शरद पवार का साक्षात्कार: भाजपा तेजी से सिकुड़ती और कमजोर होती जा रही है

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द हिंदू अखबार के साथ एक साक्षात्कार ( 20 मई को प्रकाशित) में शरद पवार से जब कर्नाटक चुनावों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि “बदलाव का यह मूड केवल कर्नाटक तक ही सीमित नहीं है, यह अधिकांश राज्यों में है। अगर आप देश को देखें तो केरल में बीजेपी नहीं, कर्नाटक में बीजेपी नहीं, आंध्र प्रदेश में बीजेपी नहीं, तेलंगाना में बीजेपी नहीं। गोवा में बीजेपी नहीं थी, हालांकि वे सत्ता पर कब्जा करने में कामयाब रहे… महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के विधायकों का एक समूह चला गया, और यहां बीजेपी सत्ता में आ गई। हां, गुजरात में उनकी निश्चित उपस्थिति है लेकिन मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार थी और बीजेपी ने कांग्रेस पार्टी को प्राप्त मैंडेट की चोरी की और फिर शिवराज चौहान सीएम बने। फिर आप जयपुर आएं तो बीजेपी नहीं, यूपी में हां, बीजेपी है। हरियाणा में अंदरुनी हालात देखें तो 100 फीसदी बीजेपी अगले चुनाव में हारेगी। दिल्ली में बीजेपी नहीं है, पंजाब में बीजेपी नहीं है, राजस्थान में बीजेपी नहीं है, पश्चिम बंगाल में बीजेपी नहीं है, बिहार में बीजेपी नहीं है। हिमाचल में कोई बीजेपी नहीं है। असम में हां है। तो, असम, यूपी और गुजरात ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी चुनाव जीतकर सत्ता में है। बीजेपी कई जगहों पर दूसरी पार्टियों के मैंडेट को चोरी कर सत्ता में है। इसलिए, कर्नाटक राष्ट्रीय पैटर्न (बीजेपी विरोधी) का अनुसरण कर रहा है।”

सवाल:कर्नाटक चुनाव के नतीजों को आप कैसे देखते हैं?

जवाब: मैं इसकी उम्मीद कर रहा था। लोगों का मूड बदलाव का था। भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी जैसे कुछ मुद्दों ने भाजपा की सरकार के तहत लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया था। इसलिए मैं इसकी उम्मीद कर रहा था।

सवाल: महाराष्ट्र में पिछले एक हफ्ते में एमवीए (महा विकास अघाड़ी) और मजबूत हुआ है..?

जवाब: हमें मिलकर काम करना होगा। इसलिए एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव सेना को एक साथ जाना होगा। निश्चित रूप से, कर्नाटक के नतीजों ने हमें और अधिक आत्मविश्वास दिया है।

सवाल: राकांपा और कांग्रेस के लिए, एमवीए में शिवसेना के एका साझा का आधार क्या है?

जवाब: समस्या क्या है? जब उद्धव सीएम बने तो कांग्रेस थी, एनसीपी थी। हमने न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय किया, जो हमारे गठबंधन और सरकार का आधार था। और हमने इसे अच्छे से चलाया। सच कहूं तो कांग्रेस और एनसीपी के बीच किसी तरह के वैचारिक मतभेद का सवाल ही नहीं है क्योंकि दोनों की गांधी-नेहरू विचारधारा है। जहां तक ​​शिवसेना की बात है, तो हमें कुछ बातें जानने की जरूरत है। जब आपातकाल लगा था और जब कांग्रेस देश भर में चुनाव हार गई थी, तब (शिवसेना संस्थापक) बालासाहेब ठाकरे ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया था। जब कोई राजनीतिक नेता इतना कड़ा फैसला नहीं ले सकता था तो बालासाहेब ने लिया। उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों के दौरान, बालासाहेब ने कांग्रेस के खिलाफ एक भी उम्मीदवार नहीं खड़ा करने का फैसला लिया। चुनावों के बाद (1980 में) हम सत्ता में आए। मैं कांग्रेस में था। हमने उन्हें चार सीटें दी (शिवसेना को एमएलसी सीटें)। यहां तक ​​कि बालासाहेब की सेना ने भी कांग्रेस के साथ काम किया है, यह इतना मुश्किल नहीं है।

सवाल: राहुल गांधी वी.डी. सावरकर के मुखर आलोचक रहे हैं। सावरकर, जो कि महाराष्ट्र में एक बहुत ही संवेदनशील विषय है,आपने मिस्टर गांधी से इस पर चर्चा की।

जवाब: मैंने (कांग्रेस अध्यक्ष) खड़गे और राहुल से इस विषय से बचने को कहा। हमारी बातचीत के बाद उन्होंने सावरकर के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा।

सवाल:आपने उनसे कहा कि पीछे लौटना और पुराने मुद्दों पर चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है?

जवाब: बिल्कुल। सीएमपी (न्यूनतम साझा कार्यक्रम) के आधार पर हमने यहां सरकार बनाई और उद्धव सीएम बने और हमने उस पर काम करना शुरू किया। आगे बढ़ने का रास्ता भी यही है।

सवाल:क्या आप महाराष्ट्र के बाहर अन्य विपक्षी नेताओं से बात करने की कोई पहल कर रहे हैं?

