आज हिमाचल प्रदेश के स्थानीय समाचार पत्रों में राज्य सभा के लिए निर्वाचित भाजपा सांसद हर्ष महाजन का बयान सुर्खियां बटोर ही रहा था कि जल्द ही हिमाचल में भाजपा सरकार बनने जा रही है, 10 और कांग्रेस विधायक हमारे संपर्क में हैं, तो उन्हें अंदाजा नहीं था कि कुछ ही घंटों के बाद भाजपा के अरमानों पर पानी फिरने वाला है।
जी हां, आज विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप पठानिया ने 6 कांग्रेस विधायकों को दल बदल कानून के तहत दोषी करार देते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की घोषणा कर दी है। ये विधायक हैं, राजेन्द्र राणा, सुधीर शर्मा, इंदर दत्त लखनपाल, चैतन्य शर्मा, रवि ठाकुर और देवेंद्र भुट्टो। इन माननीय विधायकों ने इस काम को किसके इशारे पर अंजाम दिया, इस बारे में अब खुलकर चर्चा होने लगी है। आज विधानसभा से बर्खास्त इन 6 विधायकों का योगदान बस यह है कि इन्होंने भाजपा के लिए एक राज्यसभा सदस्य का इंतजाम कर दिया। लेकिन इनके माथे पर जो कालिख पुत चुकी है, वह इनके जीवन भर साथ रहने वाली है। भाजपा के लिए भी अब ये लोग चुके हुए कारतूस हो चुके हैं, और कांग्रेस में वापिस लेने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। अपने दम पर जीत हासिल करने के लिए आवश्यक विश्वसनीयता भी ये लोग खो चुके हैं।
इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश में सत्ता पलट की सभी संभावनाओं की हवा भी निकल चुकी है। हाल के दिनों में इंडिया गठबंधन की राज्य सरकारों को जिस प्रकार से बेहद आक्रामक तरीके से एक के बाद एक बुलडोज करने की कोशिश की गई, उसमें बिहार को छोड़ केंद्र को कोई सफलता नहीं मिल पाई है। झारखंड में यह प्रयोग असफल रहा, और अब हिमाचल प्रदेश में राज्य सभा के लिए चुनाव की आड़ में राज्य सरकार को ही पलट देने की मुहिम पर भी अब पानी फिर गया है।
वार, पलटवार का यह खेल इतनी तेजी से धूप-छांव की तरह अपना रंग बदल रहा है, जिसे देख शायद राजनीति के चाणक्य भी चकरा रहे हों। परसों शाम जैसे ही राज्य सभा की सीट पर वोटों की गिनती पूरी हुई, तो पिछले दस दिनों से राज्य की सियासत में चल रहे घमासान का परिणाम सामने आने लगा था। 40 विधायकों वाली कांग्रेस को इस सीट के लिए मात्र 35 वोटों की दरकार थी, जबकि सरकार के पास 3 निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त था। लेकिन तीनों निर्दलीय विधायकों सहित पार्टी के 6 विधायकों ने पाला बदलकर खेला कर दिया था। भाजपा के उम्मीदवार की जीत और कांग्रेस सरकार के पतन का दावा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तो पिछले एक सप्ताह से कर ही रहे थे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी अपने गृह राज्य हिमाचल की पल-पल खबर ले रहे थे।
परसों रात तक कांग्रेस के खेमे में मातम का माहौल था। प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कांग्रेस के हारे हुए प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी के द्वारा विजेता हर्ष महाजन को बधाई दी गई, और साथ ही भाजपा को नैतिकता का पाठ भी उनकी ओर से पढ़ाया गया। लेकिन ऐसे पाठों का क्या मोल हो सकता है, जब देश में अब सिर्फ संख्या बल ही सब कुछ बना दिया गया है? देश को लगा कि पंचिंग बैग बन चुकी कांग्रेस एक बार फिर अपनी हार मान चुकी मानसिकता को ही प्रदर्शित कर रही है। जनता इन्हें चुनकर भेजती है, और ये अपने घर को ही आजतक दुरुस्त नहीं कर पा रहे। इन्हें वोट देकर आम लोग अपने वोट की ही बेइज्जती कर रहे हैं।
