रांची। मनरेगा कानून को देश में लागू हुए 14 वर्ष पूरे होने पर रांची एचआरडीसी में झाररखण्ड नरेगा वाच का राज्य सम्मेलन दो फ़रवरी को हुआ। इसमें प्रख्यात अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज ने सम्मेलन में कहा कि मनरेगा कानून से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति को काफी हद तक सुदृढ़ किया जा सकता है। गांव-गांव में बंजर भूमि को खेती योग्य बनाना, पशुओं के चरागाह क्षेत्रों का निर्माण, जल संरक्षण के कार्य, फलदार वृक्षारोपण, संपर्क पथ निर्माण आदि कई संभावनाएं हैं।
उन्होंने कहा कि यह कानून ऐसे ही राज्यों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था। दुःख की बात है कि आज सरकार इस कानून का इस्तेमाल सिर्फ दूसरी योजनाओं को पूर्ण करने यथा शौचालय निर्माण, इंदिरा आवास निर्माण जैसी योजनाओं तक सीमित रख रही है। इसके कारण लोगों के रोजगार मिलने के अवसर सीमित हो रहे हैं।
इस राज्य में पिछले पांच वर्षों में अनुसूचित जाति एवं जनजातियों की भागीदारी मनरेगा में निरंतर कम हुई है। 2015-16 में इन दोनों समुदायों की भागीदारी 51.20 प्रतिशत थी, वह घट कर 2019-20 में महज 35.79 रह गई है। इसी तरह 2015-16 में 100 दिन काम पूरा करने वाले परिवारों की संख्या 174252 थी जो घटते हुए 2018-19 में 25991 हो गई।
उन्होंने कहा कि इस वित्तीय वर्ष में अब तक महज 21003 परिवारों ने 100 दिन काम पूरा किया है। यह गिरावट झारखंड जैसे गरीब राज्य के लिए काफी चिंता का विषय है। वैसे तो मजदूर किसान सरकार के मजदूर विरोधी रवैये के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार उन्हें हमेशा निराश करती रही है। अभी अगले वित्तीय वर्ष के लिए प्रस्तावित मनरेगा बजट में गत वर्ष की तुलना में की गई कटौती इसका साफ उदाहरण है।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के विशेष आयुक्त के पूर्व राज्य सलाहकार सदस्य बलराम ने कहा कि मनरेगा कानून मनरेगा श्रमिकों को अपने ही रहवास क्षेत्र में प्रतिवर्ष 100 दिन काम की गारंटी देता है। पारदर्शिता और प्रशासनिक अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करता है। यह एकमात्र देश का पहला कानून है, जिसमें ग्राम सभाओं और पंचायतों को सशक्त करने का पूरा-पूरा मौका प्रदान करता है, लेकिन 14 वर्षों बाद भी सरकारी मशीनरी कानूनी प्रावधानों को जमीनी धरातल पर उतारने में असफल हो रही है, जिसका सीधा असर राज्य के उपेक्षित ग्रामीणों खासकर मनरेगा श्रमिकों पर पड़ रहा है।
सरकार का मजदूरों के प्रति नकारात्मक मानसिकता इस बात से साफ झलकती है कि आज राज्य की न्यूनतम कृषि मजदूरी अकुशल श्रमिकों के लिए 257.29 रुपये है, जबकि यहां मनरेगा मजदूरों को सिर्फ 171 रुपये दैनिक मजदूरी दी जा रही है। यह देश के 29 राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे कम मजदूरी है।
उन्होंने कहा कि कानून में योजनाओं के चयन का अधिकार ग्राम सभाओं को है, लेकिन राज्य सरकार कानून लागू होने के समय से ही योजनाओं को ग्रामीणों पर ऊपर से थोपने का काम करती रही है। एक समय सभी पंचायतों में 50-50 कुंए खोदने का आदेश दिया। 2015-16 में सभी गांवों में डोभा खोदने का फरमान राज्य से जारी किया गया। जबकि उसी वर्ष ग्राम सभाओं ने अपने गांवों के लिए विभिन्न प्रकार की दस लाख से ज्यादा योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर चयन किया था।
उन्होंने कहा कि संविधानिक संस्था ग्राम सभा के भावनाओं का इस तरह सरकार ठेस पहुंचाएगी तो ऊपर से थोपी गई योजनाओं के साथ जनता खुद को जोड़ नहीं पाती है और ऐसी मनरेगा योजनाएं बिचैलियों की योजना बनकर रह जाती हैं।
राज्य के विभिन्न जिलों से आए लोगों ने अपने-अपने विचार रखे। इसमें पिछले पांच सालों के दरमियान राज्य के विभिन्न बैंकों में मजदूरों के 29.48 करोड़ रुपये रिजेक्टेड रहने तथा विगत 24 दिसंबर 2019 से पूरे राज्य में करीब 83.23 करोड़ मजदूरी भुगतान लंबित रहने जैसे मुद्दों को रखा गया। सदस्यों ने यह भी बताया कि यहां इस राज्य में शिकायत निवारण प्रणाली लगभग ध्वस्त हो चुकी है।
राज्य एवं जिला स्तर पर स्थापित टोल फ्री नंबर में दर्ज शिकायतों पर अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते हैं। कानून की धारा 12 के तहत गठित राज्य रोजगार गारंटी परिषद की आखरी बैठक 2017 जुलाई माह में हुई थी। इसमें लिए गए निर्णयों पर भी अमल नहीं किया गया।
कानून की धारा 27 (1) में जन शिकायतों के निवारण के लिए सभी जिलों में मनरेगा लोकपालों की नियुक्ति अनिवार्य की गई है, लेकिन पिछले तीन सालों से अधिकांश जिलों में लोकपाल के पद खाली पड़े हैं। इसी प्रकार भारत सरकार और सामाजिक संगठनों के व्यापक दबाव के बाद कानून की धारा 17 (2) के अन्तर्गत ग्राम सभाओं के माध्यम से मनरेगा स्कीमों की नियमित सामाजिक अंकेक्षण 2017 से प्रारंभ की गई है। इन तीन वर्षों में योजना क्रियान्वयन से संबंधित 56012 मामलों की पुष्टि हुई है।
जिनमें 37.65 करोड़ राशि के दुरुपयोग साबित हुए हैं। इसमें से अब तक सिर्फ 14 करोड़ राशि ही सरकार वसूल कर पाई है। लेकिन राज्य सरकार ग्राम सभाओं द्वारा संपुष्ट और ज्यूरी सदस्यों द्वारा निर्णित अधिकांश मुद्दों पर ससमय कार्रवाई नहीं कर रही है।
सम्मेलन में ‘नरेगा वाच’ के भावी रणनीतियों पर भी लोगों ने अपने मंतव्य रखे, जिसमें मनरेगा मजदूरी को बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय बैठकें आयोजित करने, ग्रामीण विकास विभाग के सचिव, विभागीय मंत्री एवं मुख्यमंत्री से मिलकर मांग पत्र सौंपने और एक मई को विशाल मजदूर रैली आयोजित करने का निर्णय लिया गया।
बैठक में मुख्य रूप से अनिमा पन्ना, मुन्नी देवी, अशर्फी नंद प्रसाद, सिराज दत्ता, विश्वनाथ सिंह, हेमन्त मिंज, अफजल अनीश, जयसिंह पुर्ती, पियाली बोस सहित कई लोग शामिल रहे।
(रांची से जनचौक संवाददाता विशद कुमार की रिपोर्ट।)