झारखंड: ‘मोदी हटाओ, लोकतंत्र बचाओ’ नारे के साथ ‘लोकतंत्र बछाबअना’ यात्रा शुरू

रांची। झारखंड के जन संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक सामूहिक अभियान के तहत लोकतंत्र बचाओ (आबुआ झारखंड, अबुआ राज) अभियान के माध्यम से ‘मोदी हटाओ, लोकतंत्र बचाओ’ नारे के साथ “लोकतंत्र बछाबअना (नम्हैं झारखंड, नम्हैं राजी)” यात्रा राजधानी रांची से शुरू किया है, जो राज्य के सभी 14 लोकसभा क्षेत्रों में जन संपर्क व जनजागरण करेगी।

इस कड़ी में 24 जनवरी, 2024 को लोहरदगा संसदीय क्षेत्र के लिए “लोकतंत्र बछाबअना (नम्हैं झारखंड, नम्हैं राजी)” यात्रा लोहरदगा से गुमला पहुंची। यह यात्रा 26 जनवरी तक लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में रहेगी। 23 जनवरी को भंडरा और सेन्हा प्रखंडों में जन संपर्क किया गया एवं 24 जनवरी को किस्को व गुमला के घाघरा, बिशुनपुर और डुमरी में सभा की गयी।

यह यात्रा 2024 लोकसभा चुनाव में झारखंड, देश, लोकतंत्र और संविधान को बचाने की जन संपर्क यात्रा है। इस अभियान के तहत राज्य के सभी 14 लोकसभा क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव से पहले जन जागरण कार्यक्रमों के तहत जन सभा, कार्यशाला, यात्रा और वॉलंटियर को प्रशिक्षण और लोगों को संगठित किया जा रहा है।

यात्रा के दौरान जन सभाओं और जन संपर्क कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा। यात्रा में केंद्र सरकार की जन विरोधी नीतियों पर चर्चा की जा रही है। पिछले दस सालों में आदिवासियों-मूलवासियों एवं उनके जल, जंगल, ज़मीन और खनिज संपदाओं पर विशेष हमले हुए हैं। मणिपुर में आदिवासियों, खासकर के महिलाओं पर हुई राज्य प्रायोजित हिंसा ने आदिवासियों के प्रति भाजपा और मोदी सरकार की सोच उजागर हो गयी है।

सभाओं में चर्चा हो रही है कि किस तरह से आरएसएस व भाजपा आदिवासियों की एकता को तोड़ने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपना रही है। आदिवासियों को धर्म के नाम पर बांटने की कोशिश की जा रही है। भाजपा व आरएसएस द्वारा आदिवासियों को सरना-ईसाई के नाम पर आपस में लड़ाना, उनकी ज़मीन को लूटना, आदिवासियों के स्वतंत्र अस्तित्व को खत्म करना और देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का खेल है।

साथ ही, आरक्षण के नाम पर आदिवासियों को दिग्भ्रमित किया जा रहा है। आरएसएस, जनजाति सुरक्षा मंच व भाजपा द्वारा सरना आदिवासियों में झूठ फैलाया जा रहा है कि उन्हें नौकरी इसलिए नहीं मिल रही है क्योंकि ईसाई आदिवासी आरक्षण पर कब्जा कर ले रहे हैं। पूरे देश में विभिन्न सरकारी नौकरियों में आदिवासियों के लिए लगभग 8% (कुल जनसंख्या के आधार पर) नौकरी आरक्षित है। लेकिन अधिकांश उपक्रमों जैसे केंद्र सरकार के विभिन्न उपक्रम, नौकरशाही, विश्वविद्यालयों आदि में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों का आधा से ज़्यादा खाली हैं। वहीं दूसरी ओर, सवर्णों का (कुल जनसंख्या के 10-15%) 50% से भी अधिक सीटों पर कब्जा है।

लोहरदगा, गुमला क्षेत्र खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद बड़े पैमाने पर पलायन के लिए मजबूर हैं। ऊपर से मनमाने ढंग से थोपी हुई नोटबंदी, लॉकडाउन, महंगाई, बेरोज़गारी, कम मजदूरी दर, कुपोषण, कमज़ोर शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था ने मेहनतकश जनता का जीना मुश्किल कर दिया है।

यात्रा में 2024 लोकसभा चुनाव के महत्त्व पर चर्चा के साथ लोगों को अपने जल, जंगल, जमीन, झारखंड, देश, संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

यात्रा में फुलजेंसिया बिलुंग, ज्योति कुजूर, मंथन, प्रवीर पीटर, रोज़ खाखा, टॉम कावला, सिराज दत्ता, सिलास बारा, सरिता एक्का, शनियारो देवी, आलोका कुजूर, योगेंद्र भगत आदि शामिल है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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