ग्राउंड रिपोर्ट : पंजाब में बंधुआ मजदूरी के दलदल से निकले मजदूरों को कब मिलेगा न्याय! 

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पंजाब। पंजाब का मोगा जिला अपने सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना‌ जाता है। इस जिले के कई इलाकों में ईट-भट्ठे का काम किया जाता है। इस काम में मजदूर वर्ग अपनी जिंदगी खपा देता है। मगर, मजदूरों के जीवन का संघर्ष कम नहीं होता। ना ही मजदूर ढंग की बुनियादी सुविधाएं हासिल कर पाते हैं।

इस सबके बावजूद ईंट-भट्ठे के काम में कई चुनौतियां हैं। ये चुनौतियां भी मजदूर झेल लेते हैं। लेकिन, जब ईंट-भट्ठा मजदूरों को बंधुआ बनाया जाता है तब उनकी जिन्दगी की आजादी सिकुड़ जाती हैं। उनके मानवाधिकार गंभीर रूप से चोटिल हो जाते हैं। 

एक ऐसा ही बंधुआ मजदूरी का मामला मोगा जिले से उजागर हुआ है, जिसमें अनुसूचित जाति के 56 ईंट-भट्ठा मजदूरों से बंधुआ मजदूरी करवायी गयी। वहीं, इन मजदूरों के मानवाधिकारों और संवैधानिक मूल्यों पर भी तगड़ा प्रहार किया गया।

दरअसल, बंधुआ मजदूरों की मुक्ति के लिए कार्यरत निर्मल गौराना ने बंधुआ मजदूरी से संबंधित एक शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार और पंजाब पुलिस को की है। जिसमें उल्लेख है कि,

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि महिलाओं और 17 बच्चों सहित 56 बंधुआ मजदूर अनुसूचित जाति समुदाय से हैं। जिन्हें ईंट भट्टे पर काम करने के लिए उत्तर प्रदेश से पंजाब के मोगा जिले में तस्करी करके लाया गया था। 

शिकायतकर्ता ने आगे आरोप लगाया कि उन्होंने (मजदूरों ने) आरोपी से अग्रिम राशि ली थी और उक्त राशि को चुकाने के लिए, श्रमिकों को बिना वेतन के कठोर मौसम की स्थिति में काम करना पड़ा। वहीं, आरोपियों के डर के कारण पीड़ित अपना बयान दर्ज कराने से हिचक रहे थे।  

निर्मल गौराना की इस शिकायत पर मानवाधिकार आयोग ने आदेश दिया कि, शिकायत को श्रम आयुक्त, पंजाब सरकार, साहिबजादा अजीत सिंह नगर, पंजाब, डीएम और एसएसपी, मोगा, पंजाब को इस निर्देश के साथ प्रेषित किया जाए कि शिकायत में लगाए गए आरोपों की जांच की जाए और श्रमिकों को बचाया जाए। बच्चों को तुरंत बचाया जाए और न्याय किशोर अधिनियम, 2015 और बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अनुसार बच्चों के आगे के पुनर्वास के लिए बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया जाए। 

वहीं, मामले में गोपनीयता का भी ध्यान रखा जाए। आयोग ने यह भी निर्देश दिया कि, अधिकारी आयोग के अवलोकन के लिए एक सप्ताह के भीतर (मामले की) एक कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करें। 

इन बंधुआ मजदूरों की एक लिस्ट भी हमें निर्मल गौराना ने सौंपी। लिस्ट में 16 पुरुषों, 14 महिलाओं और 26 बच्चों के नाम दर्ज हैं। 

लिस्ट में सोनू, अमित, सरिता, दीपा, विकास, पूजा सहित कुल 56 बालिग और नाबालिग बंधुआ मजदूरों के नाम वर्णित हैं। ये 56 बंधुआ मजदूर 10 परिवारों के हैं। इन परिवारों ने लाखों ईंटें बनायी हैं, जिसके बदले उन्हें बहुत कम पैसा दिया गया। 

हमने बंधुआ मजदूरी का शिकार हुए अनुसूचित जाति के मजदूरों का दर्द जानने और समझने की भी कोशिश की‌। 

