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ज़रूरी ख़बर

क्या चुनाव ला पाएगा बिहार को बदहाली से बाहर?

‘‘हरे-भरे हैं खेत मगर खलिहान नहीं; बहुत महतो का मान मगर दो मुट्ठी धान नहीं। भरा है दिल पर नीयत नहीं; हरी है कोख-तबीयत नहीं। [more…]