शहादत पर भारी सिंदूर-व्यापार!

याद कीजिए हमारे प्रधानमंत्री मोदी का वह भाषण : मेरे खून में व्यापार है। राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा से सटे बाड़मेर की जन सभा में उन्होंने कहा : मेरी रगों में सिंदूर बह रहा है। सभी सुधिजन इस बात को समझ रहे हैं कि वे भारत सरकार के निर्देश पर हमारी सेना द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ छेड़े गए सीमित युद्ध को दिए गए नामकरण ‘ऑपरेशन सिंदूर (जैसा कि उनका दावा है, इस युद्ध को ऐसा नाम उन्होंने ही दिया था) का भाजपाई राजनीति के लिए लाभ उठाने की कोशिश कर रहे थे। सेना के शौर्य का किसी पार्टी विशेष द्वारा राजनैतिक लाभ उठाने की कोशिश करना टुच्चापन है और भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी इस टुच्चेपन के माहिर खिलाड़ी है।

आखिरकार, किसी भी देश के नागरिकों की राष्ट्रवादी भावनाओं पर किसी पार्टी विशेष का कोई अधिकार नहीं हो सकता। राष्ट्रवाद को किसी पार्टी से जोड़ने का मतलब है, उस पार्टी का समर्थन न करने वाली जनता को गैर-राष्ट्रवादी या देशद्रोही ठहराना। यह बहुत खतरनाक बात है। लेकिन मोदी राज के दस सालों में हम यही देखते आ रहे हैं कि जिसने भी भाजपा या उसके नेताओं के कहे का अनुसरण नहीं किया या संघी गिरोह की हिंदुत्व की सांप्रदायिक-फासीवादी नीतियों के खिलाफ असहमति की आवाज बुलंद की, उसे देशद्रोही करार देकर जेलों में ठूंसने का काम किया गया है।

ताजा उदाहरण प्रो. अली खान की गिरफ्तारी है, जिन्हें बहुत कड़ी शर्तों के साथ ही, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतरिम जमानत दी गई है। ये शर्तें ऐसी हैं कि जेल से बाहर आकर भी उनके संवैधानिक नागरिक अधिकार, लिखने-बोलने का अधिकार, लगभग निलंबित हो गए हैं।

मोदी के दोनों भाषणों को मिलाकर देखें, तो साफ है कि हमारे देश में राष्ट्रवाद आज एक ऐसा व्यापार बन गया है, जिसके कारण अब प्रधानमंत्री की रगों में खून के बजाए सिंदूर बहने लगा है। हमारे देश के बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय के लिए सिंदूर का विशेष महात्म्य है। सिंदूर के साथ जुड़ी जन-भावना को राष्ट्रवाद से जोड़ने का जो खेल मोदी ने शुरू किया है, वह बिहार और बंगाल के चुनाव के मद्देनजर ही है।

अब इन चुनावों में प्रधानमंत्री की रगों में बह रहे ‘असली’ सिंदूर की कुछ बूंदें मांग में भरी जाने वाली ‘नकली’ सिंदूर में मिलाकर इस डिबिया को बिहार और बंगाल में घर-घर बांटा जाये और राष्ट्रवाद के नाम पर वोटों की भीख मांगी जाएगी, तो भी इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। इसके पहले भी वे ऐसा खेला खेल चुके हैं और अपनी असली मां को नकार कर अपने अजैविक (नॉन-बायोलॉजिकल) होने की घोषणा कर चुके हैं।

सब जानते है कि सिंदूर इतना विषाक्त होता है कि उसकी थोड़ी-सी भी मात्रा जैविक शरीर में घुसकर हानि पहुंचाती है। यहां तो रगों में ही सिंदूर बह रहा है और शरीर जिंदा है, तो यह उनके नॉन-बायोलॉजिकल होने की ही पुष्टि करता है। जो जैविक लोग उनके नॉन बायोलॉजिकल होने के दावे की खिल्ली उड़ा रहे थे, अब उनके लिए हमारे प्रधानमंत्री की रगों में बहने वाली लाल तरल वस्तु टेस्ट के लिए उपलब्ध हो सकती है।

यह अलग बात है कि अपनी डिग्रियों की तरह इसकी भी जांच करवाने से वे मना कर दें। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री पर आप सबको भरोसा करना चाहिए कि पहलगाम की आतंकी घटना का ऑपरेशन सिंदूर के जरिए बदला लेने के बाद हमारे प्रधानमंत्री के शरीर में बहने वाला सफेद खून अब लाल सिंदूर में बदल गया है!

बाड़मेर में उन्होंने कहा कि 22 अप्रैल की घटना का बदला 22 मिनट में ले लिया गया। अब हमें यह भले समझ में न आए कि जब 22 मिनट में ही खेला हो गया था, तो तीन दिनों तक हमारी सेना गोला-बारूद क्यों बर्बाद कर रही थी? हमारे सैनिकों की जान गई तो गई, सीमाओं पर रहने वाले कई लोगों की भी जान चली गई, बच्चे अनाथ हो गए और कई माताओं-बहनों के माथे का सिंदूर पुछ गया। क्या हमारे प्रधानमंत्री इसकी जिम्मेदारी लेंगे?

