोकतंत्र समर्थक और धर्मनिरपेक्ष ताकतें मजबूती के साथ एकजुट होनी शुरू हो गई हैं। 2 जुलाई को हल्द्वानी में हुए जन सम्मेलन के बाद 25 जुलाई को एक बार फिर शहीद श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस के बहाने इन ताकतों ने पूरे राज्य में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई और ‘नफरत नहीं, रोजगार दो’ के नारे के साथ प्रजातंत्र दिवस मनाया।
इस मौके पर राज्य में करीब 35 जगहों पर कार्यक्रम आयोजित किये गये। मुख्य कार्यक्रम टिहरी में शहीद श्रीदेव सुमन की कर्मस्थली में आयोजित किया गया। यहां नई टिहरी बाजार से जिला जेल तक एक सांस्कृतिक यात्रा निकाली गई और जेल स्थित श्रीदेव सुमन की प्रतीकात्मक काल कोठरी में रखी उनकी बेड़ियों के दर्शन किये गये।
राज्यभर में आयोजित कार्यक्रमों में बारे में बात करने से पहले एक नजर श्रीदेव सुमन के जीवन और संघर्षाें पर डालते हैं। श्रीदेव सुमन का जन्म टिहरी गढ़वाल के जौलगांव में 25 मई 1916 को हुआ था। पिता हरिराम बडोनी जाने-माने वैद्य थे और माता तारा देवी गृहणी। श्रीदेव सुमन का बचपन का नाम श्रीदत्त बडोनी था। 1919 में हैजे के दौरान लोगों का उपचार करते हुए पिता की मृत्यु हो गई। माता के प्रयास से उन्होंने पढ़ाई शुरू की। अपने गांव से लेकर देहरादून और फिर पंजाब विश्वविद्यालय में शिक्षा ली।
श्रीदेव सुमन ने 1937 में सुमन सौरभ नाम से अपनी कविताएं छपवाई। इसी वर्ष गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की, जो बाद में हिमालय सेवा संघ बना। इसी के साथ श्रीदेव सुमन की सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रियता बढ़ गई। 1939 में देहरादून में टिहरी राज्य प्रजा मंडल की बैठक हुई और श्रीदेव सुमन संयोजक मंत्री बने। अगस्त 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तो उन्हें देवप्रयाग में गिरफ्तार किया गया। पहले मुनिकीरेती, फिर देहरादून और अंत में आगरा भेजा गया। 19 नवंबर 1943 को जेल से रिहा किये गये।
यह वह दौर था जब देश में अंग्रेजों के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे तो टिहरी रियासत में राजा ने जुल्मों की हदें पार कर दी थीं। जेल से रिहा होने के बाद श्रीदेव सुमन सीधे टिहरी की तरफ चले, लेकिन 29 दिसंबर 1943 को चम्बाखाल में गिरफ्तार कर उन्हें टिहरी जेल भिजवा दिया गया। जेल में उनके साथ कई तरह के अत्याचार किये गये। लेकिन वे झुके नहीं, न माफी मांगी। आखिरकार राजा ने उन पर झूठा मुकदमा चलाया और 31 जनवरी 1944 को 2 साल का कारावास और 200 रुपये जुर्माने की सजा सुना दी गई।

सजा होने के बाद अत्याचार बढ़ गये। इसके विरोध में श्रीदेव सुमन ने 3 मई 1944 को ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू कर दिया। और संभवतः दुनिया की सबसे लंबी 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद श्रीदेव सुमन ने अपनी शहादत दे दी। अत्याचारी राजशाही ने उनके शव को कंबल में लपेटकर उफनती भागीरथी में फेंक दिया। टिहरी से 12 किमी दूर उनके परिवार को उनकी मृत्यु की सूचना 30 जुलाई को दी गई।
श्रीदेव सुमन की शहादत बेकार नहीं गई। 11 जनवरी 1948 को, यानी भारत की आजादी के करीब 7 महीने बाद टिहरी में लोकतंत्र की स्थापना के लिए कीर्तिनगर में दो और युवाओं को शहादत देनी पड़ी। उनके नाम थे नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी। इन दोनों की शहादत टिहरी राजशाही की अर्थी की आखिरी कील साबित हुई। दोनों शहीदों की दुनिया की सबसे लंबी शवयात्रा निकली। तीन दिन बाद शवयात्रा टिहरी पहुंची। दोनों शहीदों के अंतिम संस्कार के बाद टिहरी के राजा को अपदस्थ कर दिया गया। प्रजामंडल की अंतरिम सरकार बनी और 1 अगस्त 1949 को टिहरी का भारतीय संघ में विलय हुआ।
