दूरगामी होंगे यूपी भाजपा में जारी शह-मात के खेल के नतीजे

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यूपी भाजपा में घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक अगस्त को एक अभूतपूर्व घटनाक्रम में नजूल संपत्ति विधेयक जो योगी जी ने एक दिन पहले ही विधान सभा में पास करवाया था। उसका विरोध करने के लिए विधान परिषद में विपक्ष के साथ-साथ उन्हीं की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक खड़े हो गए और अंततः वह विधेयक पास नहीं हो सका। उसे प्रवर समिति को भेजना पड़ा।

संभव है राजनीतिक नफा नुकसान के आकलन के आधार पर योगी की सहमति से पार्टी ने यू-टर्न लेने का यह फैसला किया हो, लेकिन इससे योगी की किरकिरी तो हुई ही, साथ ही इस कानून के माध्यम से लैंड पूल बनाकर कारपोरेट को खुश करने का एक मौका फिलहाल उनके हाथ से निकल गया।
दरअसल, योगी जी इस समय दोहरी लड़ाई लड़ रहे हैं। एक ओर अपनी पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए उन्हें लड़ना पड़ रहा है, दूसरी ओर जनता और विपक्ष के खिलाफ लड़ते हुए कारपोरेट को खुश करना है और उसका समर्थन हासिल करना है, ताकि मोदी के बाद की उत्तराधिकार की लड़ाई में उनका दावा मजबूत हो सके।

दरअसल कारपोरेट को खुश करने के लिए सरकार कई मोर्चों पर एक साथ काम कर रही है। इस तर्क के आधार पर कि कॉर्पोरेट घरानों के पूंजी निवेश को आकर्षित करना है और उत्तर प्रदेश की इकोनॉमी को 1 ट्रिलियन बनाना है। सरकार ने हाल ही में कारखाना अधिनियम में संशोधन करके काम के घंटे 12 करने का कानून बना दिया और बोनस ना देने वाले मालिकों की गिरफ्तारी से छूट देने का कानून पास कर दिया।

इसी तरह लैंड पूल बनाने और उसे कॉरपोरेट को सौंपने के लिए उन्होंने हाल ही में नजूल संपत्ति अध्यादेश लागू किया था। लखनऊ के अकबर नगर से गरीबों को उजाड़ने की कार्रवाई शुरू हुई थी। वहां तो नेतृत्व के अभाव में सरकार सफल हो गई। लेकिन उसके आगे जब बुलडोजर पंत नगर, इंद्रप्रस्थ नगर, अबरार नगर की ओर बढ़े, तब स्थानीय जनता, नागरिक समाज तथा विपक्षी दलों के आंदोलन के दबाव में सरकार को पीछे हटना पड़ा।

प्रदेश में सत्तारूढ़ खेमे के अंदर चल रहे सत्ता संघर्ष का लाभ भी जनता को मिला। भाजपा के एक सहयोगी दल के नेता संजय निषाद ने यहां तक कह दिया कि हम जनता को उजाड़ेंगे, तो जनता हमारी सत्ता उजाड़ देगी।

विधानसभा में तो योगी ने नजूल संपत्ति विधेयक संख्या बल के आधार पर पास करवा लिया, लेकिन अगले दिन जब बिल विधान परिषद में पेश हुआ तब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ही उसके खिलाफ खड़े हो गए और उसमें संशोधन तथा बदलाव की वकालत करते हुए इसे select committee को भेजने की मांग करने लगे। अंततः सरकार ने इसे स्वीकार कर लिया। 

जाहिर है जनता को इसे स्थाई जीत मानकर बैठ नहीं जाना चाहिए। संभव है UP के उपचुनावों या विधानसभा चुनावों के बाद पुनः प्रवर समिति की संस्तुति के साथ, हो सकता है थोड़े बहुत संशोधन के साथ, इसे लागू करने का प्रयास किया जाय, क्योंकि कारपोरेट के लिए लैंड पूल बनाने का एजेंडा तो बदस्तूर कायम है।

पार्टी के अंदर बरतरी की लड़ाई में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए योगी तरह-तरह के कदम उठा रहे हैं। हाल ही में उन्होंने इलाहाबाद मंडल के चर्चित बाहुबली उदयभान करवरिया को, जो आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे, उन्हें समय से पूर्व रिहा करवाया है। ब्राह्मण समाज से आने वाले करवरिया की रिहाई इलाहाबाद मंडल में भाजपा की स्थिति मजबूत करने की कवायद तो है ही, अपने प्रतिद्वंद्वी केशव मौर्य को भी घेरने की कोशिश है। 

