बीबीसी पर छापा: पंजाब को याद आ रहे हैं ‘पुराने दिन’

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बीबीसी पर भारत में छापेमारी को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा है। ज्यादातर स्वतंत्र मीडिया और विदेशी मीडिया इसके असली मंतव्य से बखूबी वाकिफ है। पंजाब में भी एकबारगी फिर बीबीसी की चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि आतंकवाद के दौर में और उसके बाद सिख कत्लेआम पर उसकी रिपोर्टिंग को आज भी बेमिसाल माना जाता है। पंजाब की नई और पुरानी पीढ़ी को बीबीसी से जुड़े भारतीय ब्यूरो चीफ मार्क टुली नहीं भूलते। सतीश जैकब भी।

पंजाब में जब आतंकवाद ने दस्तक दी तो बीबीसी ने बेखौफ रिपोर्टिंग की थी। दिल्ली से अमृतसर और पंजाब की यात्रा अन्य किसी राष्ट्रीय स्तर के, दिल्ली स्थित पत्रकार ने उतनी नहीं की जितनी बीबीसी के पत्रकारों ने की। बीबीसी की निर्भीक रिपोर्टिंग को यहां पत्थर की लकीर समझा जाता था। यानी पंजाबी समुदाय मानता था कि जो कुछ बीबीसी कह रहा है, वही सच है।

मार्क टुली और सतीश जैकब ने पंजाब के काले दिनों पर एक किताब लिखी, ‘अमृतसर: मिसेज गांधीज लास्ट बैटल’ यानी श्रीमती इंदिरा गांधी की अंतिम लड़ाई। यह किताब आज भी बेस्टसेलर है और इसका हिंदी अनुवाद भी आया था, जिसे उदयप्रकाश ने किया था। लेकिन अब यह आउट ऑफ स्टॉक है। पंजाबी में इसका अनुवाद आया: ‘इंदिरा गांधी दी अंतलि लड़ाई।’

पंजाब में किसी भी शहर-कस्बे की किताबों की दुकान पर जाइए तो यह किताब अब भी सहज उपलब्ध होगी। यहां तक कि बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के बुक स्टॉलों पर भी। पंजाबी संस्करण के प्रकाशक हरीश जैन के मुताबिक अब तक इस किताब के पंजाबी अनुवाद की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं और हर साल नया संस्करण आता है।

जालंधर स्थित किताबों की सबसे बड़ी दुकान ‘न्यू बुक कंपनी’ के प्रबंधक राकेश कुमार के अनुसार मार्क टुली और सतीश जैकब की इस किताब की हजारों प्रतियां वह अपने हाथों से बेच चुके हैं। मांग अभी बरकरार है।

मार्क टुली और सतीश जैकब की किताब

आतंकवाद के दिनों में मार्क टुली और सतीश जैकब ने पंजाब को लगभग अपना स्थायी ठिकाना बना लिया था। शाम आठ बजे बीबीसी रेडियो का हिंदी प्रसारण होता था। सुर्खियों में पंजाब रहता था। आलम यह था कि ग्रामीण पंजाब से लेकर शहरी पंजाब तक के बाशिंदे इसे बाजरूर सुनते थे। जिसके पास रेडियो नहीं होता था, वह किसी दूसरे के यहां जाकर प्रसारण सुनता था।

कपूरथला के अस्सी वर्षीय कुलतार सिंह रंधावा याद करते हैं, “उन दिनों बीबीसी की रिपोर्टिंग को ही सबसे प्रामाणिक माना जाता था। दोपहर बाद से ही हमें इंतजार रहता था आठ बजने का। पंजाब की हकीकत तब बीबीसी के जरिए ही मालूम होती थी।”

पूर्व कांग्रेसी सांसद जगमीत सिंह बराड़ के अनुसार, “बीबीसी सुनना और उसकी खबरों पर यकीन करना पंजाबियों की आदत में शुमार हो गया था।”

आम आदमी पार्टी विधायक प्रिंसिपल बुधराम कहते हैं, “बीबीसी उन दिनों पंजाब का आईना होता था। केंद्र सरकार ने अब जो कुछ किया, वह सरासर गलत है। अगर इनकम टैक्स विभाग को कोई शिकायत मिली थी तो पहले बीबीसी अधिकारियों को दस्तावेजों सहित तलब किया जाता। नाकि इस तरह छापेमारी की जाती।”

