बाढ़ राहत के नाम पर बिहार में कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना पर उठे सवाल

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पटना। बिहार के सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र सीमांचल के ग्रामीणों के लिये केंद्र व राज्य सरकार द्वारा कोसी मेची नदी जोड़ परियोजना को लागू कर बाढ़ से राहत दिलाने की कोशिश अभी से ही सवालों के घेरे में है।

पिछले महीने, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना सहित राज्यों में बाढ़ नियंत्रण उपायों और सिंचाई परियोजनाओं के लिए 11,500 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा करते हुए कहा था कि केंद्र सरकार बाढ़ का सामना कर रहे बिहार की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है। 

उधर कोसी नव निर्माण मंच ने कोसी मेची नदी जोड़ परियोजना से बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई के किए जा रहे सरकारी दावों और सरकार के साइट पर उपलब्ध दस्तावेजों में भारी बेमेल पाया है। इसलिए सरकार से मांग की है कि इस परियोजना के यदि और नए दस्तावेज है तो उसे जनता के सामने लाए।

संगठन का कहना है कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के तहत नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी के वेबसाइट पर इस इस परियोजना के उपलब्ध डीपीआर व अन्य साइट पर उपलब्ध पीएफआर के दस्तावेजों में वर्णित तथ्यों में पाया गया कि कोसी मेची नदी जोड़ परियोजना कोसी बाढ़ नियंत्रण की नही है बल्कि सिंचाई देने की है। जब पूरी परियोजना पूर्ण रूप से कार्य करेगी तो उस समय मात्र 5247 क्यूसेक अतिरिक्त पानी इसमें निकासी होगा। इसी साल 3 लाख 96 हजार क्यूसेक से अधिक पानी था और बैराज 9 लाख क्यूसेक के डिस्चार्ज के लिए बना है उसमें 5247 क्यूसेक पानी कम होने से बाढ़ कैसे कम होगी? इन दस्तावेजों के आधार पर कोसी बाढ़ नियंत्रण की बात झूठी है। 

कोशी का पानी मेची में गिरने का प्रस्तावित स्थल

इतना ही नहीं इस परियोजना से महानंदा बेसिन में 2.15 लाख हेक्टेयर खरीफ में सिंचाई देने का लक्ष्य है। महानंदा बेसिन में मानसून में अर्थात खरीफ के समय 55 दिन औसत वर्षा होती है और लगभग 1640 एमएम वर्षा हो जाती है उस समय बाढ़ भी होता है इसलिए उस समय पानी की कितनी जरूरत होगी यह प्रश्नचिन्ह है। इस परियोजना का आधार कोसी पूर्वी मुख्य नहर का चौड़ीकरण और विस्तार है।यही कोसी पूर्वी नहर बनते समय इसमें 7.12 लाख हेक्टेयर खेतों की सिंचाई का लक्ष्य रखा गया था। जब पूरी सिंचाई नही दे पाई तो राम नारायण मंडल समिति 1973 में बनी और उसमें इसके तय लक्ष्य को 3.38 लाख हेक्टेयर घटा दिया। यह पुनर्निर्धारित लक्ष्य भी यह नहर परियोजना नहीं कर पाती है उल्टे अनेक जगह सिल्ट जमा रहता है। इसलिए इसके लक्ष्य पूरा होने पर भी सवाल है। 

यदि मानसून में सूखा पड़ा तो इस समय पुराने और नए कमांड एरिया के किसान आपस में हितों के लिए टकराएंगे। इसलिए सिंचाई के दावे सवालों के घेरे में है। 

कोशी पूर्वी नहर जहां से नदी जोड़ परियोजना शुरू होगी

तीसरी बात कि 43.3 आरडी से आगे की 76.2 किलोमीटर नई नहर निकलकर मेची नदी में गिरने तक 13 नेपाल से आने वाली नदियों को पार करेगी। यह परियोजना इन नदियों के स्वाभाविक जल निकासी के लंबवत उनके मार्ग को अवरोध पैदा करेगी जिससे नए बाढ़ क्षेत्र बढ़ने का अंदेशा है। 

कोसी महानंदा बेसिन के समग्र मास्टर प्लान बनाकर कार्य नहीं किया गया है और इसके इसके वैकल्पिक योजना पर विचार भी नहीं हुआ है। 

इसी परिस्थिति में कोसी नव निर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव का कहना है कि सरकार इस परियोजना के संबंध में नया दस्तावेज है तो उसे जनता के सामने लाए और नही है तो इन सवालों का उत्तर दे। 

 ऐसे में बिहार में महत्वाकांक्षी कोसी-मेची नदी जोड़ो परियोजना सहित बाढ़ नियंत्रण उपायों और सिंचाई के लिए धन आवंटन के एक पखवाड़े से अधिक समय बाद, नदी और बाढ़ विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और कार्यकर्ताओं ने परियोजना की जमीनी हकीकत पर सवाल उठाया है और राज्य सरकार के दावों का खंडन किया है। 

खात बात यह है कि बिहार के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र यादव, जो कोसी क्षेत्र से हैं, ने 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार दावा किया था कि महानंदा की सहायक नदी मेची नदी को नदी से जोड़ने से कोसी बाढ़ की समस्या जल्द ही खत्म हो जाएगी। उन्होंने स्थानीय लोगों को यह भी बताया कि बार-बार आने वाली बाढ़ के स्थायी समाधान के लिए कोसी का अतिरिक्त पानी मेची में छोड़ा जाएगा।

बिहार के पूर्व जल संसाधन मंत्री और सत्तारूढ़ जनता दल-यूनाइटेड के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने बार-बार कहा है कि कोसी और सीमांचल क्षेत्र में बाढ़ और सिंचाई समस्याओं के समाधान के लिए कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना आवश्यक है।इस बीच परियोजना को लेकर उठाये गये सवाल का जवाब देना सरकार के लिये आसान नहीं होगा।

(पत्रकार जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)

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