गाह गांव के बेटे ‘मोहना’ की मौत से जन्म भूमि भी शोकाकुल

भारत देश के अत्यंत लोकप्रिय प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह पाकिस्तान के झेलम जिले के गाह गांव में 26 सितम्बर 1932 को जन्मे थे जो अब चकवाल जिला कहलाता है। यह गांव पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 100 किमी की दूरी पर है।

उनकी जन्मभूमि के लोग अपने ‘मोहना’ की मौत की ख़बर से अत्यंत दुखी हैं। गांव वासियों की इच्छा थी कि वे उनकी अंत्येष्टि में शामिल हों पर जब ये संभव नहीं हुआ तो उन्होंने अपने गांव में ही शोकसभा कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

गांव के लोग डॉक्टर साहब के लिए अंतिम दुआ करने के लिए इकट्ठा हुए। वे राजा मोहम्मद अली के घर पर मिले। उन्होंने मनमोहन सिंह को उस समय देखा था, जब वे सात दशक पहले चकवाल जिले के इस गांव से एक छोटे बच्चे के तौर पर निकले।

झेलम गांव में लगे एक बड़े पेड़ के नीचे गिल्ली-डंडा, कंचे और कबड्डी खेलते उनके बचपन के दोस्त उन्हें मोहना नाम से ही पुकारते थे।

उनका जन्म झेलम गांव में कपड़े के दुकानदार गुरमुख सिंह और उनकी पत्नी अमृत कौर के यहां हुआ था। मनमोहन छोटे थे, तब उनकी मां का निधन यहीं हुआ। नन्हें मनमोहन ने गाह गांव के ही प्राइमरी स्कूल में चौथी कक्षा तक शिक्षा ली थी।

अल्‍ताफ हुसैन गाह गांव के उसी स्कूल में शिक्षक हैं, जहां मनमोहन सिंह ने कक्षा 4 तक पढ़ाई की थी। स्‍कूल के रज‍िस्‍टर में आज भी उनका एडमिशन नंबर 187 दर्ज है। 17 अप्रैल 1937 को मनमोहन सिंह ने यहां एडमिशन लिया। बचपन के साथी यहीं रहा करते थे हालांकि, विभाजन के दौरान मनमोहन सिंह का परिवार भारत आ गया।

उनका अपने दादा से बेहद लगाव था, दंगों में उनकी हत्या भी यहीं हुई। यह दर्द उनके परिवार को भारत खींच लाया। विभाजन के दर्द के बाद आर्थिक परेशानियों से जूझते हुए उन्होंने देश-विदेश में छात्रवृत्ति के ज़रिए अध्ययन किया और वे श्रेष्ठ अर्थशास्त्री बने।

इसी रूप में वे दुनिया में जाने-पहचाने जाते हैं। उनकी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन उनकी इस प्रतिभा को कांग्रेस ने पहचाना और राज्यसभा के जरिए पहले वित्तमंत्री बनाया तथा बाद में वे देश के दो बार प्रधानमंत्री बने।

जब 2004 में मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने तो उनके गांव के साथी शाह वली और राजा मोहम्मद अली के दिलों में उनके साथ गुज़ारे दिनों की यादें हिलोरे मारने लगीं और उनसे मिलने की तड़प पैदा हुई।

मनमोहन सिंह ने भी एक बार कहा था कि गाह से जुड़ी विभाजन की बहुत सारी दर्दनाक यादें उनके पास हैं। यह तड़प उनके बचपन के दोस्त और सहपाठी अली 2008 में भारत आए और मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी।

हालांकि, गाह के लिए सिंह से इसके जुड़ाव के संकेत हर जगह हैं। जैसा कि अली के भतीजे आशिक हुसैन ने दुआ समारोह में कहा, ‘अगर डॉ. साहब नहीं होते, तो हमारे गांव में दो लेन वाली सड़क, हाई स्कूल और सोलर एनर्जी भी नहीं होते। पूरा गांव अफसोस का इजहार कर रहा है जैसे कोई घर का बड़ा चला गया।

पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने दिवंगत भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ अपने संबंधों को याद किया। शुक्रवार को लाहौर में PTI को दिए इंटरव्यू में कसूरी ने कहा कि डॉ. सिंह को इतिहास में एक ऐसे शख्स के रूप में याद किया जाएगा जिन्होंने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए खुद को समर्पित कर दिया था।

83 साल के कसूरी नवंबर 2002 से नवंबर 2007 तक पाकिस्तान के विदेश मंत्री रहे हैं। उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह ने पूरे SAARC क्षेत्र में सौहार्दपूर्ण माहौल बनाया।

उन्होंने इस बात का तर्क देते हुए मनमोहन सिंह का एक बयान याद किया जिसमें उन्होंने कहा था, “वह उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब अमृतसर में नाश्ता, लाहौर में दोपहर का भोजन और काबुल में रात का खाना संभव होगा।

पाक‍िस्‍तान ने मनमोहन सिंह को अपने देश का सच्‍चा बेटा बताते हुए ‘अपनापन’ दिखाया पाक‍िस्‍तान के विदेश मंंत्री इशाक डार ने लिखा, ‘भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन से दुखी हूं।

पाकिस्तान के चकवाल जिले के एक गांव में जन्मे डॉ. सिंह एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री और राजनेता थे। उन्हें उनकी बुद्धिमत्ता और सौम्य व्यवहार के लिए याद किया जाएगा।

अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अपनी उल्लेखनीय उपलब्धियों के अलावा डॉ. सिंह ने क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देने के लिए काम क‍िया। प्रधानमंत्री रहते हुए भारत-पाक‍िस्‍तान संबंधों को बेहतर बनाने में महत्‍वपूर्ण भूम‍िका निभाई।

जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी। मनमोहन सिंह जी वहां भले ना पहुंच पाए पर उनके बचपन के साथी ने मिलकर उनको जन्मभूमि से मिलाया आज इसीलिए समूचे पाकिस्तान को अपने ऊर्जावान बेटे के जाने का ग़म है। काश हम इस ग़म और दर्द को समझ पाते।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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