जब हमने बंधुआ मजदूर रहे विकास से बात की, तब वे कहते हैं कि, ‘मेरा ताल्लुक सहारनपुर जिले के बेनहेरा खास गांव से हैं। मेरे परिवार में 4 लोगों को बंधुआ मजदूर बनाया गया था‌। हमसे करीब 18 घंटे से ज्यादा काम लिया जाता था। जब हम काम नहीं करते थे, तब आरोपी कहते थे कि, जान से मार देंगें।

हम रातों में कड़ाके की सर्दी में भी काम करने को मजबूर थे।‌ जिन झुग्गियों में हमें रखा जाता था वहां की बिजली इसलिए काट दी जाती थी कि, हम फोन‌ चार्ज करके अपनी समस्या किसी से साझा ना कर दें।,

विकास इसके आगे कहते हैं कि,

‘हमने काम के दौरान 2 लाख 50 हजार ईंट बनायी थी। लेकिन, आरोपियों ने बच्चों तक के इलाज के लिए पैसे नहीं दिए। काम के दौरान हमारा एक बच्चा ऐसा बीमार हुआ कि, अब तक ठीक नहीं हो रहा। बच्चे को बुखार बना रहता है। अभी हम बच्चे का इलाज करवा रहे हैं। अब हमें यही इंतजार है कि, हमारे साथ न्याय कब होगा‌।, 

फिर आगे हमने बंधुआ मजदूर की जिंदगी जीने वाले संदीप गौतम से बातचीत की। वे हमें अपनी तकलीफ बताते हुए कहते हैं कि, ‘मैं सहारनपुर जिले के बेनहेरा खास गांव का ग्रामीण हूं।

पंजाब के मोगा में हमसे 5 महीने से जबरन बंधुआ मजदूरी करवायी जा रही थी। पांच महीने में केवल 30 हजार रुपए दिया गया। इतने पैसे में हमारे परिवार के माता-पिता, भैया-भाभी, हम पति-पत्नी सहित 8 सदस्यों से जबरन बंधुआ मजदूरी करवायी गयी।, 

बेनहेरा खास गांव के ही अंकुश कुमार भी हैं। इन्हें भी बंधुआ मजदूरी का शिकार होना पड़ा। अंकुश बतलाते हैं कि, ‘हमसे 5 लाख ईंट बनवाई गई। ईंट बनवाने का पैसा मांगा और घर जाने को कहा तो मार-पीट और गालियां मिलती थीं। आज हम आजाद‌ जरूर हो गये पर हमारे साथ आर्थिक न्याय नहीं हो सका‌। सरकार और प्रशासन से यही मांग है कि, हमारे साथ आर्थिक न्याय करते हुए हमारे काम का पूरा पैसा दिलाए।,  

सहारनपुर जिले की ही अनुज अपना दर्द साझा करते हुए कहते हैं। वे सेनपुर गांव के हैं। अनुज बयां करते हैं कि, ‘पांच महीने की बंधुआ मजदूरी में आरोपियों ने बच्चों तक को नहीं छोड़ा। बच्चों को भी बंधुआ बनाया। आरोपी हमसे बोलते थे कि, यदि काम नहीं करोगे तब खाने के भी पैसे नहीं मिलेंगे। जब हम खाने-पीने का सामान खरीदने जाते थे, तब एक आदमी हमारे साथ जाता था।, 

अनुज आगे व्यक्त करते हैं कि,

‘आधी रात से उठाकर हम से काम करवाया जाता था। हमें बहुत कम सोने दिया जाता था। हम रात के 1 बजे से शाम के 5 बजे तक काम करते थे। काम के दौरान हमने 2 लाख 50 हजार ईंट बनाई है। लेकिन, पैसा नहीं मिला‌। कार्य का पैसा मांगा तो आरोपियों ने जातिगत गालियां देते हुए चमार कहकर बेइज्जत किया। बंधुआ मजदूरी ने हमें बड़ी खौफनाक स्थिति दिखाई।,