खैर, खुद मार्क टुली कहते है कि पंजाब की रिपोर्टिंग के दौरान वह खुद आधे पंजाबी हो गए थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार की पूर्व संध्या पर शासकीय आदेश जारी हुए कि तमाम विदेशी पत्रकार पंजाब से चले जाएं। लेकिन मार्क टुली अमृतसर के अपने होटल में डटे रहे।

जब इसकी सूचना जिले के पुलिस प्रमुख को लगी तो वह खुद आये और उसने बीबीसी ब्यूरो प्रमुख मार्क टुली से कहा कि पंजाब से तमाम विदेशी पत्रकारों को जाने का आदेश दिया गया है और आप अभी तक यही हैं।

मार्क टुली के मुताबिक उन्हें हैरानी हुई और उन्होंने जवाब भी दिया कि जिंदगी का इतना हिस्सा भारत में गुजारने के बाद भी क्या मैं विदेशी हूं? पुलिस प्रमुख के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था लेकिन मार्क टुली को जबरन एक गाड़ी में बैठा कर वहां से दिल्ली रवाना कर दिया गया। लेकिन तब तक बीबीसी के यह भारतीय ब्यूरो प्रमुख इतने संपर्क बना चुके थे कि पंजाब के रेशे-रेशे की जानकारी उन्हें मिलती रही।

ऑपरेशन ब्लूस्टार की जबरदस्त कवरेज बीबीसी ने अपने स्रोतों के जरिए की। सिरमौर नामवर पंजाबी पत्रकार जतिंदर पन्नू के मुताबिक, “बीबीसी ने उस वक्त सच का दामन नहीं छोड़ा और पंजाब में उसकी विशेष साख थी।”

वहीं बुद्धिजीवी आरपी सिंह (जिनका जिक्र ज्ञानरंजन ने पत्रिका ‘पहल’ के एक संपादकीय में भी किया था) की टिप्पणी गौरतलब है कि, “बीबीसी को सुनकर लगता था कि हम घटनाक्रम को खुद अपनी आंखों से देख रहे हैं। हम लोग अपने रेडियो को दिनभर इसलिए चला-चला कर देखते थे कि कहीं इसमें तकनीकी नुक्स तो नहीं आ गया और हम बीबीसी बुलेटिन सुनने से वंचित रह जाएं।”

आरपी सिंह का मानना है कि आतंकवाद के दौर में पंजाब में अगर हिंदू-सिख एकता बरकरार रही तो उसमें बीबीसी की बहुत बड़ी भूमिका है। वह कहते हैं, “बीबीसी ने उन दिनों पंजाब पर एक रेडियो डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी। बाद में वृत्तचित्र भी। इसकी जानकारी शायद कम लोगों को हो।”

आरपी सिंह ने कहा कि “केंद्र सरकार जो सुलूक इस अति विश्वसनीय मीडिया संस्थान के साथ कर रही है, वह निंदनीय है। देखता हूं कि ज्यादातर भारतीय मीडिया इसे सही ढंग से रिपोर्ट नहीं कर रहा है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर के मीडिया में भारत सरकार की बेहद फजीहत हो रही है और इसे देखकर मन दुखी होता है।”

पंजाब लोक मोर्चा के संयोजक अमोलक सिंह कहते हैं, “तमाम लोग जानते हैं कि बीबीसी पर आयकर विभाग के छापे दरअसल गुजरात दंगों पर उसकी डॉक्यूमेंट्री और बेबाक रिपोर्टिंग के लिए डलवाए गए हैं। पंजाबी भी इससे आहत हैं और स्वतंत्र मीडिया के साथ खड़े हैं।”

खैर, फिर पीछे चलते हैं। सन् 82 के आसपास संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला जब पंजाब में एक जाना-पहचाना पहचाना नाम बन गया तो बीबीसी ने पहले-पहल उसका नोटिस लिया। इशारों-इशारों में बताया कि यह शख्स दरअसल ज्ञानी जैल सिंह की देन है और यह एक दिन भस्मासुर साबित होगा।

जिक्रेखास है कि अपने भाषणों में खुद संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला बीबीसी की तारीफ किया करता था और बताता था कि वह उसी की खबरों को सबसे भरोसेमंद मानता है।

