तहज़ीब की ताबानी पर साया-ए-सियाही- औरंगज़ेब से बहादुर शाह ज़फ़र तक तारीख़ की तौहीन का दर्दनाक फ़साना

तहज़ीब की रूह कभी-कभी चीख़ती नहीं, सिसकती है। वो शोर नहीं मचाती, बस ख़ामोश होकर हमारी पेशानी से अपना नूर…

जन्मदिन पर विशेष: ज़ौक़ की शायरी और शख़्सियत के अलग रंग

शेख मोहम्मद इब्राहिम ‘ज़ौक़’ (1788-1854) ज़ौक़ का नाम आते ही क्या विचार आता है? अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर,…