बंधुआ मजदूरी से मुक्त कैसे हुए? इस पर अनुज कहते हैं कि, ‘एक बार मैं रात के समय निर्मल गौराना से मिलने गया। जब पूरा मामला मैंने उन्हें बताया। तब निर्मल गौराना ने प्रशासन की मदद से हमें बंधुआ मजदूरी के चंगुल से मुक्त करवाया।, 

आगे बंधुआ मजदूरी के हालात बताती हैं राखी‌। जो भुम्मा गांव जिला मुजफ्फरनगर की हैं। उनका कहना है कि, ‘मैं बीमार रहती थी तब भी मजदूरी करनी पड़ती थी। इलाज के लिए भी पैसा नहीं दिया जा रहा था। हमने 2 लाख ईंटे बनायी थीं। इन ईंटों का पारिश्रमिक नहीं दिया‌ गया। मेरी यही इच्छा है कि, सरकार बंधुआ बनाने वालों पर ऐसी कार्रवाई करे कि बंधुआ मजदूरी जैसी खौफनाक दशा‌ पैदा ही ना हो।,

इसके बाद हमने मजदूर रहे कनवरपाल का हाल‌ जाना। वे मुजफ्फरनगर जिले के धिंधवाली गांव से आते हैं।

कनवरपाल खुद पर बीती बताते हुए कहते हैं कि, ‘हम चाहे मरें या जियें आरोपियों को बस काम चाहिए था। हम जिन्दा रह सके इसलिए खाने-पीने के लिए आरोपी ‌1000-1500 रुपए दे देते थे। हमने 1 लाख ईंट बनायी‌। इसका कोई हिसाब-किताब नहीं किया गया।,

अंत में हमने मामले पर निर्मल गौराना से बातचीत की। इस संवाद में वे बतलाते हैं कि, ‘शासन-प्रशासन की मदद से बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवा दिया गया। आरोपियों का बंधुआ मजदूरों पर इतना खौफ था कि, दो परिवार के 10 लोग तो अपने बयान देने तक सामने नहीं आए। उनका सामान भी आरोपियों की गिरफ्त में रह गया‌। इस डर से अनुमान लगाया जा सकता है कि, मजदूरों की जान पर कितना संकट रहा होगा।,

आगे निर्मल कहते हैं कि, ‘बंधुआ मजदूरी के मामले में निरजा चौधरी बनाम मध्यप्रदेश सरकार का सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश 1984 में आया था। आदेश में कहा गया था कि,‌ जहां कहीं मजदूर नगद लेकर काम करता है और मजदूर कहता है कि मैं बंधुआ हूं। तब प्रशासन को यह धारणा बनाकर जांच करना होगा कि, ये बंधुआ मजदूर है।,

इसके पश्चात निर्मल गौराना‌ बताते हैं कि, ‘मोगा बंधुआ मजदूरों के मामले में उनका रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया गया। वर्ष 2013 में मानव तस्करी के मामले को बंधुआ मजदूरी के साथ जोड़ दिया गया था। तब यह मामला मानव तस्करी से भी जुड़ जाता है।वहीं, जिला मजिस्ट्रेट को बंधुआ मजदूरों के संबंध में एक रिलीज आदेश भी जारी करना चाहिए।

बच्चों को बंधुआ बनाने में चाइल्ड लेबर एक्ट और जेजे एक्ट का उल्लंघन हुआ। इस मामले में कोई लीगल एक्शन नहीं हुआ है। बंधुआ मजदूरी के शिकार बच्चों को सुविधाएं दी जानी चाहिए।,

निर्मल कहते हैं कि, ‘कानूनी प्रक्रियाओं का पालन न करना भी अपराध की श्रेणी में आता है। चूंकि बंधुआ बनाये गये मजदूर दलित समुदाय से आते हैं, इसलिए मामले में एससी-एसटी एक्ट को‌ ध्यान में रखकर मजदूरों के साथ न्याय किया जाना चाहिए। वहीं, मोगा के अंदर जितने ईंट-भट्ठे चल रहे हैं उनकी जांच की जानी चाहिए कि, कहीं पर बंधुआ मजदूर ना हो। यदि बंधुआ मजदूर पाये जाएं, तब उनके साथ न्याय किया जाए।, 

(सतीश भारतीय मध्यप्रदेश के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं) 

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