मध्यप्रदेश: दलित का जख्मी पैर निगल रहा जिंदगी, इलाज हेतु आर्थिक मदद की है दरकार !

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देश में इस वक्त चुनाव की सरगर्मी है। लोकसभा चुनाव को लेकर वोटिंग जारी है। इस बीच मध्यप्रदेश के सागर से एक गंभीर मामला सामने आ रहा है। सागर से सटे ढाना के अंतर्गत पिपरई गांव में एक दलित शख्स महेश बंसल का पैर अज्ञात बीमारी की चपेट में है‌। पैर की हालत इतनी खराब है कि पैर का मांस कट-कटकर गिर रहा। पैर देखने में लगता है कि, जैसे पैर सड़ गया हो। इस स्थिति में पीड़ित महेश की शारीरिक हालत चिंतनीय बनी है। महेश ने पैर के इलाज हेतु अपनी संपत्ति तक बेच दी, मगर पैर ठीक नहीं हुआ। अब महेश के पास इलाज के लिए फूटी कौड़ी नहीं है।

वहीं इस स्वास्थ्य जैसे गंभीर मामले पर किसी पार्टी और नेता का ध्यान नहीं है। क्योंकि, मामला दलित व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। यही मामला यदि पंडित, पुरोहित, तिवारी या अन्य ऊंची जाति के व्यक्ति का होता, तो अब तक पीड़ित का इलाज हो चुका होता। समाज आर्थिक और समाजिक रूप से मदद भी कर चुका होता।

सागर बुंदेलखंड इलाके का अहम हिस्सा है, जहां आज भी जातिवाद बहुत ज्यादा है। जब हम सागर शहर से निकलकर पीड़ित महेश बंसल का हाल जानने उनके गांव पिपरई पहुंचे। गांव पथरीली पहाड़ी से सटा हुआ है। गांव में अधिकांश मकान कच्चे और मिट्टी के बने हैं।

पिपरई गांव खांड पंचायत में आता है। पिपरई में करीब 100 घर हैं। यह घर अलग-अलग समुदाय के हैं। वहीं गांव में (बंसल, दलित) समुदाय के तीन घर हैं। जिनमें एक घर महेश बंसल का भी है।

गांव की गोपाल गली में पीड़ित महेश बंसल‌ का घर है। महेश बंसल के घर की हालत खराब है। घर के बाहर एक खाट पर एक कपड़ा बंधा हुआ। इस कपड़े के नीचे बदहाल स्थिति में महेश लेटे हैं। महेश के पैर में बहुत बड़ा घाव है और वह दर्द से कराह रहे हैं।

महेश, पीड़ित

महेश अपना दर्द यूं रखते हैं, “आज से ढाई साल पहले मुझे पैर में एक लकड़ी की फटकार लग गयी थी। इस फटकार से पैर पर एक मामूली सा घाव बन गया था। तब इस घाव का इलाज कराना मैंने शुरू किया। मगर, पैर का घाव मिटने के बजाए, दिनों-दिन बढ़ने लगा। पैर के इलाज के लिए मुझे घर का सामान बेचकर पैसा जुटाना पड़ा। एकजुट हुए पैसे से मैं इलाज कराने लगा। मुझे उम्मीद थी पैर स्वस्थ हो जायेगा। मगर, मेरे पैर का दर्द मेरी तकलीफ बढ़ाता गया। धीरे-धीरे मेरा पैसा पैर के इलाज में खत्म हो गया‌। मगर, पैर का घाव बहुत बढ़ गया। फिर, मैं पैर के इलाज में पैसा लगाने में पूर्णतः असमर्थ हो गया।”

जब हमने यह सवाल किया कि, क्या आपने किसी अधिकारी, विधायक, मंत्री अन्य से पैर के इलाज हेतु आर्थिक मदद नहीं मांगी?

तब महेश बोलते हैं कि, “पैर के इलाज हेतु मैंने सरपंच, विधायक, मंत्री से कई बार आर्थिक मदद की गुहार लगायी है। लेकिन, वहां से मुझे निराशा के‌ सिवा कुछ नहीं मिला।”

महेश आगे दर्द से कराहते और रोते हुए बताते हैं कि, “मैं गरीब हूं तो मेरी कोई सुनवाई नहीं है। अब मैं मरने की हालत में हूं, मुझे बचा लो। अगर ये अधिकारी, नेता सरकार जनता की सेवा के लिए नहीं बने तो किसलिए बने हैं?”

इसके बाद महेश मांग करते हैं कि, “मुझे इतना पैसा नहीं चाहिए कि मैं अपने सिर पर रखूं। मैं दस या पचास लाख की मांग नहीं कर रहा हूं। मेरी चाहत है कि, मुझे इलाज के लिए इतनी‌ आर्थिक सहायता मिले कि, मैं अपना शरीर और जिंदगी बचा सकूं। सरकार, विधायक, अधिकारी यदि मानवजाति को समझते है, तब मेरी मदद करें। यदि उन्हें मनुष्य के प्रति कोई दया ना हो तो मुझे मरते हुए की स्थिति में छोड़ दें।”

महेश की बीमार हालत को लेकर जब हमने उनकी मां कीमती बाई से बातचीत की। तब वह अपना दुख-दर्द बयां करते हुए बताती हैं कि, “मेरे महेश के पैर का इलाज करवाने में 2 लाख 50 हजार रुपए खर्च हो चुका है। इस पैसे की राशि जुटाने के लिए महेश ने बैंड-बाजा सामान, लगभग 100 बकरी, घर के बर्तन तक बेच दिए। जब पैसा खत्म हो गया, तब इलाज के लिए घर का छप्पर, खफरा, चद्दर तक बेच दिया। लेकिन, फिर भी पैर ठीक नहीं हुआ। तब हमने तीन एकड़ खेती बेच कर पैसा इलाज में लगा दिया। आज हम भूमिहीन हो गए। मगर पैर की हालत ठीक नहीं हुई।”

