गुमनामी में ठुमरी सम्राट पद्मश्री छन्नूलाल मिश्र, कोई खोज-खबर भी नहीं लेता

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वाराणसी/मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश। जिन्हें काशी ही नहीं समूचा देश भी अदब से ठुमरी सम्राट के नाम से जानता है, पहचानता है। खुद देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें अपने 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी लोकसभा सीट उम्मीदवार घोषित होने के बाद प्रस्तावक बनाया था। लेकिन आज वह गुमनामी भरी जिंदगी जीने को अभिशप्त हैं।

जिन्हें स्थानीय जनप्रतिनिधियों, प्रशासन के लोगों द्वारा पूछना तो दूर खुद ‘विश्व पुरोधा’ सुन गौरवान्वित होने वाले वाराणसी के सांसद यानी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी पलट कर देखना क्या, भूलकर उनका कुशलक्षेम भी जानने की जहमत नहीं उठाई है।

छोटी बेटी के रहमो-करम पर जी रहे पद्मश्री छन्नूलाल मिश्र आहत हैं, मर्माहत है व्यवस्था से, वर्तमान हालात से, अपनों से खासकर उन नेताओं से, जिन्होंने ख्यातिप्राप्त करने के लिए उन्हें और उनके नाम व उनकी उपलब्धियों को जरूर भुनाने से पीछे नहीं रहे हैं, लेकिन आज जब वह परेशान हैं, उन्हें मदद की दरकार है, तो सभी मानों उन्हें भुला बैठे हैं।

आहत आत्मा काशी में तो दुखती देह मिर्ज़ापुर में

विख्यात ठुमरी दादर कजरी के सिरमौर पद्मश्री छन्नूलाल मिश्र जो अपने गायकी से दूसरे के दिलों में राज करते थे। अब वही 98 वर्षीय छन्नूलाल मिश्र पारिवारिक समस्याओं के चलते बेटा, पोता और बड़ी बेटी की प्रताड़नाओं से तंग आकर, अपने उसी काशी (वाराणसी) को छोड़कर, दो वर्षों से मिर्ज़ापुर नगर के कटरा कोतवाली क्षेत्र के गंगा दर्शन कालोनी में, गुमनामी भरा जीवन जीने को मजबूर है। जिसमें वह बचपन से रस-बस गए थे। वहीं से उन्हें ही नहीं उनके पूरे परिवार को एक सम्मान मिला, मुकाम मिला।

काशी यानी वाराणसी उनके (पद्मश्री छन्नूलाल मिश्र) लिए उनकी किसी आत्मा से कम नहीं रहा है। लेकिन आज उसी आत्मा को वह वाराणसी में त्याग कर, देह मात्र लेकर पड़ोसी जनपद मिर्ज़ापुर में बुझे से पड़े हुए अपनों की याद में विलख पड़ते हैं। जिन्हें सांत्वना देते हुए उनकी बेटी जो एकमात्र उनका सहारा बनकर उनके लिए खड़ी हुई है, वह भी रो पड़ती हैं। 

आखिरकार रोएं भी क्यों न, जिन्होंने हिन्दुस्तानी संगीत को बुलंदियों पर पहुंचाया। हर छोटी-बड़ी महफिलों में दूसरों के दिल पर राज करते थे। आज वही शख्स आपबीती घटनाओं को अपने दिलों में दबाये रख सिसकारियां भरने को विवश हैं। लेकिन अब उनके दिलों का दर्द भरा गुबार बाहर आने लगा है। उनके मन की टीस भी उजागर हो रहें हैं।

वह शख्स जो सदैव मुस्कराता रहा है, आज पारिवारिक प्रताड़ना के टीस के चलते वह काफी परेशान दिखाई पड़ते हैं। चेहरे पर मुस्कान की जगह परेशानी और प्रताड़ना के भाव साफ तौर पर दिखाई पड़ते हैं। हैरत की बात तो यह है कि अपनी परेशानियों को लेकर वह देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री समेत सभी छोटे-बड़े प्रशासनिक अधिकारियों से न्याय की गुहार लगा चुके हैं। बावजूद इसके किसी ने भी पलटकर उनकी ओर देखना, झांकना, उनके दुःख दर्द को समझना भी मुनासिब नहीं समझा है।

गौरतलब हो कि सोहर, ठुमरी, कजरी एवं चैती गायकी के लिए देश-विदेश में जाने पहचाने जाते छन्नूलाल मिश्र का जन्म 1936 में वाराणसी में हुआ था। वह अपने गीतों से समां बांध देते थे। इनके गीत सुनने के लिए लोग बेताब रहते थे। पंडित छन्नूलाल मिश्र पद्म भूषण से भी नवाजे जा चुके हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में संसदीय चुनाव के दौरान वाराणसी में प्रस्तावक भी रह चुके हैं।

प्रधानमंत्री के शपथ लेने के पहले बधाई के गीत भी गा चुके हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री द्वारा विभिन्न अवसरों पर उन्हें सम्मानित भी किया गया है, बावजूद इसके उनकी उपेक्षा साहित्य कला क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों को टीस रही है। वरिष्ठ पत्रकार संदर्भ पांडेय कहते हैं “पद्मश्री छन्नू लाल मिश्र की उपेक्षा, किसी व्यक्ति की उपेक्षा नहीं बल्कि कला साहित्य और काशी के गौरव की उपेक्षा है। वह कोई साधारण व्यक्ति ने नहीं हैं बल्कि काशी के गौरव से जुड़े हुए व्यक्ति हैं, जिनका हर वर्ग, समुदाय के लोग सम्मान करते हैं।”

