संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करने के केंद्र सरकार के 2019 के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 दिसंबर को अपना फैसला सुनाएगी।
भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की 5 जजों की संविधान पीठ ने 16 दिनों तक मामले की सुनवाई की और 5 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिकाकर्ताओं ने सरकार के फैसले को भारत के संघीय ढांचे पर हमला और “संविधान पर धोखाधड़ी” बताया है।
कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, दुष्यन्त दवे और गोपाल शंकरनारायणन सहित वरिष्ठ वकीलों के माध्यम से दायर 20 से अधिक याचिकाओं के बैच ने प्रस्तुत किया कि सरकार ने कार्यकारी आदेश जारी करने और जम्मू और कश्मीर राज्य को दो भागों, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, में विभाजित करने के लिए संसद में अपने बहुमत का दुरुपयोग किया। याचिकाकर्ताओं ने इसे संघवाद पर हमला और संविधान के साथ धोखा करार दिया था।
इससे पहले 2020 में, याचिकाकर्ताओं ने अदालत से मामले को सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के कदम के खिलाफ फैसला किया और पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को अपने पास रख लिया। अनुच्छेद 370 मामले में सुनवाई 2 अगस्त को शुरू हुई थी और शीर्ष अदालत ने 5 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू और कश्मीर को दिए गए विशिष्ट विशेषाधिकारों को समाप्त करके एक निर्णायक कदम उठाया। क्षेत्र को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया- जम्मू और कश्मीर और लद्दाख। विशेष रूप से, जम्मू और कश्मीर ने अपनी विधानसभा बरकरार रखी, जबकि लद्दाख ने स्वतंत्र विधानसभा के बिना केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा ग्रहण किया।
संयोग से, सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला सुनाने की तारीख संसद के शीतकालीन सत्र में कश्मीर पर ऐतिहासिक नीतियों पर तीखी बहस के बीच आई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कश्मीर पर “ऐतिहासिक भूलों” के लिए आलोचना की, जिसके कारण भारत को कश्मीर के क्षेत्र का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के हाथों खोना पड़ा।
अमित शाह ने संसद में कहा कि “नेहरू ने स्वयं शेख अब्दुल्ला को पत्र लिखकर स्वीकार किया कि जब हमारी सेना जीत रही थी, तो हमें युद्धविराम पर सहमत नहीं होना चाहिए था। उन्होंने स्वयं स्वीकार किया कि वे (संयुक्त राष्ट्र में) बेहतर बातचीत कर सकते थे। अगर सही कदम उठाए गए होते तो पीओके, जो वैसे भी हमारा है, आज हमारे पास होता। देश की इतनी जमीन चली गयी। मैं कहता हूं कि ये ग़लतियां नहीं थीं बल्कि, ये दो ऐतिहासिक भूल थीं।”
अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि “मैं उस शब्द का समर्थन करता हूं जो इस्तेमाल किया गया था- नेहरूवादी भूल। नेहरू के समय जो गलती हुई उसका खामियाजा कश्मीर को भुगतना पड़ा।” शाह ने कहा, “जिम्मेदारी के साथ मैं कहना चाहता हूं कि जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में जो दो बड़ी गलतियां हुईं, वे उनके फैसलों के कारण हुईं, जिसका खामियाजा कश्मीर को वर्षों तक भुगतना पड़ा।”
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)
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