बनारस में खुदकुशीः क्यों न माना जाए सांसद को जिम्मेदार!

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प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आर्थिक तंगी से दो बच्चों को जहर देकर दंपति ने आत्महत्या कर ली। मीडिया से लेकर सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने औपचाकिरता निभाकर जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली। हां, सोशल मीडिया पर यह मामला जरूर मजबूती से उठा मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि बनारस प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है। प्रधानमंत्री देश के विकास का ढिंढोरा पूरे विश्व में पीटते फिर रहे हैं। दूसरे देशों में जा-जाकर अपना कीर्तिमान गिना रहे हैं। संपन्न लोगों के बीच में जाकर सेल्फी ले रहे हैं। अमेरिका जैसे देश में जाकर अपनी महिमामंडन में कार्यक्रम करा रहे हैं।

किसान-मजदूर की चिंता करने वाले देश में कारपोरेट घरानों की चिंता हो रही है। गरीब, किसान मजदूर की कमाई देश के गिने-चुने पूंजीपतियों को लूटाई जा रही है। आम आदमी बेबसी पर भी सहमा-सहमा नजर आ रहा है। परिवार के साथ आत्महत्या सुनने में भले ही साधारण घटना लगे पर यह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है। प्रभावशाली लोग आम आदमी की बेबसी का फायदा उठा रहे हैं। आम आदमी कीड़े-मकोड़े की जिंदगी जीने को मजबूर है। आज के माहौल में बुरे दिनों को कमजोरी समझा जा रहा है। समाज में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सब कुछ दिखावा ही दिखावा है। आदमी बोल कुछ और रहा है और उसके अंदर चल कुछ और रहा है। यही सब कुछ आदमी को समाज से काट रहा है।

भूख से मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर जिलाधिकारी को जिम्मेदार माना है। इसमें उस इलाके के विधायक और सांसद को भी जिम्मेदार माना जाना चाहिए। वह उस क्षेत्र के जन प्रतिनिधि हैं और यह उनकी जिम्मेदारी है कि उनके क्षेत्र में भूख या तंगहाली से आत्म हत्या नहीं होनी चाहिए। संबंधित नौकरशाह और जनप्रतिनिधि के लिए दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए। सवाल यह भी है कि इस आत्म हत्या के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्यों न जिम्मेदार माना जाए!

यह देश की विडंबना ही है कि गरीबी, बेबसी, किसान और मजदूर जैसे शब्द चुनावी जुमलों तक सिमट कर रह गए हैं। परिवार के साथ आत्महत्या करने वाले किशन गुप्ता के पिता अमरनाथ गुप्ता के अनुसार उस पर छोटी बहन की शादी में बहुत कर्जा हो गया था और वह बहुत परेशान था। मतलब बहन की शादी की जिम्मेदारी ही उसकी जान की दुश्मन बन गई। समाज के साथ ही राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट और पूंजपीतियों के गठजोड़ ने आम आदमी के सामने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि यदि वह परिवार की जिम्मेदारी निभाने की भी सोचे तो उसकी जान पर पड़ जा रही है।

ये घटनाएं ऐसे दौर में हो रही हैं जब नेताओं, ब्यूरोक्रेट, पूंजीपतियों के अलावा बाबाओं के यहां से सैकड़ों और हजारों करोड़ की नकदी के साथ अथाह संपत्ति निकल रही है। किशन गुप्ता तो मात्र एक उदाहरण है, देश में ऐसे कितने किनन हैं जो समाज की मार और देश के कर्णधारों की लूटखसोट की नीति के चलते दम तोड़ दे रहे हैं। चाहे राजनीतिक दल हों, सामाजिक संगठन हों, एनजीओ या फिर दूसरे जिम्मेदार लोग। सबको एशोआराम चाहिए, मौज-मस्ती चाहिए, सत्ता का रूतबा चाहिए। चाहे वह किसी भी तरह से हासिल किया जाए। यही वजह है देश के जिम्मेदार लोग अपनी जवाबदेही से बचकर जनता को बेवकूफ बनाने में लगे हैं।

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