जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पिछले महीने की 22 तारीख को हुए आतंकवादी हमले के जवाब में भारतीय सेना ने वही किया है जो एक सभ्य और जिम्मेदार मुल्क की पेशेवर सेना को करना चाहिए। उसने अपनी बेहद सोची-समझी और संयमित कार्रवाई में सिर्फ पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में स्थित आतंकवादियों के ठिकानों को ही निशाना बनाया है। उसका ऐसा करना इस बात का प्रतीक है कि भारत की दुश्मनी पाकिस्तान की जनता से नहीं बल्कि पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान द्वारा पोषित आतंकवादियों से है।
सेना की ओर से बताया गया है कि दो सप्ताह पहले पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का जवाब देने के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम से की गई इस कार्रवाई में पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आतंकवादियों के कुल नौ ठिकानों को निशाना बनाया गया है। हालांकि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जवाब में पाकिस्तान की ओर से भी जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती सेक्टरों में गोलीबारी की आवाजें सुनी जाने की खबरें आ रही हैं। स्थानीय रिपोर्टों से पता चला है कि पुंछ और राजौरी जिले में तथा कश्मीर घाटी के उरी और तंगधार सेक्टर में पाकिस्तान की ओर से की गई गोलाबारी में तीन नागरिकों के मारे जाने की खबर है। हालांकि आधिकारिक तौर पर इन खबरों की पुष्टि अभी नहीं हुई है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी आधिकारिक वक्तव्य में कहा गया है, ”पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में हमारी कार्रवाई लक्षित, संतुलित और गैर-उकसाऊ रही है। भारत ने लक्ष्यों के चयन और कार्रवाई के तरीके में अत्यधिक संयम का परिचय दिया है। किसी पाकिस्तानी सैन्य ठिकाने को भी निशाना नहीं बनाया गया है।’’
रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का मकसद उन आतंकवादी ढांचों को नष्ट करना है, जहां से भारत के खिलाफ हमलों की योजना बनाई जाती है और फिर उसे अंजाम दिया जाता है। रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि भारतीय सेना की आज की कार्रवाई सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ है ना कि पाकिस्तानी सेना के खिलाफ। यह कार्रवाई पड़ोसी देश से झगड़े के मकसद से भी कतई नहीं है।
कहने की आवश्यकता नहीं रह जाती है कि भारतीय सेना की यह संयमित कार्रवाई बेहद सराहनीय है। लेकिन इस समय नागरिक समाज को बेहद सावधान रहने की ज़रूरत है। क्योंकि यही समय है जब कई तरफ़ से तरह-तरह की गलत और शरारतपूर्ण सूचनाएं भी आएंगी, बल्कि भारत के निहायत गैर जिम्मेदार टीवी चैनलों और सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर आना शुरू भी हो गई हैं। इसलिए हर जिम्मेदार नागरिक को सेना और सरकार की ओर से दी गई जानकारी पर ही भरोसा करते हुए किसी अन्य माध्यम से मिली आ रही सूचना नजरअंदाज करना चाहिए।
हालांकि युद्ध के लिए उकसाने वाले युद्ध पिपासु तत्व दोनों देशों में मौजूद हैं और सक्रिय बने हुए हैं। भारत में यह काम आमतौर पर मुख्यधारा का मीडिया खासकर कॉरपोरेट नियंत्रित टीवी चैनल और राष्ट्रवादी कहे जाने वाले सांप्रदायिक संगठन करते हैं, जो अभी भी कर रहे हैं, वहीं पाकिस्तान में यह काम सेना के सेवारत व रिटायर्ड अफसर और आतंकवादियों से हमदर्दी रखने वाली कट्टरपंथी जमातें करती हैं।
