अरुणाचल प्रदेश में 8 वर्ष तक की छोटी लड़कियों की तस्करी की गई, उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेल दिया गया और इस कुकर्म में पुलिस और सरकारी अधिकारियों कि संलिप्तता सामने आई है। अरुणाचल प्रदेश में राज्य में चल रहे बाल तस्करी और वेश्यावृत्ति गिरोह के खिलाफ कार्रवाई में गिरफ्तार किए गए 21 लोगों में एक पुलिस उपाधीक्षक और स्वास्थ्य सेवा निदेशालय में एक उप निदेशक सहित कई सरकारी कर्मचारी शामिल हैं। पुलिस का कहना है कि आरोपी असम के गांवों में गरीब घरों को निशाना बनाते थे और लड़कियों के माता-पिता से उन्हें बेहतर जीवन का वादा करके भेजने के लिए कहते थे।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार पिछले 10 दिनों के दौरान राज्य की राजधानी ईटानगर और उसके आसपास तीन अलग-अलग स्थानों से पुलिस ने पांच नाबालिग लड़कियों- एक 10 साल की, एक 12 साल की और तीन साल की- को बचाया है। सभी पांच लड़कियों को असम के गांवों से तस्करी करके ईटानगर लाया गया था। पुलिस ने कहा कि उनमें से दो- 10 वर्षीय और 12 वर्षीय – की ईटानगर में तस्करी की गई थी जब वे केवल 8 वर्ष की थीं।
अब तक गिरफ्तार किए गए 21 लोगों में से 10 पर पीड़ितों की तस्करी करने, ग्राहकों को बुलाने और पीड़ितों को ग्राहकों तक ले जाने का आरोप है। अन्य 11 वे लोग हैं जिनकी पहचान ‘ग्राहकों’ के रूप में की गई है जिन्होंने कथित तौर पर पीड़ितों का यौन उत्पीड़न किया था। इनमें अरुणाचल पुलिस के डिप्टी एसपी बुलंद मारिक शामिल हैं; स्वास्थ्य सेवा निदेशालय के उप निदेशक डॉ. सेनलर रोन्या; तोई बागरा, अरुणाचल पुलिस में एक कांस्टेबल; ताकम लैंगडिप, लोक निर्माण विभाग के एक सहायक अभियंता; और मिची ताबिन, ग्रामीण कार्य विभाग के एक कनिष्ठ अभियंता।
गिरफ्तार आरोपियों पर आईपीसी की धारा 373 के तहत, जो वेश्यावृत्ति के लिए नाबालिगों को खरीदने से संबंधित है तथा पॉक्सो अधिनियम और अनैतिक तस्करी अधिनियम के तहत आरोप हैं।
राजधानी पुलिस के अनुसार उसे 4 मई को एक बाल तस्करी सह वेश्यावृत्ति गिरोह के बारे में जानकारी मिली थी। प्रारंभिक जानकारी यह थी कि दो नाबालिग लड़कियों को तस्करी करके पड़ोसी राज्यों से लाया गया था और उनका दुरुपयोग किया जा रहा था।” दो स्थानों पर छापेमारी और चार लड़कियों को बचाने के बाद, पुलिस को पता चला कि बाल तस्करी गिरोह का नेतृत्व दो बहनें कर रही थीं- पुष्पांजलि मिली, जो ईटानगर में रहती हैं और वहां ब्यूटी पार्लर चलाती हैं, और पूर्णिमा मिली, जो गुवाहाटी में रहती हैं। दोनों मूल रूप से असम के धेमाजी जिले के रहने वाले हैं।
पुलिस का कहना है कि आरोपी अपने गृह जिले से, गरीब घरों को लक्षित करते हैं और लड़कियों के माता-पिता को बताते हैं कि वे उन पर भरोसा कर सकते हैं और वे बेहतर गुणवत्ता वाला जीवन प्रदान करेंगे। लड़कियों को अलग-अलग वर्षों में यहां लाया गया था। एक को 2020 में लाया गया, एक को 2022 में… एक-दो महीने तक उनसे पार्लर में काम कराया जाता है, लेकिन उसके बाद उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है।
एक पीड़िता को 2020 में यहां लाया गया था, उस वक्त वह 8 साल की थी। उसके बाद वह भागने में भी कामयाब हो गई थी, लेकिन उसे एक बार फिर रिंग में शामिल होने के लिए वापस लाया गया। आरोपियों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाए थे जहां वे पीड़ितों की तस्वीरें “दरों” के साथ साझा करते थे।
इन समूहों में बड़ी संख्या में लोग थे, लेकिन 4 मई को गिरफ्तारियों का पहला सेट होने के बाद, लोगों ने उन्हें छोड़ना शुरू कर दिया और वे टूट गए… गिरफ्तार किए गए लोग वे हैं जिनके पास कई सबूत हैं जो उनकी ओर इशारा कर रहे हैं – वित्तीय लेनदेन के लिए उन्होंने कहा, “प्रस्तावित दरों”, आरोपियों के आवासों या हमारे रडार में मौजूद दो होटलों आदि के स्थानों का पता लगाया जाता है।
18 गिरफ्तारियों और चार बचावों के शुरुआती दौर के बाद, पुलिस ने चिंपू में एक होटल के मालिक और प्रबंधन करने वाले तीन अन्य लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें एक पति और पत्नी – दुलाल बासुमतारी और दीपाली बासुमतारी शामिल हैं – जो मूल रूप से असम के उदलगुरी के रहने वाले हैं। उनके पास से एक 15 वर्षीय लड़की को बचाया गया, और पुलिस ने कहा कि वह उनके पैतृक गांव से थी और दंपति द्वारा उसका पालन-पोषण किया जा रहा था। पुलिस ने कहा कि किशोरावस्था में पहुंचने पर कथित तौर पर उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेल दिया गया था।
भारत में लापता महिलाओं और बच्चों पर एनसीआरबी की रिपोर्ट में वर्ष 2016, 2017 और 2018 में जारी ‘भारत में वार्षिक अपराध संबंधी रिपोर्ट’ के आंकड़ों को आधार बनाया गया है।
