‘असली किन्नर’ बनाम ‘नक़ली किन्नर’: जेंडर-पहचान, आत्म-निर्णय और रोज़गार का सवाल

Estimated read time 3 min read

5 मई, 2023 को वेब पोर्टल ‘News ANP’ पर पं. बंगाल के आसनसोल की खबर छपती है कि वहां पर कुछ किन्नरों ने एक ‘नक़ली किन्नर’ को राह चलते लोगों को ‘परेशान करने’ के कारण पकड़ा और उन्हे निर्वस्त्र करने के बाद उनके साथ मारपीट की गई, पूरे वाक़िये के बाद तथाकथित ‘नक़ली किन्नर’ को पुलिस के हाथों सौंप दिया गया। हम देख सकते हैं की ‘नक़ली किन्नर’ को निर्वस्त्र करके पीटा जा रहा है, मारपीट करने में शामिल रहे सुनीता का बयान भी दर्ज है “आजकल कई लड़के ‘बहरूपिया’ बन कर किन्नर बनने का नाटक करते हैं, और आने-जाने वाले आदमियों और महिलाओं को परेशान करते हैं, प्रशासन से हमारी मांग है कि इन पर कार्यवाही की जाए”।

नकली किन्नर से मारपीट करते असली किन्नर

इस प्रकार की यह केवल अकेली घटना नहीं है, इससे पहले कई राज्यों के शहरों से इस प्रकार की खबरे आई है, ‘नई दुनिया’ में 2 फ़रवरी 2020 को छपी खबर के अनुसार मध्यप्रदेश के शुजालपुर में वहां के किन्नरों ने एक ‘नक़ली किन्नर’ को पकड़ा, उसको निर्वस्त्र करने के बाद सर से गंजा कर दिया, जूतों की माला पहनाकर जूते मारते हुए उनका पूरे शहर में जुलूस निकाला, पुलिस को सौंपने के बाद तथाकथित ‘नक़ली किन्नर’ को धारा 151 में ज़मानत मिल गई।

ठीक इसी प्रकार की घटना की खबर राजस्थान के हनुमानगढ़ से आज तक ने 3 मार्च 2023 को, हिमाचल प्रदेश के रिसालसर से बीती 19 मई को हिमाचल पंजाब केशरी पर रिपोर्ट की गई है। इन खबरों का ट्रेंड एक जैसा है, जिसमें लोगों की शिकायत पर किन्नर समुदाय के लोग किन्ही तथाकथित ‘नक़ली किन्नर’ को पकड़ते हैं, फिर उनके साथ आस-पास की भीड़ द्वारा मिलकर सामूहिक मारपीट की जाती है और निर्वस्त्र करके और सर से गंजा करके सामाजिक अपमान की कोशिश की जाती है, कई बार ‘आरोपी’ को पुलिस को सौंपा जाता है और कई बार माफ़ी मंगवाकर छोड़ दिया जाता है। ठीक इसी पैटर्न के कई खबरें और परेशान करने वाले हिंसक वीडियोज इंटरनेट और सोशल मीडिया पर बड़ी मात्रा में मौजूद है।

इंटरनेट पर और अधिक तहक़ीक़ात करने पर इस प्रकार के कई सारे वीडियो देखने को मिलते हैं, Kadak नाम के यूट्यूब चैनल पर इस प्रकार का एक वीडियो 10 अप्रैल, 2017 को अपलोड है, जो आगरा के एत्माउद्दौला का बताया जा रहा है। 10 अगस्त, 2018 को न्यूज़ 18 के फ़ेसबुक पेज पर राजस्थान के जालोर का, 8 अगस्त 2020 को यमुनानगर सिटी न्यूज़ के फ़ेसबुक पेज पर उत्तर प्रदेश के यमुनानगर का, पंजाब केशरी के फेसबुक पेज पर 20 जनवरी, 2021 को अपलोड एक वीडियो उत्तर प्रदेश के ही मथुरा शहर का बताया जा रहा है, उसमें भी इसी प्रकार की हिंसा हो रही है।

