नौगढ़, चंदौली। शाम ढलते ही अंधेरे में डूब जाने वाले गांव की तस्वीर कैसी होगी? बिना बिजली और रोशनी के उचित प्रबंध के सैकड़ों नागरिक जंगलों के बीच बसे गांव में कैसे गुजारा करते होंगे? यह खरवार आदिवासी जाति के तकरीबन 200 लोगों का गांव है। ग्रामीणों ने बताया कि रात में आने-जाने, भोजन पकाने, बच्चों की देखभाल, मवेशी, खेत-खलिहान व पढ़ाई आदि का काम टार्च और मोबाइल की रोशनी में होता है, जो घंटे-दो घंटे में बंद पड़ने लगते हैं। इसके बाद सुबह सूरज की रोशनी गांव में पड़ती है।
यहां पहुंचने वाली सरकारी सुविधाओं की स्थिति ग्रामीणों के फटेहाल जीवन से झांकते हुए एकदम साफ देखा जा सकता है। गांव का विकास ऐसा कि भिन्न-भिन्न विभाग अपनी बेहयाई पर घंटों सिर झुकाकर शर्मशार हो सकते हैं। वह इसलिए कि आजादी के 76वें वर्ष बाद भी विकास से छिटके औरवाटांड़ (चिकनी) के बाशिंदे मुख्यधारा से कोसों दूर जीवन जीने को विवश हैं। ‘जनचौक’ की टीम ने हाल ही में इस गांव का दौरा किया है।
“गांव में संसाधनों का बहुत अभाव है। पक्की सड़क, अस्पताल, साफ पेयजल और बढ़िया स्कूल के लिए मैं और मेरी तरह ही सैकड़ों छात्र-छात्राएं लंबे अरसे से तरस रहे हैं। अपने गांव में सबसे बड़ी दिक्कत बिजली की है। बिजली नहीं होने से पढ़ाई-लिखाई और घर के काम आदि के लिए मुसीबत उठानी पड़ती है। शाम ढलते ही गांव अंधेरे में डूब जाता है। दिन में किसी तरह से काम-धंधे से समय चुराकर मैं थोड़ा-बहुत पढ़-लिख पाती हूं।” यह बातें कक्षा दसवीं की सोलह वर्षीय छात्रा संगीता खरवार ने “जनचौक” से कही।

संगीता खरवार आगे कहती है कि “दिन में सूरज की रोशनी में चार्ज किये गए टॉर्च व लाइटर एक-दो घंटे में ही डिस्चार्ज हो जाते हैं। इनकी रोशनी में हैंडपंप से पानी लाने और खाना बनाने का कार्य ही बड़ी मुश्किल से हो पाता है। फिर पढ़ने की सोचती हूं तो घुप्प अंधेरे से डर लगता है। जबकि, मेरे गांव से थोड़े ही दूरी पर बसे गांव बिजली की रोशनी से जगमग रहता है। मैं यह सोचकर परेशान रहती हूं कि जाने कब हमारे गांव में बिजली आएगी।”
संगीता खरवार, उत्तर प्रदेश के चंदौली जिला मुख्यालय से 50-60 किलोमीटर दूर स्थित नौगढ़ विकासखंड के औरवाटांड़ गांव की निवासी है। चंदौली भौगोलिक और राजनीतिक रूप से प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटा हुआ जिला है। औरवाटांड़, चिकनी ग्राम सभा का एक गांव है। नौगढ़ कभी नक्सली गतिविधियों के लिए कुख्यात रहा है, लेकिन बदलते दौर के हिसाब से यहां के बाशिंदे अब सैकड़ों चुनौतियों से टकराकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन बगैर बिजली के उनकी कोशिश लंबी चलने वाली है। इसी की एक मिसाल है विंध्यपर्वत श्रृंखला में घने जंगलों से घिरे औरवाटांड़ ग्राम की संगीता। संगीता पुलिस बनकर देश-राज्य की सेवा करनी चाहती है।
नौगढ़ के औरवाटांड में आदिवासियों के बच्चों के लिए एक स्कूल का संचालन करने वाले जगदीश त्रिपाठी के अनुसार चंदौली और सोनभद्र के जंगलों में आदिवासियों की आठ जातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से कोल, खरवार, भुइया, गोंड, ओरांव या धांगर, पनिका, धरकार, घसिया और बैगा हैं। साल 1996 में वाराणसी से टूटकर चंदौली जनपद बना। इस दौरान कोल, खरवार, पनिका, गोंड, भुइय़ा, धांगर, धरकार, घसिया, बैगा आदि अनुसूचित जनजातियों को अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध कर दिया गया।