अपने परिवार को लेकर कीमती बाई बताती हैं कि, “मेरे पति का स्वर्गवास हो चुका है। मेरे दो लड़के हैं। एक लड़की है। तीनों बच्चों की शादी हो चुकी है। लड़की और उसके पति भी इसी (पिपरई) गांव में रहते हैं। छोटा बेटा सुनील शादियों अन्य समारोह में बैंड बजाने का काम करता है। बड़े बेटे का स्वास्थ्य खराब है।”

कीमती बाई आगे जिक्र करती हैं कि, “हम झाड़ू बनाने का काम करते हैं। इसी से बमुश्किल हमारा गुजर-बसर होता है। बेटे महेश के साथ हमारा पूरा परिवार दुखी है। मगर गांव के किसी भी व्यक्ति ने हमारी जरा सी भी मदद नहीं की है। यहां तक हमारे पीड़ित बेटे की कोई खबर तक लेने नहीं आता।”

कीमती बाई के परिवार की संसाधन हीनता देखते हुए जब हमने यह सवाल पूछा कि, आपको सरकार की कौन सी योजना का लाभ मिला है? तब वह कहती हैं मुझे तो सरकारी राशन मिलता है। 600 रुपए पेंशन भी मिलती है। लेकिन, कच्चा घर होने के बावजूद आवास योजना का लाभ नहीं मिला।

कीमती बाई कहती हैं कि “मेरे बेटे महेश ने दो हफ्ते से ठीक से खाना नहीं खाया है। खाने में आधा या एक रोटी खाता है। हम केवल इतना चाहते हैं कि सरकार और प्रशासन हमारे बेटे के पैर का इलाज बस करवा दे और हमें कुछ नहीं चाहिए।”

कीमती बाई के बेटे सुनील की पत्नी रामवती कहती हैं कि “हमारे ज्येष्ठ महेश के पैर का इलाज करवाने में हमने बहुत कुछ गवां दिया है। उनको जब हम सरकारी अस्पताल ले जाते है, तब वहां कोई सुनवाई नहीं होती है। बड़ी मुश्किल से हम सरकारी बुन्देलखंड मेडिकल कॉलेज में दो दिन ठहर पाए। लेकिन, अस्पताल में कोई खास इलाज नहीं। हमें केवल कुछ टेबलेट्स थमा दी गयी। फिर, अस्पताल में कहा गया, मरीज को यहां से बाहर ले जाओ।”

रामवती यहीं नहीं रुकतीं आगे वह‌ अपने हालात बताती हैं कि “मेरे पांच बच्चे हैं। इन‌ बच्चों को खाना खिलाने में कठिनाई हो रही है। बच्चों का पेट भूखा ना रहे इसलिए मेरे पति सुनील मजदूरी के लिए शहर गए हैं। फिर, भी हालत यह है कि, हमें कभी 50 रुपए का गेंहू तो कभी 20 रुपए का आटा लेना पड़ता है। सब्जी भी हम 10 रुपए की ही ले पाते हैं। कभी-कभी तो बिना सब्जी के रोटी खाते है, चटनी या प्याज के साथ।”

पीड़ित महेश की बहिन धन्नोबाई से भी हमने बात की। वह कहती हैं कि, “हम भाई को इलाज के लिए बड़ी मुश्किल से 8000 रुपए ही दे पाए। हमारी हालत यह है कि, हम खुद सरकारी जमीन पर घर बना कर निवास कर रहे हैं। मेरा भाई सागर से लेकर भोपाल तक दवाई करवा चुका है, मगर आराम नहीं लगा। हमारे पास इतना पैसा भी नहीं अच्छे अस्पताल में इलाज करा पाएं।”

धन्नोबाई आगे दुखी मन से कहती हैं कि “मेरे बीमार भाई महेश का कोई साथ नहीं दे रहा है। महेश शादी-शुदा था। मगर जब महेश का पैर अस्वस्थ हुआ है, तब महेश की पत्नी भी साथ छोड़कर चली गयी है। अगर, महेश की पत्नी उसके साथ होती, तब महेश को एक हौसला और सहारा मिलता।”

गांव के लोग

वहीं, जब हमने गांव के कुछ लोगों से महेश बंसल‌ के स्वास्थ्य को‌ लेकर चर्चा की, तब शंकर कुर्मी सहित कुछ लोग बताते हैं कि हम पीड़ित महेश की रुपए-पैसे की मदद नहीं कर सकते। हां हम एक एक-दो दिन साथ में खड़े जरूर हो सकते हैं। गांव में ज्यादातर एक दो-एकड़ जमीन वाले किसान हैं। जो गरीब हैं। वो क्या ही इलाज के लिए आर्थिक मदद करेंगे।

महेश के इलाज की मदद के लिए हमने सागर कलेक्टर से भी बात की। तब कलेक्टर ने पीड़ित महेश का विवरण और वीडियो मांगा। हमने कलेक्टर को महेश के बारे जानकारी देते हुए महेश का वीडियो भी भेजा। मगर, अभी कलेक्टर के यहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है।

(मध्य प्रदेश से सतीश भारतीय की रिपोर्ट।)

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