ज्ञातव्य है की करवरिया सपा विधायक जवाहर (यादव) पंडित की हत्या के आरोप में जेल में बन्द थे। भाजपा ने शुरू में भी उन्हें बचाने की पुरजोर कोशिश की थी। यहां तक कि भाजपा के कद्दावर नेता कलराज मिश्र ने बयान दिया था कि हत्या के समय करवरिया उनके साथ लखनऊ में थे। बहरहाल कई सालों के बाद अंततः उन्हें जेल जाना पड़ा था।

इसी तरह एक अन्य बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी को जो कवियित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में अजीवन कारावास की सजा काट रहे थे, उन्हें लोकसभा चुनाव के पूर्व रिहा करवाया गया। गोरखपुर-महाराजगंज-देवरिया पट्टी में भाजपा को मिले चुनावी लाभ में उनका भी योगदान रहा होगा।

इधर भाजपा के अंदर गुटीय लड़ाई तेज होती जा रही है, जिसमें एक गुट को साफ तौर पर दिल्ली दरबार की शह प्राप्त है। एक ओर केशव मौर्य के साथ संजय निषाद और ओम प्रकाश राजभर की लगातार बैठकें हो रही हैं। 22 जुलाई को आजमगढ़ में योगी की समीक्षा बैठक में राजभर शामिल नहीं हुए। लेकिन उसी शाम वे लखनऊ में केशव मौर्य से मिले। प्रयागराज की योगी की समीक्षा बैठक में उपमुख्य मंत्री केशव मौर्य शामिल नहीं हुए।

उधर योगी ने केशव मौर्य को हराने वाली अपना दल नेता पल्लवी पटेल से मुलाकात की और राजपूत लॉबी के कद्दावर नेता राजा भैया की योगी का पैर छूते हुए फोटो वायरल हुई।

यह भी विचारणीय प्रश्न है कि SC /ST आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से क्या योगी के हाथ तुरुप का पत्ता लग गया है, जिसका इस्तेमाल कर वे गैर जाटव दलितों में पुनः अपनी पकड़ बना सकते हैं? इसी क्रम में संभवतः रोहिणी आयोग की संस्तुतियों को सामने लाकर गैर यादव पिछड़ों को फिर अपने पाले में ले आने की कवायद हो। क्या भाजपा जाति जनगणना और पीडीए की इसके माध्यम से काट कर पाएगी?

इधर योगी हिंदुत्व के सबसे बड़े चैंपियन के बतौर अपनी छवि चमकाने में लगे हुए हैं। पहले कांवड़ यात्रा के बहाने उन्होंने ध्रुवीकरण का दांव खेला, हालांकि उच्चतम न्यायालय ने उस पर रोक लगा दी। अब अवैध धर्मांतरण (संशोधन) विधेयक 2024 पारित करके सरकार ने उसके लिए अधिकतम सजा को 10 साल से बढ़ाकर आजीवन कारावास और 5 लाख रुपये जुर्माना करने का प्रस्ताव किया है। पहले के कानून में केवल ‘पीड़ित’ के परिवार को ही थाने में शिकायत दर्ज कराने की अनुमति थी, जबकि नए विधेयक में “किसी भी व्यक्ति” को शिकायत दर्ज कराने की अनुमति दी गई है।

दरअसल यह कानून मूलतः महिला और मुस्लिमविरोधी है। महिला संगठन ऐपवा के बयान में कहा गया है, “भाजपा ‘लव जिहाद’ की साजिश के सिद्धांत के बतौर इस कानून को पूरे देश में लागू करना चाहती है। इस सिद्धांत के अनुसार, मुस्लिम पुरुष ‘लव’ या प्यार का नाटक करके हिंदू महिला को बहला-फुसलाकर शादी करता है और इस्लाम धर्म में धर्मांतरण कराता है।

जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाना होता है। उत्तर प्रदेश में 1 जनवरी 2021 से 30 अप्रैल 2023 तक इस कानून के तहत 427 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 833 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। “जाहिर है यह नया और सख्त कानून योगी सरकार के हाथ में मुस्लिम प्रताड़ना और ध्रुवीकरण का बहुत बड़ा हथियार बन जायेगा।

भाजपा के सबसे बड़े गढ़ उत्तर प्रदेश में जारी शह -मात के खेल के नतीजे दूरगामी होंगे। यह न सिर्फ यूपी के बेहद महत्वपूर्ण उपचुनावों पर असर डालेगा, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भी इसके निहितार्थ होंगे।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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