पद्मश्री छन्नूलाल मिश्र की तंगहाली भरी जिंदगी और हो रही उनकी उपेक्षाओं पर वह बोलते हैं कि” इस मामले में तो सीधे तौर पर प्रधानमंत्री जी को आगे आकर उनकी व्यथा को सुनना चाहिए, लेकिन प्रधानमंत्री की चुप्पी के साथ-साथ शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी संदेह पैदा कर रही है। इनके दोहरेपन को लेकर जो कहते कुछ और हैं, और करते कुछ और हैं।”

कोई भी जनप्रतिनिधि नहीं आता झांकने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक और ठुमरी के प्रसिद्ध गायक छन्नूलाल मिश्र अपना घर छोड़कर बेटी के साथ रहने को मजबूर हैं तो आखिरकार क्यों? इसे भी जानने की जहमत जरूरी नहीं समझी गई है। पारिवारिक कलह चलते दो साल से बेटी के साथ रह रहे छन्नूलाल मिश्र बेड पर पड़े हुए व्हीलचेयर से चलने को मजबूर हैं।

छन्नूलाल मिश्र का दर्द सुनकर आंख से आंसू आ जाएंगे। पद्म भूषण छन्नूलाल मिश्र प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगा चुके हैं। दो साल से मिर्जापुर में रह रहे छन्नूलाल मिश्र का कोई जनप्रतिनिधि हाल भी लेने नहीं पहुंचा है। वह गुमनामी भरी जिंदगी जी रहे हैं।

व्हीलचेयर पर पड़े हुए छन्नूलाल मिश्र ने दुखी मन से कहते हैं, “सब बनारस में जाना चाहते हैं, हम तो बनारस छोड़कर मिर्जापुर में रह रहे हैं। बड़ी बेटी से धमकियां तक मिल रही है, किससे कहूं किसको सुनाऊं अपनी व्यथा… इतना कहते-कहते वह फफक पड़ते हैं।”

‘पंडित छन्नूलाल मिश्र’ यानी ठुमरी चैती संगीत दुनियां का एक ऐसा नाम जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है, लेकिन आज वही छन्नूलाल मिश्र मजबूर और लाचार दिखाई दे रहे हैं। हालात छन्नूलाल मिश्र के कुछ ऐसे बन गए हैं कि वह वाराणसी छोड़कर मिर्जापुर में रहने को मजबूर हैं। वर्तमान में छन्नूलाल की न सेहत साथ दे रही है ना ही परिवार और प्रशासन।

जिस छन्नूलाल की आवाज सुनकर लोग रुक जाते थे और उन्हें सुनने को बेताब दिखाई देते थे। आज उनकी परेशानी को कोई सुनने वाला नहीं है। दो साल से अपने बेटी के साथ मिर्जापुर में रह रहे छन्नूलाल मिश्र बुझे-बुझे से नज़र आते हैं। बिस्तर पर पड़े, तो कभी व्हीलचेयर से चल रहे छन्नूलाल मिश्र का आरोप है कि “उनका परिवार वाराणसी में उन्हें नहीं रहने दे रहा है, उसे छोड़कर वह मिर्जापुर चले आए हैं। सेहत खराब होने की चलते वह चल फिर भी नहीं पा रहे हैं।

काशी छोड़कर आने का उन्हें काफी मलाल है। छन्नूलाल मिश्र प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के साथ वाराणसी प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं। जो झूठे मुकदमे में फंसाया जा रहा है और दौड़ाया जा रहा है, उसे रोका जाए। साथ ही प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मिलने की इच्छा भी जताई है। कहा है कि मिलने पर ही बातें बताई जा सकती हैं, लेकिन उन्हें मिलने का समय तक भी नहीं दिया जा रहा है।”

पद्मश्री छन्नूलाल मिश्र की बेटी नम्रता जो पेशे से प्रोफेसर हैं, ने बताया कि माता और एक बहन की कोविड में निधन होने के बाद मथुरा से मजबूरन उन्हें मिर्जापुर ट्रांसफर करना पड़ा है। मैं कॉलेज में जाकर पढ़ाने के साथ ही पिता छन्नूलाल मिश्र की सेवा भी कर रही हूं। पिता जी अपने हाथ से खा भी नहीं पा रहे हैं और न ही चल पा रहे हैं।

जबकि संपत्ति की बात है तो सभी का बराबर होना चाहिए और सेवा भी बराबर करनी चाहिए, लेकिन कोई सेवा नहीं कर रहा है। उन्होंने आरोप लगाया की बड़ी बहन ममता ने, पिता के अकाउंट से लाखों रुपए अपने खाते में फर्जी सिग्नेचर से ट्रांसफर कर लिया है। अब झूठे केस में हमें और पिता को फंसा कर दौड़ा रही हैं। उनका एक ही मकसद है कि हमारी नौकरी चली जाए।”

वह आगे भी बताती है कि “पिता ने इस दो साल के बीच दो बार पत्र प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को लिखा, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। पिता के साथ बेटी (वह) भी प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगा चुकी हैं। बावजूद इसके कोई भी सुनवाई नहीं हो पा रही है। नम्रता दुखी भाव से कहती हैं “इतने प्रसिद्ध छन्नू लाल मिश्र दो साल से मिर्जापुर में रह रहे हैं, लेकिन यहां भी कोई जनप्रतिनिधि मिलने नहीं आया है।

जबकि दो मंत्री, सांसद, एमएलसी, पांच विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष सहित अन्य कई जनप्रतिनिधि इसी जिले से हैं। मिर्ज़ापुर और वाराणसी जिले आपस में लगे हुए हैं बावजूद इसके पद्मश्री छन्नूलाल मिश्र की उपेक्षा लोगों को कचोटने के साथ साहित्य कला, संस्कृति के महारथियों को नजरंदाज करती हुई प्रतीत होती है।

       (मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

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