असरार उल हक ‘मजाज़’ उर्दू साहित्य के उन महत्वपूर्ण शायरों में से एक हैं, जिनकी नज़्मों में इश्क़ो-मुहब्बत तो था ही साथ ही उनमें बगावती तेवर भी थे। मजाज़ ने अदबी दुनिया मे कई रंग बिखेरे। जरिया चाहे नज़्म...
एक कैफ़ियत होती है प्यार। आगे बढ़कर मुहब्बत बनती है। ला-हद होकर इश्क़ हो जाती है। फिर जुनून और बेहद हो जाए तो दीवानगी कहलाती है। इसी दीवानगी को शायरी का लिबास पहना कर तरन्नुम से (गाकर) पढ़ा जाए...