एक वीडियो रिकॉर्डिंग है जिसमें भिंडरांवाला अपने अनुयायियों से कह रहा है कि पंजाब के अखबारों का बहिष्कार करो और बीबीसी सुनो। मार्क टुली ने बीबीसी की ओर से भिंडरांवले का पहला रेडियो साक्षात्कार लिया था और बेखौफ होकर उससे खुलकर सवाल पूछे थे। 1984 तक लगातार वह अमृतसर जाकर श्री स्वर्ण मंदिर में भिंडरांवाला से मिलते रहे।

एसजीपीसी के प्रधान जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहड़ा, अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोंगोवाल और प्रकाश सिंह बादल सरीखे सिख सियासतदान भी विश्वसनीयता की गुणवत्ता के चलते बीबीसी को खास पसंद करते थे और मार्क टुली को विशेष इंटरव्यू देने के लिए तरजीह देते थे।

पंजाब में उन दिनों कुछ लोगों ने रेडियो खरीदे ही इसलिए थे कि वे सूबे की हालत की बाबत बीबीसी के जरिए जान सके। जालंधर के पुरुषोत्तम लाल खट्टर उनमें से एक हैं। डाक विभाग से रिटायर पुरुषोत्तम कहते हैं कि बीबीसी की खबरें हमें आश्वस्त और सावधान करती थीं।

शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त नवांशहर के गुरजंट सिंह कहते हैं, “उन दिनों अफवाहें बहुत फैलती थीं और बीबीसी की रिपोर्टिंग अफवाहों की सबसे बड़ी काट थी।”

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद नवंबर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उन्हीं के अंगरक्षकों ने कर दी। उनके बेटे और बाद में प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी उस दिन कोलकाता में थे। वहां बीबीसी के जरिए ही उन्हें यह खबर मिली। एक इंटरव्यू में खुद राजीव गांधी ने पुष्टि की है कि उन्होंने पश्चिम बंगाल के स्थानीय नेताओं की बजाए बीबीसी की खबर पर भरोसा किया।

इस खबर को प्रसारित करने के बाद बीबीसी का और खास तौर पर मार्क टुली और उनके सहकर्मी डिप्टी ब्यूरो चीफ सतीश जैकब का ध्यान इस पर गया कि सिखों के खिलाफ हिंसा हो सकती है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह एम्स पहुंचे तो उनकी कार पर पथराव किया गया। यह भी पहले-पहल बीबीसी ने ही दुनिया को बताया।

उसके बाद सिख विरोधी हिंसा हुई और बीबीसी की बेबाक रिपोर्टिंग ने तत्काल हर वह चेहरा बेनकाब करने की कोशिश की जो इस हिंसा के लिए जिम्मेदार था। यह वाक्य भी अवाम ने सबसे पहले बीबीसी के जरिए सुना कि सिख विरोधी हिंसा की बाबत राजीव गांधी ने कहा कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है।

राजीव गांधी के इस वाक्यांश को प्रसारित करते वक्त खुद मार्क टुली ने इस पर विशेष टिप्पणी की थी जो आहत सिख जनमानस पर मरहम की मानिंद थी।

एमनेस्टी इंटरनेशनल सहित राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई मानवाधिकार संगठनों ने सिख विरोधी हिंसा की साजिश की तह तक जाने के लिए बीबीसी की रिपोर्ट्स को आधार बनाया।

1984 के बाद पैदा हुई पंजाबी समुदाय की हर पीढ़ी (जिसकी रुचि बीते पंजाब के घटनाक्रम में है) मार्क टुली और सतीश जैकेब की किताब (जो उनकी आतंकग्रस्त पंजाब रिपोर्टिंग पर आधारित है) ‘अमृतसर: मिसेज गांधीजी लास्ट बैलट’ अनिवार्य तौर पर पढ़ती है।

बीबीसी पत्रकारों की यह किताब पंजाबी और अंग्रेजी में पंजाब के गांवों तक बखूबी पढ़ी जाती है। इन दिनों पंजाब में तैनात रहे सेवानिवृत्त आला अफसर पंजाब के आतंकवाद पर खूब किताबें लिख रहे हैं और उनमें बीबीसी का जिक्र व संदर्भ जरूर होता है।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं)

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