जगदीश आगे कहते हैं कि जबसे इन्हें अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध किया गया है तबसे इनका विकास, जीवन और पिछड़ गया, जबकि पास के सोनभद्र जनपद (यूपी) में उक्त जातियां आदिवासी जनजातियों के रूप में सूचीबद्ध हैं। इस वजह से चंदौली जनपद के आदिवासी, आदिवासी होकर भी प्रामाणिक रूप से आदिवासी नहीं हैं। अनुसूचित जाति में गिने जाने की वजह से इनको वन अधिकार कानून का लाभ नहीं मिल पाता। पत्रकार मनोज सिंह, इस लापरवाही को आदिवासी समाज से घोर छल मानते हैं। औरवाटांड़ (चिकनी) में 200-250 खरवार आदिवासी रहते हैं।
साठ वर्षीय हीरावती को स्वास्थ्य संबंधी कई दिक्कतें हैं। वह बताती है कि “शाम ढलते ही मुझे देखने में बहुत दिक्कत होती है। घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं। गांव जंगल से घिरा है। इस वजह से जहरीले कीट और सर्प का डर सदैव बना रहता है। रात में टॉर्च आदि से काम चलता है, लेकिन यह कामचलाऊ व्यवस्था बारिश और जाड़े के दिनों में फेल हो जाती है।”
हीरावती कहती हैं कि “सर्दियों के दिनों में कई-कई दिन सूरज नहीं निकलने पर गांव में अंधेरे का साम्राज्य कायम हो जाता है। ऐसी दशा में खाना बनाना, खाना-खिलाना और बच्चों की रखवाली में भी बहुत दिक्कत होती है। रास्ते और गलियां ज्यादातर कच्चे हैं। ये ऊबड़-खाबड़ होने की वजह से जहां-तहां पानी लगकर सड़ता रहता है। कई बार गांव की महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे गिरकर चोटिल भी हो जाते हैं।”

गांव के युवा धुरेंद्र खरवार का दावा है कि “साल 2021-2022 में अंधेरे की वजह से कम से कम 20 लोग सर्पदंश का शिकार हो गए थे। पास में कोई बढ़िया अस्पताल नहीं है। लोगों को बीमारी आदि के इलाज के लिए दूर जाना पड़ता है। सरकार के द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाएं आधी-अधूरी ही पहुंच पाती हैं। आशा द्वारा नौनिहालों के स्वास्थ्य की जांच समय से नहीं हो पाती है। इस वजह से कई बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।”
धुरेंद्र कहते हैं कि “आंगनबाड़ी की सुविधा और समय से टीकाकरण की व्यवस्था नहीं है। कई बार पोषण आहार के वितरण में भी लेट-लतीफी का खामियाजा आदिवासियों को चुकाना पड़ता है। गांव के बच्चे एक एनजीओ द्वारा चलाये जा रहे स्कूल में पढ़ते हैं। गांव से ब्लॉक और अन्य प्रशासनिक दफ्तर काफी दूर होने की वजह से ग्रामीण अपनी समस्या अधिकारियों और जिम्मेदारों तक नहीं पहुंचा पाते हैं। जिम्मेदार भी हम लोगों की खबर लेने में रुचि नहीं दिखाते हैं।”
इक्कीस वर्षीय कविता का मायका बिजली से आच्छादित समीपवर्ती गांव सरोदगढ़ में है, जहां वे पली-बढ़ी। वो ‘जनचौक’ को बताती हैं कि “जब मेरी शादी हुई तो मैं बहुत प्रसन्न थी, लेकिन यह ख़ुशी ज्यादा दिन नहीं टिक पाई। शादी के बाद औरवाटाड़-चिकनी आने पर पता चला की यहां बिजली ही नहीं है। जब मैं अपने पति से बिजली नहीं होने की समस्या पर बात की तो उन्होंने बताया कि यहां तो शुरू से ही बिजली नहीं है। बड़ी दिक्कत और परेशानी के बीच हम लोगों का गुजर हो रहा है।”