लेकिन इस बार देर से ही सही लगता है पलटवार करने की चुनौती कांग्रेस नेतृत्व ने ठानी। राहुल गांधी इस बीच कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपने लेक्चर सिरीज के लिए निकल चुके थे। लेकिन रात में ही राहुल, मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस काम के लिए अपने सबसे विश्वस्त व्यक्ति डीके शिवकुमार को जिम्मेदारी सौंपने का तय किया। इसके बाद तो कहानी पूरी तरह से पलट गई। इससे पहले बागी विधायक अपने रंग में थे। परसों मतदान के बाद वे शिमला में ही बने रहने के बजाय हरियाणा सरकार द्वारा सीआरपीएफ की सुरक्षा के तहत पंचकुला पहुंच गये थे। उनकी पार्टी के भीतर मातम पसरा हुआ था। अगली सुबह उन्हें हेलीकाप्टर की सेवा मुहैया कराई गई, क्योंकि सदन के भीतर बजट पारित होना था।
बजट प्रस्ताव के दौरान ही भाजपा की ओर से अविश्वास प्रस्ताव, और एक-दो अन्य विधायकों की अंतरात्मा की आवाज निकलते ही सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार का पतन निश्चित था। ऐसे में इन 6 और 3 निर्दलीय विधायकों की उपस्थिति अनिवार्य थी। इस बात को कल और आज विधान सभा अध्यक्ष कुलदीप पठानिया ने प्रेस वार्ता के दौरान स्पष्ट किया।
कल के अपने बयान में विधानसभा अध्यक्ष ने कहा था, “सरकार की ओर से वित्त विधेयक को पारित कराने से पहले 3 लाइन की व्हिप जारी की गई थी। इसके तहत सभी पार्टी सदस्यों के लिए सदन के भीतर उपस्थिति अनिवार्य थी। लेकिन 6 सदस्य सदन में उपस्थित नहीं थे, इसलिए यह मामला नियम के उल्लंघन के अंतर्गत आता है। मेरे पास संसदीय मामलों के मंत्री हर्षवर्धन सिंह चौहान की ओर से एक याचिका पेश की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मुताबिक मैंने दोनों पक्षों को नोटिस जारी की। दोनों पक्ष के वकील की ओर से डेढ़ से दो बजे तक अपना पक्ष रखा गया। इसके बाद सदन में बिल पारित होना था। अब चार बजे फिर से सुनवाई चालू होगी। उसके बाद जाकर दोनों पक्ष को सुनकर फैसला लिया जायेगा।”
उन्होंने आगे कहा, “सदन में सरकार पूर्ण बहुमत के साथ उपस्थित थी। संख्या बल कांग्रेस के साथ है। व्हिप का उल्लंघन करने पर दलबदल कानून लागू होता है। 6 लोगों पर बहस चल रही है। अगर सरकार के पक्ष से 6 लोगों की संख्या भी कम कर दी जाये तो भी 34 बचते हैं। ऐसे में विपक्ष के 25 और 3 निर्दलीय को भी मिला दें तो 28 होते हैं। हालांकि सदन में विपक्ष के 15 सदस्य निलंबित हैं। जहां तक निलंबन का प्रश्न है तो पूर्व में भाजपा शासन के दौरान भी विपक्षी पार्टियों का निष्कासन आम बात थी। मैं खुद 6 बार का विधायक रहा हूं। वीरभद्र के समय भी यह हुआ है।”