जवाब: नहीं, हम  (बिहार के मुख्यमंत्री) नीतीश से चर्चा कर रहे हैं, वे यहां थे। मैंने समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव से भी चर्चा की। हम बात करते हैं। नीतीश कुमार ने सुझाव दिया कि हमें पटना में सभी गैर-बीजेपी नेताओं के साथ बैठकर चर्चा करनी चाहिए। मैं पटना जाऊंगा।

सवाल:आपने जो पैटर्न बताया उसे देखकर आपको पूरा भरोसा है कि 2024 में बीजेपी को मात मिल सकती है?

जवाब: मैं नहीं जानता, लेकिन उन्हें पराजित होना चाहिए। नासिक में एक ऐसा मंदिर है, जहां एक नया विवाद खड़ा हो गया है। उर्स उत्सव के दौरान एक मंदिर में देवता को फूल और चादर चढ़ाने की एक प्रथा है। वे (मुसलमान) मंदिर में प्रवेश नहीं करते हैं, लेकिन वे बाहर से चढ़ाते हैं। अचानक किसी ने यह अभियान चलाया कि मुसलमान मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं और भगवान शंकर को चादर चढ़ा रहे हैं। एक वीडियो है, जिसमें आप देख सकते हैं कि मुसलमान बस गेट तक जा रहे हैं, लेकिन उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री (देवेंद्र फडणवीस) ने एसआईटी गठित कर दी है। बीजेपी कार्यकर्ता गंगा से पानी लाए और कथित तौर पर इलाके की सफाई की अगर ऐसी चीजें हो रही हैं, भारत में कहीं भी, खासकर महाराष्ट्र जैसे राज्य में, तो हम इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं? यह सिर्फ एक उदाहरण है। इसलिए, यह राष्ट्रहित में है कि भाजपा को हराना चाहिए। पिछले तीन दिनों में अचानक महाराष्ट्र में तीन साम्प्रदायिक दंगे हो गए- अकोला, अहमदनगर और नासिक।

सवाल:आपने औरंगाबाद, नागपुर और मुंबई में एमवीए की रैलियां की हैं। आप जनता की प्रतिक्रिया को कैसे देखते हैं?

जवाब: प्रतिक्रिया जबरदस्त रही है। हालांकि, हमने रैलियों को स्थगित कर दिया है क्योंकि यहां बहुत गर्मी है। लगभग छह सप्ताह के बाद हम फिर से शुरू करेंगे।

सवाल:इन रैलियों के बारे में, एक धारणा है कि एनसीपी और कांग्रेस भीड़ लामबंद कर रहे हैं और उनके नेता परेशान हैं कि उद्धव ठाकरे को सारा श्रेय मिल जाता है?

जवाब: हमने साथ चलने का फैसला किया है। यह तीनों के बीच का संबंध है, इसलिए मुझे यहां कोई समस्या नहीं दिखती है।

सवाल: क्या आपको लगता है कि उद्धव ठाकरे शिवसेना के व्यापक जनसमर्थन को बरकरार रख पायेंगे?

जवाब: विधायकों ने उद्धव का साथ छोड़ा है, लेकिन शिवसैनिकों ने नहीं। सैनिक उन्हें छोड़ने वालों को सबक सिखाने के लिए उत्सुक हैं।

सवाल: हाल ही में, (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री) ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने कहा कि जहां भी कांग्रेस कमजोर है, उन्हें चुनाव नहीं लड़ना चाहिए और जो भी मजबूत हो उसका समर्थन करना चाहिए।

जवाब: मैं एक ऐसा व्यक्ति हूं, जो सोचता है कि हमें एक साथ बैठकर इन सभी मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए। ये उनके विचार हैं। यह मैंने अखबारों में भी पढ़ा है। मैंने व्यक्तिगत रूप से इन नेताओं से बात नहीं की है और न ही कुछ सुना है। लेकिन, हमें एक साथ बैठना होगा।

मूल रूप से, यह मेरी हार्दिक इच्छा है कि सभी दल एक साथ आएं, यदि कुछ मुद्दे हैं, तो उन्हें हल करने का प्रयास करें और राष्ट्रीय स्तर पर व्यवहार्य विकल्प प्रदान करें। मुझे लगता है कि विभिन्न राज्यों और विभिन्न दलों के कई नेता हैं। उनमें से कुछ के व्यक्तिगत हित या पार्टी हित हैं। मेरे पास पार्टी का हित है। मैंने 14 चुनाव लड़े हैं और सभी सीटों पर सफलतापूर्वक जीत हासिल की है, और पिछले 56 वर्षों से मैं या तो विधानसभा, लोकसभा या राज्यसभा में हूं। इतना लंबा समय मिलने के बाद  मुझे कोशिश करनी चाहिए कि दूसरों को नेतृत्व करने दूं।

सवाल:तो, आप यह संकेत दे रहे हैं कि आपकी कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं रही ?

जवाब : नहीं, मेरी कोई निजी महत्वाकांक्षा नहीं है। मेरी एकमात्र महत्वाकांक्षा पार्टियों को साथ लाना और भाजपा का विकल्प प्रदान करना है।

( 20 मई को द हिंदू में प्रकाशित शरद पवार के साक्षात्कार का कुछ अंश साभार। अनुवाद- सिद्धार्थ)

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