जिस दिन पहलगाम में हमला हुआ उस दिन से लेकर आज तक दिल्ली और मुंबई स्थित टीवी चैनलों पर शाम की तीतर-बटेर छाप बहसों में रक्षा विशेषज्ञों के तौर पर शामिल रक्षा तथा विदेश मंत्रालय, सेना एवं खुफिया सेवाओं के पूर्व अफसर जनाक्रोश को युद्धोन्माद में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। टीवी चैनलों के मूर्ख एंकर/एंकरनियां भी वीर बालकों की मुद्रा में उनके सुर में सुर मिला रहे हैं। युद्धोन्माद पैदा करने के लिए इन टीवी चैनलों ने चंद पैसों पर आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले पाकिस्तान के भी कुछ नेताओं, पूर्व नौकरशाहों, पूर्व सैन्य अफसरों को भी हायर कर रखा है।
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। दरअसल ये ‘रक्षा विशेषज्ञ’ किसी भी आतंकवादी हमले के बाद टीवी चैनलों के वातानुकूलित स्टूडियों में बैठकर पाकिस्तान को युद्ध के जरिये सबक सिखाने का सुझाव देते हैं। ऐसा करके यह लोग आम लोगों पर यही प्रभाव छोड़ने की कोशिश करते हैं कि वे बहुत बहादुर और देशभक्त हैं। लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है। दरअसल, यह मामला उच्च तकनीक वाले हथियारों के अंतरराष्ट्रीय कारोबार से जुड़ा है।
भारत हथियारों का बहुत बड़ा खरीदार है, लिहाजा हथियार बनाने वाली कई विदेशी कंपनियों के हित भारत से जुड़े हैं। भारतीय सेना, सुरक्षा एजेंसियों, विदेश सेवा और रक्षा महकमे के कई पूर्व अफसर इन कंपनियों के परोक्ष मददगार होते हैं। यह कंपनियां ऐसे लोगों को उनके रिटायरमेंट के बाद अनौपचारिक तौर पर अपना सलाहकार नियुक्त कर लेती हैं। यह लोग इन कंपनियों के हथियारों की बिक्री के लिए तरह-तरह से माहौल बनाने का काम करते हैं। देश में युद्धोन्माद पैदा करना और सेना में संसाधनों का अभाव बताना भी इनके इसी उपक्रम का हिस्सा होता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इन लोगों को इस काम के लिए हथियार कंपनियों से अच्छा खासा ‘पारिश्रमिक’ मिलता है। तो देशभक्ति के नाम यह इनका अपना व्यापार है जो इन दिनों जोरों पर चल रहा है।
युद्ध का माहौल बनाने में जुटे कुछ टीवी चैनलों ने तो यह भी बता दिया है कि दोनों देशों के बीच युद्ध में अगर परमाणु युद्ध हथियारों का इस्तेमाल होता है तो पाकिस्तान का नुकसान ज्यादा होगा, वह तबाह हो जाएगा, दक्षिण एशिया का भूगोल बदल जाएगा आदि-आदि। अलबत्ता कुछ संजीदा रक्षा विशेषज्ञों ने जरूर यह सुझाव दिया कि भारत युद्ध को युद्ध जैसी कार्रवाई शुरू करने के बजाय पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर आतंकवादियों के शिविर नष्ट कर देना चाहिए।
हालांकि भारत की ओर से ऐसी कार्रवाई पिछले 27 साल में 11 बार हो चुकी है, जिसमें से दो बार तो मोदी सरकार के दौर में ही हो चुकी हैं। लेकिन पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान और उसके द्वारा पोषित आतंकवादियों के मंसूबों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। इसके बावजूद भारत की ओर से संयमित कार्रवाई करते हुए सिर्फ आतंकवादियों के ठिकानों को ही निशाना बनाया गया है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार पाकिस्तानी हुक्मरान और पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व की ओर से पुरानी गलतियां नहीं दोहराई जाएंगी। वे आतंकवादियों के खिलाफ भारत की इस संयमित व लक्षित कार्रवाई को युद्ध में बदलने जैसी गलती नहीं करेंगे, जैसी कि अभी जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में उसकी ओर से गोलीबारी के जरिये की जा रही है। पाकिस्तान को ऐसा करने से बाज आना चाहिए। युद्ध से न तो भारत का भला होगा और पाकिस्तान का तो कतई नहीं होगा, क्योंकि उसका तो वजूद ही खतरे में पड़ जाएगा।
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)