वर्ष 2019 में सुप्रीमकोर्ट ने एनसीआरबी को लापता व्यक्तियों (विशेषकर महिलाओं और बच्चों) से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण करने का निर्देश दिया था, ताकि इन व्यक्तियों की तस्करी किये जाने वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सके।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख आंकड़े इस प्रकार हैं:
देश में लापता होने वाली महिलाओं और बच्चों की सर्वाधिक संख्या के मामले में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर हैं। इन दोनों राज्यों में वर्ष 2016, 2017 और 2018 के दौरान सभी राज्यों की तुलना में लापता बच्चों और महिलाओं के मामलों की अधिकतम संख्या दर्ज की गई।
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016, 2017 और 2018 के दौरान महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा महिलाएं लापता हुईं। महाराष्ट्र में वर्ष 2016 में 28,316 महिलाएं, वर्ष 2017 में 29,279 और 2018 में 33,964 महिलाएं लापता हुईं।
महाराष्ट्र के मुंबई और पुणे में ऐसी घटनाओं की संख्या सबसे अधिक दर्ज की गई, मुंबई में जहां वर्ष 2017 और 2018 में क्रमशः 4,718 और 5,201 महिलाएं लापता हुईं, वहीं पुणे में समान अवधि के दौरान क्रमशः 2,576 और 2,504 महिलाएं लापता हुईं।
पश्चिम बंगाल में वर्ष 2016, 2017 और 2018 के दौरान लापता महिलाओं की संख्या क्रमशः 24,937, 28,133 और 31,299 थी।मध्य प्रदेश में वर्ष 2016, 2017 और 2018 के दौरान क्रमशः 21,435, 26,587 और 29,761 महिलाओं के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज की गई।
वर्ष 2016, 2017 और 2018 के दौरान देश भर में क्रमशः 63,407, 63,349 और 67,134 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज की गई।वर्ष 2016, 2017 और 2018 के दौरान सर्वाधिक लापता बच्चों की रिपोर्ट क्रमशः महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में दर्ज की गई।
इस रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश के इंदौर में सर्वाधिक लापता बच्चों से संबंधित रिपोर्ट में यह संख्या वर्ष 2017 और 2018 के दौरान क्रमशः 596 और 823 थी। मध्य प्रदेश के ही सतना ज़िले में लापता बच्चों की संख्या वर्ष 2017 के 360 से बढ़कर वर्ष 2018 में 564 हो गई।
पश्चिम बंगाल के कोलकाता ज़िले में वर्ष 2018 के दौरान लापता बच्चों की सर्वाधिक संख्या (989) पाई गई। बांग्लादेश की सीमा से सटे नादिया ज़िले में लापता बच्चों की संख्या वर्ष 2017 के 291 से बढ़कर वर्ष 2018 में 474 हो गई।
भारत में चाइल्ड और वुमन राइट्स को बड़ा झटका देते हुए युनाइटेड नेशन्स ने विगत वर्षों में एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके मुताबिक भारत मानव तस्करी का बड़ा बाजार बन चुका है और देश की राजधानी दिल्ली मानव तस्करों की पसंदीदा जगह बनती जा रही है, जहां देश भर से बच्चों और महिलाओं को लाकर ना केवल आसपास के इलाकों बल्कि विदेशों में भी भेजा जा रहा है।
अपनी संस्कृति के लिए दुनियाभर में मशहूर भारत तेजी से मानव तस्करी के लिए बदनाम हो रहा है। भारत में मानव तस्करी को लेकर यूएन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 2009 से 2011 के बीच लगभग 1,77,660 बच्चे लापता हुए जिनमें से 1,22,190 बच्चों को पता चल सका, जबकि अभी भी 55 हजार से ज्यादा बच्चे लापता हैं जिसमें से 64 फीसदी यानी लगभग 35,615 नाबालिग लड़कियां हैं। वहीं इस बीच करीब 1 लाख 60 हजार महिलाएं लापता हुई जिनमें से सिर्फ 1 लाख 3 हजार महिलाओं का ही पता चल सका। वहीं लगभग 56 हजार महिलाएं अब तक लापता हैं (सभी आंकड़े एनसीआरबी की गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट से लिए गए हैं)।
मानवाधिकारों के लिए काम करने वालों के मुताबिक कानून का लचर रवैया मानव तस्करी को रोक पाने में असफल है। कानून में तमाम तरह की धाराएं दी गई हैं। लेकिन पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती। कानून का सख्ती से पालन होना चाहिए।
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली एक ट्रांसिट प्वाइंट के तौर पर मानव तस्करों के लिए पसंदीदा जगह बनती जा रही है जहां देश के कई हिस्सों से लाकर बच्चों और महिलाओं को दूसरी जगहों पर भेजा जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011-12 में एनजीओ की मदद से 1532 बच्चों को रेस्क्यू किया गया। वहीं दिल्ली से लापता बच्चों की बात करें तो साल 2009-2011 के बीच लापता हुए लगभग 3,094 बच्चों का अबतक कोई सुराग नहीं लग पाया है जिनमें से 1,636 लड़कियां हैं। तो वहीं इस दौरान गायब हुईं लगभग 3,786 महिलाएं भी अबतक लापता हैं (सभी आंकड़े एनसीआरबी की गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट से लिए गए हैं)। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में तस्करी कर लाए गए बच्चों और महिलाओं की मांग खूब है।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार एवं कानूनी मामलों के जानकार हैं)