श्रीदेव सुमन, नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी को पूरे उत्तराखंड में एक ऐसे लोकतंत्र समर्थक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने राजशाही के अंत और लोकतंत्र की स्थापना टिहरी राजशाही के अमानवीय अत्याचारों को सहन करते हुए अपने जीवन का बलिदान दे दिया। मौजूदा दौर में जबकि पूरे देश के साथ ही उत्तराखंड में भी लोकतंत्र को कुलचने के प्रयास किये जा रहे हैं। सत्ताधारियों की शह में राज्य में जगह-जगह साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने के प्रयास किये जा रहे हैं। ऐसे में राज्य की लोकतंत्र समर्थक और सेकुलर ताकतों ने श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस पर पूरे राज्य में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई।
इस मौके पर नई टिहरी में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में ‘जनचौक’ प्रतिनिधि ने भी हिस्सा लिया। आयोजन ‘बीज बचाओ आंदोलन’ के प्रणेता और जमुना लाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित धूम सिंह नेगी, विजय जड़धारी और पर्यावरणविद् स्व.सुन्दर लाल बहुगुणा के पुत्र और पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा, सद्भावना समिति के संयोजक भुवन पाठक आदि की अगुआई में आयोजित किया गया। सैकड़ों की संख्या में राज्यभर से आये लोग नई टिहरी स्थित युद्ध स्मारक पर एकत्रित हुए और यहां से सतीश धौलाखंडी के जनगीतों के साथ सांस्कृतिक यात्रा के रूप में नई टिहरी स्थित जिला जेल पहुंचे।
टिहरी जिला जेल के बाहर एक प्रतीकात्मक शहीद श्रीदेव सुमन की काल कोठरी बनाई गई है। इसमें करीब 25 किलो वजन की वे बेड़ियां भी रखी गई हैं, जो राजशाही ने टिहरी जेल में बंद 209 दिनों तक श्रीदेव सुमन को पहनाकर रखी थी। असली जेल और काल कोठरी पुरानी टिहरी में भागीरथी के किनारे थी, जो टिहरी नगर और आसपास के 70 गांवों के साथ टिहरी बांध की झील में डूब गई थी। इसके बाद पुरानी टिहरी के जेल के साथ ही श्रीदेव सुमन की बेड़ियां भी नई टिहरी लाई गई और यहां उनकी याद में एक प्रतीकात्मक काल कोठरी बनाई गई है।

नई टिहरी में आयोजित सम्मेलन में देश और राज्य के मौजूदा हालात पर वक्ताओं ने गहरी चिन्ता जताई। कहा कि भाजपा और आरएसएस देश के संविधान और लोकतंत्र को तहस-नहस करने का प्रयास कर रहे हैं। यह भी कहा गया कि मणिपुर में जो घटना हुई, उसके लिए पूरी तरह से बीजेपी और आरएसएस जिम्मेदार हैं।
वक्ताओं ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि जिस राजशाही ने श्रीदेव सुमन को 300 से ज्यादा दिनों तक बेड़ियों में जकड़कर जेल में अमानवीय सजाएं दी। जिस राजशाही ने उन्हें 84 दिन का आमरण अनशन करने और अंत में अपना बलिदान देने के लिए विवश किया, आज टिहरी की जनता उसी राज परिवार को थोक के भाव वोट देकर संसद में भेज रही है।
वक्ताओं को कहना था कि जिस राजशाही ने श्रीदेव सुमन को अमानवीय यातनाएं दी। जिस राजशाही ने नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी को मौत के घाट उतारा, जिस राजशाही ने टिहरी की जनता पर कई तरह के अत्याचार किये उस राजा और उनके वंशजों को टिहरी की जनता अब तक कुल 12 बार चुनकर संसद में भेज चुकी है।
वक्ताओं ने स्पष्ट रूप से चुनौती दी कि भाजपा और आरएसएस के एजेंडे को उत्तराखंड में कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। जहां भी भाजपा और संघ साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास करेंगे, वहां राज्य के धर्मनिरपेक्ष ताकतें उनके मंसूबे नाकाम करने के लिए जुट जाएंगी।
इस मौके पर नई टिहरी के अलावा देहरादून, नैनीताल, हल्द्वानी, सल्ट, बागेश्वर, पिथौरागढ़, गोपेश्वर, जोशीमठ, गढ़वाल, पौड़ी, रामनगर, गरुड़ सहित करीब 35 जगहों पर प्रजातंत्र दिवस मनाया गया।
(उत्तराखंड से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)
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