इसके साथ ही हिमाचल पंजाब केशरी के फ़ेसबुक पेज पर राजगढ़, हिमाचल प्रदेश का एक वीडियो है जिसमें एक पुलिस का व्यक्ति ‘नक़ली किन्नर’ होने की तहक़ीक़ात में सार्वजनिक जगह पर एक व्यक्ति से हिंसात्मक तरीक़े से पूछताछ कर रहा है साथ ही उसके कपड़े उतारकर लोगों को दिखाने का दबाव बना रहा है, उसी वीडियो में पीछे से ‘भारत माता की जय’ की आवाज़ आ रही है, 3100 से अधिक बार शेयर किए गए इस वीडियों को तैंतीस लाख बार देखा गया है। इससे हमें मालूम चलता है कि ‘असली किन्नर’ बनाम ‘नक़ली किन्नर’ का यह मसला भारत के अधिकतर हिस्सों में लम्बे समय से व्याप्त है।

ऐसी ही एक घटना के सर्वाइवर रहे इन्दौर निवासी शिवानी बताते हैं कि उनके साथ साल 2020 में विदिशा ज़िले में ‘किन्नर समुदाय’ के लोगों ने मारपीट की और कपड़े और पैसे छीन कर वहां कभी नज़र ना आने को कहा। शिवानी खुद को ट्रांस-फ़ीमेल की तरह आइडेंटिफाइ करते हैं। वे बताते हैं कि उन्हें जन्म के समय पुरुष का जेंडर दिया गया, लेकिन जब उन्होंने स्वयं को एक स्त्री के तौर पर आइडेंटिफाइ करके अभिव्यक्त करना शुरू किया उसकी प्रतिक्रिया में उनके परिवार ने उनका बहिष्कार कर दिया। अपनी इस पहचान के साथ कोई भी जगह काम पाना उनके लिए काफ़ी मुश्किल भरा साबित हुआ, इसलिए उन्होंने दो अन्य ट्रांस फ़ीमेल के साथ रहना शुरू किया साथ ही जीवन का गुज़ारा करने के लिए उनको लोगों से मांगने और सेक्सवर्क के काम पर निर्भर होना पड़ा, उन्हीं दिनों उनके साथ यह घटना हुई।

राजस्थान के हनुमानगढ़ की घटना में शामिल नगिना बाई इस प्रकार की और भी चार-पांच घटनाओं में शामिल होने की बात को स्वीकार करते हुए बताते हैं कि कई नौटंकी और नाच-गाना करने वाले लड़के किन्नर बनने का नाटक करते हैं और लोगों से पैसा वसूलते हैं, इससे किन्नर समुदाय की परेशानियां बढ़ जाती हैं। उनका कहना है कि किन्नर समुदाय हमेशा से अपने डेरों और घरानों में रहते आए हैं इसलिए कोई भी ग़लत काम और क्राइम में शामिल नहीं होंगे लेकिन इस प्रकार के ‘नक़ली किन्नर’ घूमते रहने वाले होते हैं इसलिए उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। साथ ही इस बधाई और नेक पर पारम्परिक रूप से हम लोगों का हक़ है जिसमें भी सेंधमारी होती है।

‘नक़ली किन्नर’ कौन होते हैं सवाल के जवाब में नगिना बाई बताते हैं कि “किन्नर तो मां के पेट से पैदा होकर आते हैं, बाक़ी वाले तो सिर्फ़ मर्द और औरत होते हैं”। उन लोगों के बारे में जो अपने जन्म के समय ‘Assigned gender’ से खुद को सम्बंधित नहीं पाते और अपने आप को ‘ट्रांस-जेंडर’ की तरह पहचानते हैं के सवाल के जवाब में वे बताते हैं कि “ये सब नक़ली है, यही तो सब गन्दा काम हो रहा है, हम तो बता सकते हैं कि हम किन्नर है लेकिन वो क्या बताएंगे”। मारपीट और सामाजिक अपमान करने की बात पर वे कहते हैं कि पुलिस के पास इस समस्या का कोई सॉल्युशन नहीं है, उनको एक-दो दिन में फिर से छोड़ देंगे और वे फिर से मांगना शुरू कर देंगे। जब तक समाज के सामने इन लोगों की सच्चाई नहीं लाएंगे तब तक लोगों को भी मालूम नहीं चलेगा ना ये सुधरेंगे।

