ब्रिटेन की नामी टूर एंड ट्रैवल कंपनी थॉमस कुक की हालत गड़बड़ थी लेकिन कर्ज के बोझ से दबकर वह अचानक ढह ही जाएगी, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। डेढ़ अरब पाउंड (13,226 करोड़ रुपये) के कर्ज की बात कंपनी की ओर से पिछले साल ही कही गई थी। यह रकम बड़ी जरूर है लेकिन इतनी बड़ी नहीं कि ब्रिटेन की हुकूमत चाह लेती तो भी इसका निपटारा न कर पाती। कंपनी की हालत सुधारने का उपाय यह रखा गया था कि आधा कर्जा ब्रिटिश सरकार अपने बेलआउट पैकेज से चुका दे और बाकी का इंतजाम थॉमस कुक की मुख्य शेयरहोल्डर चीनी कंपनी फोसुन इसके शेयर खरीदकर कर दे। लेकिन बोरिस जॉनसन की सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई और रातोंरात कंपनी का दिवाला पिट गया।
इस मामले में हम अपने देश का हाल जानते हैं। एक ऐसी कंपनी, जिसके साथ एक खास क्षेत्र में देश की पहचान जुड़ी हुई हो, उसे बचाने के लिए 13,226 करोड़ रुपये देने का फैसला यहां की सरकार के लिए जीवन-मरण का प्रश्न कभी नहीं बनेगा। सरकारी जीवन बीमा कंपनी एलआईसी को हम कमोबेश इतनी ही बड़ी और इससे भी बर्बाद कंपनियों में पैसा झोंकते आजकल लगभग हर महीने देख रहे हैं। पूंजीवाद खुद में एक निर्मम व्यवस्था है, यह समझने में हमें शायद कुछ और वक्त लगे। थॉमस कुक का ब्रिटेन से रिश्ता समझना हो तो याद रखना होगा कि 1841 में स्थापित यह कंपनी ब्रिटेन में रेलवे लाइनें बिछने का सिलसिला शुरू होने के साथ ही कामगार और कुलीन, दोनों वर्गों के लिए छुट्टियों का पर्याय बन गई थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1948 में कंपनी बिकने की नौबत आई तो ब्रिटिश सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया था। फिर 1972 से वापस निजी हाथों में आने के बाद से थॉमस कुक ने अपने धंधे का ग्लोबल विस्तार किया।
छुट्टियां मनाने और सैर-सपाटा करने के सारे सरंजाम कंपनी ने खुद कर रखे थे। उसके पास अपनी वायुसेवा थी। शानदार लोकेशनों पर टॉप क्लास होटलों की पूरी ग्लोबल श्रृंखला थी। और तो और, कई इलाकों में अपनी अलहदा टैक्सी सर्विस थी। फिर भी पिछले दसेक वर्षों में इसके डूबने का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर यह रुकने में नहीं आया। आठ साल पहले 1.1 अरब डॉलर के कर्जे से इसके डूबने की बात आई थी तो मंदी से निपटने के अपने अभियान के तहत ब्रिटिश सरकार ने इसके लिए बेलआउट पैकेज की व्यवस्था की थी। लेकिन अभी के माहौल में बोरिस जॉनसन की सरकार ने अपनी दो समझदारियों के तहत हाथ खींचने का फैसला किया है। एक तो यह कि थॉमस कुक कंपनी नहीं, इसका बिजनेस मॉडल फेल हो रहा है। दूसरी यह कि ब्रेग्जिट के प्रभाव में डूबने के कगार पर खड़ी ब्रिटिश कंपनियों की सूची काफी लंबी है। एक को मदद करने का मतलब यह होगा कि सौ या शायद हजार कटोरे सामने नजर आने लगेंगे।
ब्रेग्जिट से परे हटकर देखें तो थॉमस कुक को सबसे ज्यादा इंटरनेट ने डुबोया है। सोशल नेटवर्किंग और ई-कॉमर्स बेस्ड कंपनियों ने पूरी दुनिया में संगठित टूरिज्म और हॉस्पिटलिटी इंडस्ट्री की जड़ खोदकर रख दी है। घूमने-फिरने के मामले में आप बने-बनाए दायरों में रहने के बजाय हमेशा अपना पर्सनल एक्पीरियंस हासिल करना चाहते हैं। साथ में यह काम सस्ता भी हो तो सोने पर सुहागा। दुनिया में किसी भी अनजानी लोकेशन पर जाने के लिए आपको सस्ती हवाई सेवा उपलब्ध कराने के लिए ढेरों साइटें सक्रिय हैं। यही हाल होटल में या किसी के घर पर कमरा लेने, खाना मंगाने और टैक्सी बुक करने का भी है। कम पैसे में निजी तजुर्बा। फिर क्यों कोई ज्यादा पैसे देकर खामखा बाबा आदम के जमाने की किसी कंपनी का एहसान लेने जाएगा?
ध्यान रहे, इंटरनेट के जरिये दबेपांव आया यह जलजला सिर्फ टूरिज्म और हॉस्पिटैलिटी कंपनियों को नहीं हिला रहा है। अगले पांच सालों में हम आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के कारनामे भी देखने वाले हैं, जो कई जमे-जमाए क्षेत्रों में रोजी-रोजगार के अलावा कुछ कंपनियों के मुनाफे पर भी करारी चोट करने वाली है। थॉमस कुक के पास दुनिया भर में 21 हजार और ब्रिटेन में 9 हजार एंप्लॉयी हैं, जो अघोषित रूप से इसी सोमवार को सड़क पर आ चुके हैं। लेकिन उनका हाल पूछने कोई बाद में जाएगा। अभी तो ब्रिटेन सरकार उन 9 लाख लोगों को लेकर परेशान है, जो थॉमस कुक की बुकिंग कराकर जहां-तहां घूमने निकले हैं और जिनके वहां रहने और वापस लौटने का जरिया अचानक छूमंतर हो गया है। ब्रिटिश सरकार का कहना है कि जिन लोगों ने ब्रिटेन से रवानगी की है उन्हें तो वह किसी तरह वापस ले आएगी, लेकिन जिन लोगों ने किसी और देश से कहीं और के लिए कूच कर रखा है, उन्हें अपना इंतजाम खुद ही करना होगा।
(वरिष्ठ पत्रकार चंद्रभूषण के फेसबुक से साभार)
