रिलेटिविटी और क्वांटम के प्रथम एकीकरण की कथा

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आधुनिक विज्ञान की इस बार की कथा में आप को भौतिक जगत के ऐसे अन्तस्तल में ले चलने का प्रस्ताव है, जहां शून्य स्वयं सक्रिय हो उठता है और पदार्थ के मूलभूत गुणों के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह कहानी क्वांटम फ़ील्ड थियोरी के निर्माण की कहानी है, जो 1927 में पॉल डिराक से शुरू होती है और 1950 के आस पास टोमोनागा, श्विंगर और फायनमैन के साथ पूरी होती है।

रिलेटिविटी और क्वांटम के प्रथम मिलन से उत्पन्न क्वांटम एलेक्ट्रोडायनामिक्स नाम के इस सिद्धांत को रिचर्ड फायनमैन ने ‘भौतिकी का रत्न’ कहा था। समूचे आधुनिक विज्ञान का यह सबसे सफल और सटीक सिद्धांत है, जिसके नतीजों को प्रयोगों में दशमलव के बारहवें स्थान तक सही पाया गया है।

1925-26 में क्वांटम यांत्रिकी के जन्म के साथ पदार्थ के स्थायित्व की और परमाणुओं के रासायनिक गुणों की व्याख्या तो हो गई थी, लेकिन परमाणुओं से प्रकाश के उत्सर्जन का सिद्धांत अभी उपलब्ध नहीं था। इसके लिए क्वांटम थियरी के साथ आइंस्टान की स्पेशल रिलेटिविटी को मिलाने की ज़रूरत थी, जो एक भारी चुनौती साबित हुई। इस नये सिद्धांत के कुछ हैरतअंगेज़ नतीजे सामने आए।

उदारहरणतः ये पता चला कि शून्य में स्वतः पार्टिकल और एन्टीपार्टिकल के जोड़े क्षणिक रूप में प्रकट और विलुप्त होते रहते हैं। क्वांटम जगत की यह परिघटना प्रकृति के मूलभूत नियमों की अवहेलना किए बिना संभव है। अर्थात शून्य में एक तरह की थरथराहट है। यह किसी कवि की कल्पना नहीं है, इस थरथराहट के पदार्थ-कणों पर प्रभाव को सूक्ष्म और सटीक प्रयोगों में मापा गया है। हाइड्रोजन एटम का एक गुण जिसे ‘लैंब शिफ्ट’ कहते हैं शून्य की इस थरथराहट से ही उत्पन्न होता है।

इसी तरह इलेक्ट्रान के एक गुण (anomalous magnetic moment) की व्याख्या इस थरथराहट के बिना संभव नहीं है। इसी गुण को दशमलव के बारह स्थानों तक की सटीकता से मापा गया है और क्वांटम एलेक्ट्रोडाइनामिक्स को इस सूक्ष्म-सटीक हद तक सही पाया गया है।

वैज्ञानिक सफलता से आगे इस सिद्धांत ने यथार्थ की मूल प्रकृति के दार्शनिक विमर्श को भी नया आयाम दिया। न्यूटन का क्लासिकीय जगत शून्य के अनस्तित्व में पदार्थ के अस्तित्व से बनता था, लेकिन स्वयं न्यूटन को इस तत्व-मीमांसा में संदेह था। पदार्थ का बल शून्य में एक जगह से दूसरी जगह कैसे संप्रेषित हो सकता है, सूरज पृथ्वी को छुए बिना उसे कैसे नचा सकता है? इसी कारण ‘शून्य की असंभवता’ की दार्शनिक प्रस्थापनाएं (Nature abhors vacuum) सामने आती थीं।

उन्नीसवीं सदी में माइकल फैराडे ने ‘फ़ील्ड’ की संकल्पना प्रस्तावित की, जिसके मुताबिक शून्य प्राकृतिक बलों (जैसे कि विद्युत और चुम्बकत्व) का प्रभाव-क्षेत्र है। मैक्सवेल, जिन्होंने विद्युत्चुम्बकत्व की क्लासिकीय फ़ील्ड थियोरी की रचना की, स्वयं फ़ील्ड का तात्विक (ontological) अस्तित्व स्वीकार नहीं करते थे। उसे वे ‘ईथर’ नाम के सर्वव्यापी और अदृश्य द्रव की यांत्रिक गति से उत्पन्न मानते थे, लेकिन यह द्रव काल्पनिक सिद्ध हुआ और 1905 में आइंस्टाइन की स्पेशल रिलेटिविटी ने इसकी सैद्धांतिक आवश्यकता भी समाप्त कर दी। अब कोई चाहे तो वापस पदार्थ और शून्य की पुरानी तत्त्व-मीमांसा पर लौट सकता था।

क्वांटम थियोरी ने एक बार फिर पुरानी तत्त्व-मीमांसा को झटका दिया। शून्य की सक्रियता सामने आई और उसकी थरथराहट को प्रयोगों में निर्विवाद और सटीक ढंग से मापा जा सका। पार्टिकल और फ़ील्ड की तत्व-मीमांसात्मक संकल्पनाएं एक तरह से बराबर की शक्ति के साथ एक-दूसरे के सामने खड़ी हो गईं। पार्टिकल और फ़ील्ड या पार्टिकल और वेव (तरंग) का द्वैत क्वांटम की दुनिया का अनिवार्य द्वैत है और क्वांटम फ़ील्ड थियोरी इसे तत्त्व-मीमांसात्मक रूप देती है। प्रकृति इस प्रकार के अनेक तत्व-मीमांसात्मक द्वैतों से समृद्ध प्रतीत होती है।

विज्ञान को उपकरण और दर्शन को बुद्धि-विलास समझने की ग़लती नहीं करनी चाहिए। जो सभ्यतायें इन प्रश्नों से जूझना छोड़ देती हैं, जीवन, जगत और इतिहास में उनका बुरा हाल होता है। देर-सबेर वहां बर्बरता का वर्चस्व और बर्बरों का शासन स्थापित होता है।

(रवि सिन्हा, लेखक और वामपंथी आंदोलन से विगत चार दशकों से अधिक वक़्त से जुड़े कार्यकर्त्ता, न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव से संबद्ध , प्रशिक्षण से भौतिकीविद डॉ सिन्हा ने MIT, केम्ब्रिज से अपनी पीएचडी पूरी की ( 1982 )और एक भौतिकीविद के तौर पर यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड, फिजिकल रिसर्च लेबोरेट्री और गुजरात यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद में काम किया। अस्सी के दशक के मध्य में आपने फैकल्टी पोज़िशन से इस्तीफा देकर पूरा वक़्त संगठन निर्माण तथा सैद्धांतिकी के विकास में लगाने का निर्णय लिया।) 

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