इस पूरे मसले की आधुनिक समझ विकसित करने के लिए हमें जेण्डर विविधता को समझना आवश्यक है। हाल ही में ‘शादी की समानता’ के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए सवाल खड़ा किया था “जैविक पुरूष और जैविक स्त्री सिर्फ एक धारणा है, सिर्फ जननांग की प्रकृति के आधार पर पुरुष और स्त्री को नहीं समझा जा सकता, इसकी तुलना में यह अधिक जटिल मसला है”। पारम्परिक तौर पर पूरी दुनिया में जननांग की प्रकृति के आधार पर पुरुष और स्त्री दो ही लिंग को सामाजिक वैधता प्राप्त रही है, जिस समझ का मुख्य आधार Biological essentialism है। आधुनिक लैंगिक-जेंडर समझ के अनुसार जेंडर सिर्फ पुरुष और स्त्री तक सीमित नहीं है बल्कि उसके अन्दर काफ़ी सारी विविधता है।

भारतीय जनमानस में स्थापित कॉमन सेंस के अनुसार किन्नर, हिजड़ा, खुसरा, ख़्वाजा-सिरा जैसे शब्द उस जेण्डर पहचान के लिए प्रयोग किए जाते है जिनके जन्म के समय जननांग की प्रकृति में स्त्री और पुरुष दोनों का मिश्रण होता हैं साथ ही वे ‘पूरे तौर’ पर ना तो पुरूष होते हैं ना ही स्त्री, यह समझ अंग्रेज़ी के ‘Intersex’ शब्द से अभिव्यक्त पहचान के समानार्थी है। जबकि आधुनिक जेंडर समझ के अनुसार किसी भी मनुष्य की जेंडर पहचान सिर्फ़ उनके जननांग की प्रकृति पर निर्भर नहीं है बजाय इसके वह आत्म-निर्णय पर आधारित है।

जिन लोगों के जननांग जन्म के समय पुरुष की तरह समझे जाते हैं लेकिन वे स्वयं की पहचान स्त्री की तरह करते हैं उनके लिए ट्रांसफीमेल शब्द का प्रयोग होता है, जिन लोगों को जननांग के आधार पर जन्म के समय स्त्री की तरह समझा जाता हैं लेकिन वे स्वयं की पहचान पुरुष की तरह करते हैं तो उन्हें ट्रांसमेल कहा जाता है, स्वयं को पुरुष और स्त्री की बाइनरी में ना पहचानने वाले लोगों के लिए नॉन-बाइनरी शब्द का प्रयोग होता है।

जन्म के समय जिनके जननांग की प्रकृति पुरुष और स्त्री दोनों के मिश्रण की होती है जिसका कारण XX और XY क्रोमोसोम के अलावा किसी अलग प्रकार के क्रोमोसोम-संयोजन होता है उनके लिए इन्टरसेक्स शब्द का प्रयोग होता है। इन्टरसेक्स जननांग के साथ जन्में लोग भी आत्म-निर्णय के आधार पर स्वयं को पुरुष, स्त्री, नॉन-बाइनरी या जेण्डर फ्लयूड की तरह आइडेंटिफाइ और एक्सप्रेस करते हैं। इन सभी विविध जेंडर पहचानों को अभिव्यक्त करने के लिए ‘ट्रांस’ और जेंडर क्वीयर शब्दों का अम्ब्रेला टर्म की तरह प्रयोग होता है।

आधुनिक लैंगिक पहचान के केन्द्र में आत्म-निर्णय है, जन्म के समय के जननांग की प्रकृति लैंगिक-जेंडर पहचान के निर्णय और उसकी अभिव्यक्ति के लिए कोई आवश्यक शर्त नहीं है, व्यक्ति स्वयं को किस प्रकार देखते और अभिव्यक्त करना चाहते हैं वहीं उनकी लैंगिक-जेंडर पहचान होगी। ‘असली किन्नर’ बनाम ‘नक़ली किन्नर’ जैसे विवाद के पीछे Biological Essentialism धारणा का एक अलग स्वरूप है, जिसमें स्त्री, पुरुष और ‘तृतीय-प्रकृति’ (प्रचलित शब्द में किन्नर) वे जिनके जननांग ‘पूरे तौर पर’ पुरुष और स्त्री की तरह नहीं है) की पहचान का इकलौता आधार उनके जननांग की प्रकृति ही है, जो कि आधुनिक लैंगिक-जेंडर पहचान की आत्म-निर्णय की समझ से बहुत अलग है। इस प्रकार की धारणा की सबसे क्रूर अभिव्यक्ति तब होती है जब सार्वजनिक जगह पर कुछ लोग मिलकर हिंसा के ज़रिए आपको निर्वस्त्र कर सबके सामने यह साबित करना चाहे की आपकी जेंडर पहचान वो नहीं है जिसका आप ‘दिखावा’ कर रहे हैं।

