Friday, April 19, 2024

किताब

नीरजा चौधरी की पुस्तक ‘हाऊ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’: इंदिरा, राजीव, राव, वाजपेयी और सोनिया के बारे में कई बड़े खुलासे

द इंडियन एक्सप्रेस में एक कालम्निस्ट और कन्ट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी की आगामी पुस्तक ‘हाऊ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में कुछ दुर्लभ और अनकहे विवरण सामने आए हैं। पुस्तक में आरएसएस नेताओं के साथ राजीव गांधी की गुप्त बैठकों से...

किताब ‘कैदखाने का आईना’: जेल में भ्रष्टाचार ही सिस्टम है

स्वतंत्र पत्रकार और लेखक रूपेश कुमार सिंह 7 जून, 2019 से 5 दिसंबर, 2019 तक बिहार की दो जेलों में छह महीने तक काला कानून ‘यूएपीए’ के तहत कैद थे। 6 दिसंम्बर, 2019 को ये जमानत पर बाहर निकल...

जयंतीः शहादत के बाद भी अंग्रेज सरकार थर्राती थी गेंदालाल से

देश की आजादी कई धाराओं, संगठन और व्यक्तियों की अथक कोशिशों और कुर्बानियों का नतीजा है। गुलाम भारत में महात्मा गांधी के अंहिसक आंदोलन के अलावा एक क्रांतिकारी धारा भी थी, जिससे जुड़े क्रांतिकारियों को लगता था कि अंग्रेज...

अपरिभाषेय राष्ट्रवाद की परिभाषा!

जेएनयू के परिसर में सन् 2016 की सर्दियों में हुए राष्ट्रवाद पर भाषणों के संकलन, ‘What the nation really needs to know’ के बाद अभी हाल में अनामिका प्रकाशन से राष्ट्रवाद के बारे में लेखों का एक महत्वपूर्ण संकलन,...

विद्यार्थी परिषद का नया उपद्रव! तमिलनाडु की यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम से हटाई गई अरुंधति की किताब

न तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) कोई बौद्धिक संगठन है, न ही कोई शिक्षाविद् संगठन, बावजूद इसके तमिलनाडु की मनोनमनियम सुंदरनर यूनिवर्सिटी ने उसके विरोध के चलते अरुंधति रॉय की किताब ‘वॉकिंग विद द कॉमरेड्स’ को पोस्टग्रेजुएट इंग्लिश...

हत्यारे के महिमामंडन काल में सच्चाई की इबारत है ‘उसने गांधी को क्यों मारा’

कुछ पुस्तकें ऐसी होती हैं जो विमर्श और सोच-समझ के नए आयाम प्रस्तुत करती हैं और बदलाव की वाहक बनती हैं। बदलाव लाने की यह शक्ति उन पुस्तकों में भी होती है जो कुछ नया तो नहीं प्रस्तुत करतीं...

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लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।