“एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे, चाहे जितना विरोध करना हो कर लो”, “जेल में डाल दूंगा” !
वैसे यह अदा इतनी मौलिक भी नहीं है !
इस देश ने 70 के दशक में संजय गांधी, बंशीलाल, विद्या चरण शुक्ला और ओम मेहता के ठीक ऐसे ही तेवरों को इन्दिरशाही को तबाह करते भी देखा है,
अभी हाल ही में अन्ना आंदोलन के समय आप ही जैसे “एंग्री यंग मैन” मनीष तिवारी, कपिल सिब्बलों के ऐसे ही बयानों के तो आप लोग लाभार्थी भी हैं।
अपने प्यारे शहर इलाहाबाद के रोशनबाग में वहां लड़ती बहादुर बहनों और नौजवानों को संबोधित करते हुए मैंने यही तो कहा था कि हमें मोदी-शाह का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने अपनी फासिस्ट नीतियों और तानाशाही जुल्मो-ज्यादती से आज़ाद भारत के पिछले 70 साल के सबसे बड़े जनांदोलन का आगाज़ कर दिया है।
शाहीन बाग अब एक संज्ञा नहीं सर्वनाम बन चुका है, जो दावानल की तरह पूरे हिंदुस्तान के हर शहर, कस्बे, यूनिवर्सिटी-कालेज तक फैलता जा रहा है।
हमें उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि देश की करोड़ों करोड़ जनता को, अन्यथा अराजनीतिक मानी जानेवाली महिलाओं को तथा युवापीढ़ी को, देश के सर्वोत्कृष्ठ शिक्षण संस्थानों-IITs, IIIM, JNU, दिल्ली विवि, जामिया, TISS, AMU, जादवपुर विवि, उस्मानिया विवि, IISc बंगलोर, इलाहाबाद विवि, BHU- के प्रतिभाशाली, ओजस्वी युवक/युवतियों को वे राजनीति की पाठशाला में, आंदोलनों के दायरे में खींच ले आये।
इसके लिए भी उन्हें धन्यवाद कि पिछले 70 साल में जितना संविधान का Preamble नहीं पढ़ा गया होगा, उतना उन्होंने देश को 1 महीने में पढ़वा दिया, औपचारिक लोकतंत्र के गहराई में जाने का वे कारण बन गए-आज युवापीढ़ी नारा लगा रही, हमें चाहिए भगत सिंह वाली आज़ादी, हमें चाहिए अम्बेडकर वाला लोकतंत्र-राजनैतिक ही नहीं, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र।
उन्हें इस बात के लिए भी धन्यवाद कि अपने दमन और जुल्म से उन्होंने देश को एक नई राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बांध दिया। अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में जो राष्ट्रीय एकता कायम हुई थी और आज़ाद भारत में परवान चढ़ रही थी, उसे अपनी नीतियों और कदमों से वे तो तोड़ना चाह रहे थे, लेकिन हुआ उल्टा, उनके दमन के खिलाफ उभरते जनांदोलन ने सचमुच ही कश्मीर से कोयम्बटूर तक, गौहाटी से गुजरात तक पूरे देश को एक नई लौह एकता के सूत्र में पिरो दिया है।
मोदी ने नए भाजपा अध्यक्ष नड्डा के शपथ ग्रहण के मौके पर बोलते हुए बिल्कुल सही कहा कि आज संघ-भाजपा अपने इतिहास की सबसे बड़ी चुनौती के रूबरू हैं।
यह भी सही कहा कि यह चुनौती महज चुनावी नही है, वरन संघ-भाजपा के मूल्यों और नीतियों के लिए है।
संघ-भाजपा की साम्राज्यवाद- परस्त, करपोरेट-पक्षधर, देश तोड़क, फासीवादी नीतियों के खिलाफ यह उभरता राष्ट्रीय जनांदोलन एक फैसलाकुन लड़ाई बनने की ओर बढ़ रहा है।
धन्यवाद मोदी-शाह अपनी करतूतों से अपनी सियासत की कब्र खोदने के लिए।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं और आजकल लखनऊ में रहते हैं।)
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