पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने तीन साल पूरे कर लिए हैं। हर मुख्यमंत्री की मानिंद अमरिंदर ने भी अपनी सरकार की खूबियों का खूब बखान किया है। जमीनी हकीकत की ओर पीठ की रिवायत भी उन्होंने नहीं तोड़ी है। बीते तीन सालों में विधानसभा चुनाव से पहले किए गए वादे हवा साबित हुए हैं और कांग्रेस का घोषणापत्र अर्धसत्य।
पंजाब को नर्क का महासमुद्र बनाने वाले नशों से मुक्ति, बेरोजगारों को सरकारी रोजगार, किसानों की कर्ज माफी, कानून-व्यवस्था में सुधार, माफिया पर पूरी तरह नकेल आदि कांग्रेस के मुख्य चुनावी वादे थे,लेकिन हुआ क्या?
नशे बदस्तूर जारी हैं। गैरसरकारी सर्वेक्षणों अथवा रिपोर्ट्स के मुताबिक हालात जस के तस हैं। हर चौथे दिन कहीं न कहीं कोई नौजवान नशे की ओवरडोज के चलते मर रहा है।
नशों के लिए संपन्न घरों के फरजंद लूटपाट की वारदातों में संलिप्त पाए जाते हैं। लड़कियां और महिलाएं भी बड़ी तादाद में नशों की अलामत का शिकार हैं। नशा मुक्ति केंद्र नाकारा साबित हो रहे हैं।
जेलों में बंद कैदियों तक भी आराम से नशा पहुंच रहा है। सरकार की तमाम एजेंसियां नशा-तंत्र ध्वस्त करने में नाकामयाब रही हैं। तीन साल की सत्ता के बाद जब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कहते हैं कि वह नशों पर काबू की ‘कोशिश’ कर रहे हैं तो यह एक तरह से सरकार के मुखिया की ओर से की गई पुष्टि है कि तीन साल तक खास कुछ नहीं हो पाया।
जो पिछली अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार में चल रहा था, वही कांग्रेस की सरकार में चल रहा है। रंग-ढंग थोड़े-बहुत जरूर बदले हैं। बाकी सब वैसा है।
चुनावों से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह अक्सर दोहराते थे कि विक्रमजीत सिंह मजीठिया सूबे में नशों के सबसे बड़े सौदागर हैं, उनकी सरकार बनी तो सबसे पहले मजीठिया को सलाखों के पीछे डाला जाएगा।
अब कैप्टन के मंत्री और कांग्रेस के कतिपय विधायक भी सवाल उठा देते हैं कि ऐसा क्यों नहीं किया गया? सामान्य जांच तक नहीं बैठाई गई। नशे के काले कारोबार की कुछ छोटी मछलियां पकड़ कर खामोशी अख्तियार कर ली गई।
बेरोजगारों की फौज में लगातार इजाफा हो रहा है। इस बाबत लगातार झूठे आंकड़े पेश किए जाते हैं। बेरोजगारों को नौकरी की बजाए पुलिस की बर्बर लाठियां मिल रही हैं। पुलिस आए दिन आंदोलनरत बेरोजगार युवकों की पगड़ियां उछालती है और युवतियों के दुपट्टे फाड़े जाते हैं।
किसानों की कर्ज माफी का वादा भी कुल मिलाकर झांसा साबित हुआ है। उन पर कर्ज का फंदा पहले की मानिंद कसा हुआ है। बल्कि किसान आत्महत्याएं लगातार बढ़ रही हैं। भूमिहीन किसानों के लिए आरक्षित शामलाट जमीनों की खुली लूट बाकायदा सरकार के संरक्षण में हो रही है। यह कैसी किसान-हितेषी सरकार है?
कानून-व्यवस्था का आलम यह है कि राज्य की जेलें तक महफूज नहीं। अपराध और अपराधियों की तादाद बढ़ती जा रही है। रेत-बजरी, ट्रांसपोर्ट और शराब के गैरकानूनी धंधों में माफियागिरी उसी तरह हो रही है जैसे पिछली सरकार में होती थी। बस चेहरे बदले हैं।
कैप्टन अमरिंदर सिंह का यह भी एक चुनावी वादा था कि वह अगली बार कोई भी चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन अब उन्होंने कहा है कि वह अभी ‘जवान’ हैं और अगली बार फिर चुनावी अखाड़े में उतरेंगे। कांग्रेस के पंजाब की जनता से किए गए ज्यादातर चुनावी वादे मजाक बनते जा रहे हैं तो यह भी एक मजाक ही है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और जालंधर में रहते हैं।)