सदन में अब तक घंटों अपने भाषणों की गर्जना करने वाले छप्पन इंची सीना धारक का चेहरा और भाषण अपनी रंगत पूरी तरह खोता जा रहा है। तालियों की वैसी गड़गड़ाहट भी नहीं सुनाई देती शायद अंदरुनी कड़वाहट चरम पर पहुंच गई है। भक्त छटपटाहट और बेचैनी में हैं। कुछ कहते नहीं बन रहा है। उधर संघ की बिगुल भी खलल डाले हुए है, कहते हैं जब बुरे दिन आते हैं तो चारों तरफ़ समस्याओं का हुजूम घेर लेता है। अभी पिछले दिनों की बात है मोदीजी अपने उद्बोधन में कह रहे थे कि उनका गला घोंटा जा रहा है उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा। एक पीएम ऐसी बात कहे और सुरक्षा की याचना करे इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है।
दरअसल बात यह है कि उनके झूठ का कारोबार इंडिया गठबंधन ने बंद कर रखा है वे बोलें तो क्या बोलें उनके कैबिनेट साथी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जो झूठ बोले उसका खुलासा अग्निवीर परिवार के घर पहुंच कर राहुल गांधी कर दिए। निर्मला सीतारमण का झूठ भी सोशल मीडिया पर मिनटों में छा गया। धर्मेंद्र प्रधान की भी पेपर लीक मामले में अच्छी ख़बर ली गई। झूठ के सरताज ऐसे में क्या कहें और कैसे कहें। यही मनोभाव मोदीजी का गला घोंटने में झलक दिखा गया।
लगता है राहुल गांधी का डरो मत-और डराओ मत नारा जोर पकड़ रहा है। सच बात कहने वाले डर नहीं रहे और झूठे डर के मारे भागे जा रहे हैं। एक दृश्य ख़ूब वायरल हो रहा है जब बाएं ओर से प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी का सदन में प्रवेश हो रहा है और दाहिने ओर से मोदीजी सिर झुकाए सदन से बाहर की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। यह कोई साधारण दृश्य नहीं बल्कि आने वाले कल की बानगी है जब मोदीजी को इसी तरह ख़ामोशी से विदाई दी जाएगी।
उनमें आए एक बदलाव का जिक्र भी यहां करना ज़रुरी है जब मोदीजी ने अपने कर्मचारियों के बीच जाकर अपनी फजीहत करवाई। वे राहुल गांधी की तर्ज़ पर आम लोगों से मिलने के उपक्रम में यह भूल कर बैठे। उस कार्यक्रम में कर्मचारियों ने जिस तरह बेझिझक उनके आगे सवालों की झड़ी लगा दी कि सिर्फ भाषण देने वाले की हालत ख़राब हो गई। उनके साथ सिर्फ इस वक्त भाजपाध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री जेपी नड्डा थे।
वहां से जब मोदीजी बाहर निकले तो उनका तमतमाया चेहरा थोड़ी ही देर दिखाया गया वे गाड़ी में बैठे तो उनके चेहरे पर फोकस होने वाली लाईट बंद कर दी गई। पहली बार वे अंधेरे में बैठे छुपकर निकले। सचमुच वे निरंतर अंधेरे से घिरते चले जा रहे हैं। सत्ता सहजता से छोड़ना सम्मान देता है इस तरह की सत्ता लोलुपता का हश्र कभी अच्छा नहीं होता। अब तो उनके अपने भक्त और शुभचिंतक यह कहने लगे हैं भाग मोदी भाग। एक बात स्पष्ट कर दूं मोदीजी को जितना ख़तरा राहुल गांधी या इंडिया गठबंधन से नहीं है उससे ज़्यादा खतरा संघ और शाह की टीम से है।
(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)