असल में इन टकरावों का मुख्य कारण पारम्परिक अर्थव्यवस्था की वह संरचना है जिसमें हासिए की जेण्डर पहचानों का संरचनात्मक-विधिवत तरीक़े से हासियाकरण किया जाता रहा है, किन्नर कहे जाने वाला समुदाय उन लोगों से बनता है जिन्हें अपनी लैंगिक पहचान के कारण परिवार अपने से अलग कर देता है। जिसके साथ ही उन्हें पैतृक सम्पत्ति में हिस्सेदारी, शिक्षा का अधिकार, जैसे मूलभूत अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। साथ ही पारम्परिक अर्थ-तंत्र में उनकी भूमिका केवल दूसरे लोगों की नेक और बधाई पर आश्रित की या कई बार सेक्स वर्कर के तौर पर सीमित हो जाती है।

पारम्परिक किन्नर समुदाय ने सर्वाइव करने के लिए एक अलग समानांतर संगठनात्मक व्यवस्था खड़ी की है, जिसमें एक गुरु/महंत अपने कई चेले/चेलियों के साथ रहते हैं। जिसे घराना या डेरा कहते हैं, हर डेरे के लिए क्षेत्रों, गांवों और शहरों का निर्धारित बंटवारा है। पूरे डेरे के लोगों का आश्रय उस क्षेत्र के लोगों द्वारा दी जाने वाली बधाई, नेक और कई बार ‘भीख’ पर आधारित है, जब ऐसे में कोई और उनके घोषित क्षेत्र में प्रतियोगी की तरह उभरता है तो एक आर्थिक असुरक्षा की भावना जन्म लेती है जो सीधे तौर पर उनके अस्तित्त्व के सवाल से जुड़ी है।

वहीं दूसरी ओर कमजोर आर्थिक वर्ग से आने वाला जेंडर क्वीयर समुदाय का ही एक हिस्सा है जिनके लिए भी अर्थ-तंत्र में रोज़गार का कोई उपयुक्त तरीक़ा नहीं है और ना ही उनके अस्तित्व के साथ अभिशाप, आशीर्वाद जैसे मिथक जुड़े हैं जिससे वे मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज पर आश्रित होने के ‘हक़दार’ हो जाएं। इस जटिल सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था से यह मामला जन्म लेता है जिसे राष्ट्रीय समझे जाने वाले अख़बार और न्यूज़ चैनल तक कौतुहल पैदा करने वाली हैडलाइन और असंवेदनशीलता के सामान्यीकरण करने वाले विज़ुअल्स को ‘न्यूज़’ की तरह सोशल प्लेटफ़ार्म्स पर प्रचारित करते हैं।

भले ही प्रथम दृष्ट्या यह मामला क्वीयर समुदायों के आंतरिक विरोधाभास और टकरावों का लगे लेकिन इसके मूल में मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज की सामाजिक-आर्थिक निर्मिति है जो संरचनात्मक तौर पर लगातार इन समुदायों को हासिए में धकेले रखने के लिए ज़िम्मेदार है। जहां एक और ऐसे सवाल क्वीयर आन्दोलन के सामने बड़ी चुनौती है, वहीं दूसरी ओर वृहद् समाज का देख कर भी अनदेखा (Deliberate ignorance) करने वाला समाजी बर्ताव भी एक मुख्य कारण है। इस गम्भीर सवाल का कोई बहुत आसान और जल्दी हल हो जाने वाला जवाब तो नहीं दिखलाई पड़ता, फिर भी खोजने पर प्रगतिशील यौनिक-शिक्षा में हमें एक स्थायी जवाब दिखलाई पड़ता है, जिससे आमजन के बीच जेंडर और लैंगिकता की नई समझ को लोकप्रिय किया जा सके।

(विभांशु कल्ला स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

1 Comment

Add yours
  1. 1
    Rajesh

    आम तौर पर लोग किन्नर के विभिन्नता से परिचित नहीं होते ! यह एक शानदार और आंखे खोलने वाला है! इसी तरह के विषयो के बारे में लेखक आमजनों को परिचित कराते रहे। कल्ला जी को भविष्य की बधाई।

+ Leave a Comment

You May Also Like

More From Author