विपक्षी विधायकों के निलंबन पर विधानसभा अध्यक्ष पठानिया ने कहा, “कल जो कुछ मेरे चैम्बर के अंदर हुआ, जैसा कि मैंने हाउस के भीतर भी कहा है, बजट सत्र में कटौती प्रस्ताव पर वोटिंग का समय आया तो मैंने सदन को बताया था कि वोटिंग करनी है, इसलिए सभी माननीय सदस्य अपनी-अपनी सीटों पर बैठ जायें। इसके बावजूद अधिकांश भाजपा सदस्य अपनी सीटों पर नहीं थे। जब मैंने ध्वनि मत से प्रस्ताव पास किया तो बहुमत कांग्रेस के पक्ष में था। उनका प्रस्ताव रिजेक्ट हो गया। सदन को लंच के लिए स्थगित कर दिया गया, तो उन्होंने नारेबाजी करनी शुरू कर दी। लंच ब्रेक के दौरान मेरे दरवाजे को धक्के देकर सिक्यूरिटी और मेरे स्टाफ के साथ अभद्र व्यहार किया गया। वे इस तरह का वातावरण बनाना चाहते थे, जिससे कि कोई अप्रिय घटना हो, मैं कहीं गुस्सा या कोई ऐसी हरकत करूं जिससे वे मुझपर हमला कर सकें। मैंने बार-बार जयराम ठाकुर जी सहित सभी से अनुरोध किया कि अंदर की बात अंदर करेंगे। हम किसी के भी दुश्मन नहीं हैं। मैं अपने पद की मर्यादा के मुताबिक, न आपके विपक्ष और न ही आपके पक्ष में हूँ। मुझे नियम और कानून के मुताबिक निष्पक्ष फैसला करना होता है। लेकिन वे लोग माने नहीं। चैम्बर के भीतर जो कुछ हुआ वह बेहद गंभीर और दर्दनाक था, फूटेज के भीतर सारे तथ्य रिकार्डेड हैं। संसदीय मंत्री ने प्रस्ताव लाया, मैंने वोट के लिए प्रस्तावित किया, और नियम 139 के तहत निलंबन हुआ।”
और आज दोपहर को विधानसभा अध्यक्ष ने 6 बागी विधायकों के भविष्य का फैसला सुनाते हुए प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अपने वक्तव्य में कहा, “मैं यह कहना चाहूंगा कि मैंने उन्हीने अयोग्य घोषित कर दिया है। अब वे सदन के सदस्य नहीं रहे। अभी यह फैसला सब-ज्यूडिस है, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायलय में इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।”
इतनी जल्दी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के पीछे पठानिया का कहना था, “मुझे इसलिए जल्दी करना था, क्योंकि दल-बदल कानून के तहत यह जो ‘आया राम-गया राम’ की राजनीति चल रही है, इस पर लगाम लगनी चाहिए। यदि आप किसी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर शपथ लेते हैं, तो उसी पार्टी की विचारधारा के साथ रहना चाहिए। चूंकि राज्य सभा की वोटिंग में व्हिप का प्रावधान नहीं है, इसलिए मैंने उसे नहीं छेड़ा।”
उन्होंने आगे कहा, “मैं सिर्फ फाइनेंस बिल के तहत दल-बदल कानून को लागू किया है। यह सही है कि वोटर को स्वतंत्र होना चाहिए, और उस पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए। लेकिन वोटर को लोकतंत्र के मूलभूत नींव की भी चिंता करनी चाहिए। संसदीय लोकतंत्र के माध्यम से संसद और विधानसभा के निर्माण के लिए नैतिकता के अनुरूप भी तो काम करना चाहिए। एक माननीय विधायक 80 हजार लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। 40 हजार लोगों के द्वारा वोट देकर वह निर्वाचित होता है। विधायक बनने के बाद जब वह यहाँ आता है तो अपनी मर्जी से वोट डालकर, दो भिन्न राजनीतिक विचारधारा की पार्टियों के बीच की लड़ाई में आप जिस पार्टी से हैं, उसकी एथिक्स को परे हटाना अनैतिकता है। मेरी समझ में सर्वोच्च न्यायलय इस बात का भी संज्ञान लेगा। लेकिन मैंने मुख्यतया दूसरे हिस्से को ध्यान में रखा, जिसमें व्हिप की अवहेलना की गई। उन माननीय सदस्यों ने दल-बदल नियम के प्रावधान का उल्लंघन किया, इसलिए उनकी सदस्यता बर्खास्त की गई है।”
“जिन 6 लोगों के खिलाफ यह याचिका थी, उनमें माननीय सुधीश शर्मा जी, चैतन्य शर्मा, देविंद्र भुट्टो, राजेन्द्र राणा, इंद्र दत्त लखनपाल और रवि ठाकुर थे, जिन पर दल-बदल कानून लागू होता है। इन सभी का संबंध कांग्रेस्ट पार्टी से है।”