शायद वे चीन और तुर्की को अपने हथियारों की गुणवत्ता जांचने का मौका दे रहे हो। या फिर शायद अमेरिका ने ही कहा हो कि ये 22 मिनट का खेला क्या होता है? अरे, चलने दो तीन-चार दिनों तक यह दीवाली उत्सव। मौका पाकर मैं ही इसके समापन की घोषणा कर दूंगा। जाओ, जाकर आराम करो अपने महल में, 18-18 घंटे काम करते बहुत थक चुके हो। आराम करो और मेरे आयातों को शुल्क मुक्त होने वाली चीजों की सूची बनाओ। बाकी मैं हूं न, निपट लूंगा पाकिस्तान से। दोनों मेरे दोस्त हो, दोनों से मुझे व्यापार करना है।

कांग्रेस के खड़गे ने कहा है कि यह युद्ध नहीं, झड़प थी। पूरी भाजपा इस बयान पर नाराज है और उन पर टूट पड़ी है, क्योंकि इस युद्ध को झड़प मान लिया जाएगा, तो उनका पूरा ‘खेला’ ही खत्म हो जाएगा। इससे हमारे प्रधानमंत्री के नॉन-बायोलॉजिकल से फिर बायोलॉजिकल बन जाने का खतरा है।

हमारे देश की जनता अवतारवाद पर विश्वास करती है, वह नॉन-बायोलॉजिकल नेतृत्व चाहती है। यदि मोदीजी का कायांतरण फिर से जैविक हो जाएगा, तो हमारा देश नेतृत्वविहीन हो जाएगा। यह खतरनाक है, क्योंकि नेतृत्व के बिना हम सर्वनाश की ओर तो बढ़ सकते हैं, विकास की ओर नहीं। देश को सर्वनाश से बचाने और विकास के लिए एक ‘अजैविक विकास पुरुष’ की जरूरत है।

हमें लगता है कि सीमाओं पर जिन जवानों ने अपना खून बहाया, वह व्यर्थ गया। इसलिए कि देश को सिंदूर की जरूरत है और सिंदूर की जगह वे अपना खून बहा गए। अब खून की कोई कीमत रही नहीं, क्योंकि हमारा देश तो आए दिन खून-खराबा देख रहा है। यह खून दंगों को तो भड़का सकता है, लेकिन राष्ट्रवादी जोश को नहीं।

अब देशभक्ति इस पैमाने से नापी जाएगी कि किसकी रगों में कितने प्रतिशत सिंदूर बह रहा है। जिसकी रगों में तीन-चौथाई सिंदूर बह रहा होगा, वही संघी गिरोह का सच्चा अनुयायी कहलाएगा, क्योंकि संविधान बदलने की ताकत उसके शरीर में ही मानी जाएगी।

संघी गिरोह का खेला हमारी सीमाओं पर ही नहीं होना है, सीमा के अंदर और बिहार और बंगाल के चुनाव में भी होना है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ रचा ही इसलिए गया था कि इसके बाद ‘खेला सिंदूर’ खेलना है। युद्ध के मैदान को खेल के मैदान में बदलने का कला-कौशल कोई हमारे मोदीजी से सीखे। इस रचनात्मक काम को वे ट्रंपजी को जरूर पहले ही सीखा आए हैं। सो, उन्हें खेलते-खेलते युद्ध करते और युद्ध करते-करते खेलते पूरी दुनिया देख रही है।

हमारे देश में देशभक्ति के चित्र-विचित्र पैमाने पूरी दुनिया देख रही है। पिछले दस सालों में स्पष्ट रूप से नागरिकों की दो श्रेणियां बन चुकी है- देशभक्त नागरिक और देशद्रोही नागरिक। रगों में सिंदूर का बहना देशभक्ति का नया पैमाना है। लेकिन पुराने पैमाने भी लागू है। कौन क्या पहनता है, क्या खाता है, कौन-सी भाषा बोलता है, इससे आसानी से पता चल जाता है कि कोई नागरिक देशभक्त है या नहीं।

देशभक्त नागरिक का अंदाजा इससे भी चल जाता है कि वह भगवान राम को अपना आराध्य मानता है कि नहीं। लेकिन केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है। पक्का तब माना जाता है, जब वह जोर से “जय श्रीराम” चिल्लाए। इतने जोर से चिल्लाए कि मस्जिद अजान देने वाले और घरों में नमाज पढ़ने वाले भी दहल जाए। जो मुल्लों को जितना ज्यादा दहलाएगा, उसकी देशभक्ति उतनी ही पक्की मानी जायेगी। जिसकी आवाज में दम नहीं है, उसे मस्जिद के सामने डीजे की धुन पर नाचकर अपनी देशभक्ति साबित करने का विकल्प है।

गंगा नदी को मां मानकर और कुंभ के प्रदूषित पानी में डुबकी लगाकर भी देशभक्ति साबित की जा सकती है। एक और पैमाना है, लेकिन है थोड़ा अश्लील, लेकिन है पक्का पैमाना। वह है कि देख लो किसी का प्राइवेट पार्ट कटा-छिला तो नहीं है। है, तो पक्का वह देशभक्त नहीं है। कर्नल सोफिया भले ही ऑपरेशन सिंदूर का चेहरा बन जाएं, लेकिन होगी केवल आतंकियों की बहन है। प्रज्ञा भले ही आतंकी विस्फोटों में शामिल हों, लेकिन रहेगी पक्की देशभक्त ही। पूरी दुनिया हमारी देशभक्ति पर फिदा है।

बाड़मेर के भाषण में हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री ने यह भी बोला है कि जब सिंदूर बारूद में बदलता है, तो क्या परिणाम होता है, यह देश के दुश्मनों और दुनिया ने देखा है। हमारी जनता को इस बात का इंतज़ार है कि मोदीजी की रगों में बहने वाला सिंदूर बारूद में कब बदलेगा?

(संजय पराते अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं)

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