जयंतीः मधुशाला कविता से आगे समाज और इंसानियत के उच्च मुकाम का पैमाना बन गई
जीवित है तू आज मरा सा, पर मेरी यह अभिलाषाचिता निकट भी पहुंच सकूं अपने पैरों-पैरों चलकर यह पक्तियां दर्शाती हैं कि हरिवंश राय बच्चन [more…]
जीवित है तू आज मरा सा, पर मेरी यह अभिलाषाचिता निकट भी पहुंच सकूं अपने पैरों-पैरों चलकर यह पक्तियां दर्शाती हैं कि हरिवंश राय बच्चन [more…]