महाकुंभ-2025: भीड़ की गिनती करने की कोई सटीक विधि नहीं

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प्रयागराज में महाकुंभ मेले के पहले स्नान पर्व मकर संक्रांति पर 3.5 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के संगम पर स्नान करने का दावा है। मुख्य पर्व 29 जनवरी को है, उस दिन इससे कई गुना ज्यादा श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। कुंभ में आने वाले यात्रियों की गणना का काम 19वीं सदी से ही शुरू हुआ था और अलग-अलग समय पर श्रद्धालुओं की गिनती के विभिन्न तरीके अपनाए गए।

साल 1882 के कुंभ में अंग्रेजों ने संगम आने वाले सभी प्रमुख रास्तों पर बैरियर लगाकर गिनती की थी। इसके अलावा रेलवे टिकट की बिक्री के आंकड़ों को भी आधार बनाकर कुल स्नान करने वालों की संख्या का आकलन किया गया था और उस वक्त करीब दस लाख लोग मेले में पहुंचे थे।

मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की गिनती नावों और ट्रेनों, बसों और निजी वाहनों से आने वाले लोगों की संख्या से भी की जाती है। इसके अलावा मेले में साधु-संतों और उनके कैंप में आने वाले लोगों की संख्या को भी श्रद्धालुओं की कुल संख्या में जोड़ा जाता है और मेले से जुड़ी सड़कों पर गुजरने वाली भीड़ को भी ध्यान में रखा जाता है।

सबसे ज्यादा भीड़ अमावस्या पर होती है और प्रयागराज कुंभ मेला प्रशासन का अनुमान है कि उस दिन स्नान करने वालों का आंकड़ा दस करोड़ के आस-पास होगा। माना जा रहा है कि इस बार के महाकुंभ में करीब 45 करोड़ श्रद्धालु स्नान करेंगे।

हालांकि श्रद्धालुओं की इतनी बड़ी संख्या को लेकर कई तरह के सवाल भी उठते हैं लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि इस धार्मिक आयोजन में स्नान करने वालों यानी भीड़ के आंकड़े जुटाए कैसे जाते हैं?

प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए अब अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन भीड़ के आंकड़े पहले भी आया करते थे और स्नान पर्वों पर भीड़ के तमाम रिकॉर्ड बनते और टूटते थे। आंकड़ों पर सवाल भी हमेशा उठते रहे हैं।

प्रयागराज के मंडलायुक्त के मुताबिक, इस बार कुंभ मेले में आए श्रद्धालुओं की गिनती के लिए एआई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। महाकुंभ में श्रद्धालुओं की सटीक गिनती के लिए इस बार एआई से लैस कैमरे लगाए गए हैं। यह पहली बार है जब एआई के जरिए श्रद्धालुओं की सटीक संख्या जानने की कोशिश की जा रही है।

इसके अलावा श्रद्धालुओं को ट्रैक करने के लिए कुछ और भी इंतजाम किए गए हैं। मेला क्षेत्र में दो सौ जगहें ऐसी हैं, जहां पर बड़ी संख्या में अस्थाई सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

इसके अलावा प्रयागराज शहर के अंदर भी 268 जगहों पर 1107 अस्थाई सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। सौ से ज्यादा पार्किंग स्थलों पर भी सात सौ से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं, जिनसे बाहर से आने वाले यात्रियों का अनुमान लगाया जाता है।

श्रद्धालुओं की गिनती के लिए एआई लैस कैमरे हर मिनट में डेटा अपडेट करते हैं। ये सिस्टम सुबह तीन बजे से शाम 7 बजे तक पूरी तरह से सक्रिय रहेंगे। चूंकि मुख्य पर्वों पर स्नान काफी सुबह ही शुरू हो जाता है इसलिए इन्हें उससे पहले ही एक्टिव कर दिया जाता है।

2013 से पहले श्रद्धालुओं की गिनती के लिए मेला के डीएम और एसएसपी की रिपोर्ट को ही सच माना जाता था और उनकी रिपोर्ट इसी आधार पर तैयार होती थी कि कितनी बसें आईं, कितनी ट्रेनें आईं और उनसे कितने लोग उतरे। निजी वाहनों पर भी नजर रखी जाती थी। इसके अलावा अखाड़ों से भी उनके यहां आने वाले श्रद्धालुओं की जानकारी ली जाती थी।

हालांकि वास्तविक संख्या बता पाना अभी भी बहुत मुश्किल है क्योंकि तमाम यात्री अलग-अलग जगहों पर जाते हैं और यहां तक कि अलग-अलग घाटों पर भी जाते हैं। ऐसे में उनकी गिनती एक बार से ज्यादा ना हो, ऐसा कहना बहुत मुश्किल है।

भीड़ को नापने का कोई परफेक्ट मैकेनिज्म नहीं है, आज भी सिर्फ अनुमान ही लगाया जा रहा है भले ही हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हों।

सन 2013 के कुंभ में पहली बार सांख्यिकीय विधि से भीड़ का अनुमान लगाया गया था। इस विधि के अनुसार, एक व्यक्ति को स्नान करने के लिए करीब 0.25 मीटर की जगह चाहिए और उसे नहाने में करीब 15 मिनट का समय लगेगा। इस गणना के मुताबिक एक घंटे में एक घाट पर अधिकतम साढ़े बारह हजार लोग स्नान कर सकते हैं।

इस बार कुल 44 घाट बनाए गए हैं जिनमें 35 घाट पुराने हैं और नौ नए हैं। यदि सभी 44 घाटों पर लगातार 18 घंटे स्नान कर रहे लोगों की संख्या जोड़ी जाए तो यह संख्या प्रशासन के दावे से काफी कम बैठती है, मुश्किल से एक तिहाई।

मान लीजिए कि हर घंटे में एक लाख लोग ट्रेनों से बाहर भेजे जा रहे हैं तो 24 घंटे में 24 लाख लोग ही तो जाएंगे। अन्य साधनों से आने वालों को भी इतना मान लीजिए और प्रयागराज के स्थानीय लोगों को भी जोड़ लीजिए।

यानी बहुत ज्यादा हुआ तो एक करोड़। इससे ज्यादा संख्या तो कहीं से भी तर्कसंगत नहीं लगती। कुल मिलाकर यह सब भारी-भरकम बजट को जस्टीफाई करने की कोशिश है।

जानकार बताते हैं कि जितनी संख्या प्रशासन बताता है, मीडिया वही छाप देता है लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था। पहले अखबार और मीडिया हाउस अपनी तरफ से, अपने रिपोर्टरों और फोटोग्राफरों से जानकारी लेते थे और फिर अपने आधार पर भी आंकड़ों का अनुमान लगाते थे।

(शैलेन्द्र चौहान लेखक-साहित्यकार हैं और जयपुर में रहते हैं)

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