मीडिया में कल शाम से ही हिमाचल प्रदेश को लेकर उदासी छाई हुई थी, आज लगभग ब्लैकआउट का माहौल है, क्योंकि अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं किये जा सके। 2024 का आम चुनाव किसी अश्वमेध के घोड़े की मानिंद देश के हर कोने में अपनी पताका लहरा रहा है। ईडी, सीबीआई, आयकर, राज्यपाल के साथ ही साथ दल-बदल जैसे उपायों को आजमा कर एक ऐसे नैरेटिव को गढ़ने में पूरी ताकत झोंक दी गई है, जिसमें 142 करोड़ भारतीय थक कर मान जायें कि दूर-दूर तक भाजपा का कोई विकल्प नहीं बचा। देश का गरीब मतदाता अगर नाराज भी है तो उसके सामने उम्मीद के रूप में अगर कोई विपक्ष खड़ा होने की कोशिश भी करे तो उसे कुचल दो, ताकि सिर्फ एक ही विकल्प सबके सामने दिखे।
फिलहाल झारखंड के बाद अब हिमाचल प्रदेश में भी ऑपरेशन लोटस नाकामयाब कहा जा सकता है। कांग्रेस कल ही बजट पारित करा चुकी है, और सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया जा चुका है। बर्खास्त विधायकों के पास अदालत की शरण में जाने का विकल्प है, लेकिन तब तक किसी भी सूरत में 2024 आम चुनाव संपन्न हो चुके होंगे। पीडब्ल्यूडी मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह लगातार बयान बदल चुके हैं। आम चर्चा में कांग्रेस के भीतर इस बगावत के पीछे राजपरिवार को ही मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जा रहा है। विक्रमादित्य की मां प्रतिभा सिंह कांग्रेस से राज्य में एकमात्र सांसद ही नहीं, प्रदेश अध्यक्ष पद भी संभाल रही हैं। लेकिन पार्टी में बगावत को रोकने में उनकी कोई भूमिका नहीं दिखी। केंद्रीय स्तर पर राज्य में पार्टी के प्रभारी के तौर पर सांसद राजीव शुक्ला की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। राजपरिवार, राजीव शुक्ला, विपक्ष में भाजपा से भी बढ़कर सोशल मीडिया में अडानी हितों पर पिछले एक वर्ष से हो रही चोट को इस सता-पलट की कोशिश के लिए मुख्य वजह बताया जा रहा है।
जो भी हो, फिलहाल राज्य कांग्रेस के लिए संकट के बादल छंट चुके हैं। डीके शिवकुमार और भूपिंदर सिंह हुड्डा अपनी रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष को सौंपेंगे। मुख्यधारा की मीडिया के सूत्रों के मुताबिक, शिवकुमार ने हिमाचल में सुक्खू सरकार से नाराज विधायकों का जिक्र किया है, लेकिन आम चुनाव तक उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बनाये रखने की सिफारिश की है। यह कितना सही और गलत है, यह तो वक्त ही बतायेगा, क्योंकि यह हमला कोई छोटा-मोटा नहीं था। इसके बावजूद मुख्यमंत्री सुक्खू अपने साथ बहुसंख्यक विधायकों को बनाये रखने में सफल रहे। उनके विकल्प के लिए जिनके नाम को आगे किया जा रहा था, और विक्रमादित्य सिंह को उप-मुख्यमंत्री बनाये जाने की सुगबुगाहट चल रही थी, वैसा करना वास्तव में कांग्रेस के लिए आत्महत्या करना होगा। लेकिन आज लाख टके का प्रश्न यह है कि क्या हिमाचल में कांग्रेस से बगावत कर देश को विकल्पहीनता की स्थिति में लाने वाले बागी विधायकों को मिले इस जबर्दस्त सबक से विपक्षी दलों के भीतर की जा रही तोड़फोड़ को लगाम लगने जा रही है या नहीं?
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
+ There are no comments
Add yours