कविता कहती हैं कि “मेरे कहने पर पति ने प्रधान और अधिकारियों से बात करने का वादा किया था। लेकिन, इस गांव की तस्वीर वैसे के वैसे ही है। बिजली के नहीं रहने से सरकार के सभी प्रयास फीके लगते हैं। जंगल में गांव है। गांव में मिट्टी के घर में रहते हैं। अंधेरे में जंगली जानवर और जहरीले जीव घूमते हैं। लेकिन फ़िक्र किसे हैं? मेरी शादी हुई है, अब तो यही मेरा घर-बार है। गांव में बिजली आ जाती तो बच्चों की परवरिश आसान हो जाती। बच्चे अच्छे से पढ़-लिख पाते।”
आए दिन खराब हो जाती है सोलर लाइट
ग्रामीणों ने बताया कि बिजली के नहीं होने से गांव में तकरीबन 12-15 सोलर लाइट लगी हैं। इनसे रात में पानी भरने, उजाला करने और गृहस्थी से जुड़े कामों के लिए कुछ रोशनी की व्यवस्था हो पाती है। लेकिन, यह सोलर लाइट भी आए दिन ख़राब हो जाते हैं। ग्रामीण गर्मी के दिनों में कम रोशनी मिलने पर भी काम चला लेते हैं, लेकिन आसमान में बदली होने और बैटरी चार्ज न होने की स्थिति में लाइट की दिक्कत होती है। अब देखना यह कि बिजली विभाग के अधिकारी ग्रामीणों की विद्युतीकरण की मांग कब पूरा करते हैं?
स्थानीय बुल्लू खरवार को साफ़ पानी के किल्लत की समस्या कई वर्षों से है। वह बताते हैं कि “कुछ साल पहले गांव में सोलर पंप और नल लगाए गए थे। शुरू में यह व्यवस्था ठीक-ठाक रही। गर्मी आते-आते इसने भी पानी देना बंद कर दिया। इधर, कई महीनों से दर्जनों नल से पानी नहीं आ रहा है। बेकार पड़े नल धूप और बारिश में जंग खा रहे हैं। इसके चलते सर्दी, धूप व बारिश में पेयजल के लिए बहू-बेटियों और हम लोगों को घर आस-पास लगे गिनती के हैंडपंप पर पानी लेने जाना पड़ता है। यह काम दिन भर में कई बार करना पड़ता है।”

बुल्लू कहते हैं कि “गांव वालों का कई घंटों का समय सिर्फ पानी जुटाने में बीत जाता है। जिला प्रशासन से मेरी अपील है कि गांव में बिजली पहुंचाने के साथ बेकार पड़े नलों को भी दुरुस्त कराने का कष्ट करें। हो सके तो हमारे गांव का रास्ता भी पक्का कराने का कष्ट करें।”
पंद्रह-सोलह वर्षीय चंद्रोश ने सोलर लाइट में ही एक प्लग लगाकर मोबाइल चार्जिंग का जुगाड़ बना दिया है। गांव में अधिकतर लोगों के मोबाइल फोन गिनती के सोलर से ही चार्ज होते हैं। लोगों ने बताया कि बारिश और सर्दी के दिनों में रोशनी की व्यवस्था करने के साथ मोबाइल चार्ज करना भी मुश्किल हो जाता है।
धान की रोपाई के लिए खेत तैयार करने में जुटे कांता खरवार जैसे ही घर पहुंचे उनकी ‘जनचौक’ की टीम से मुलाकात हो गई। उन्होंने बिजली न होने से उनकी खेती-किसानी पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव के बारे में विस्तार से बताया। कीचड़ से सने कांता कहते हैं “बिजली नहीं होने से अंधेरा तो है ही, साथ ही दुश्वारियां भी कम नहीं है। सिंचाई आदि के लिए डीजल पंप ही एकमात्र स्रोत है।”

कांता कहते हैं कि “इतनी महंगाई के बीच महंगे डीजल से खेती करने से हम लोगों को क्या बचेगा? लेकिन, भरण-पोषण के लिए काम भर अनाज पैदा हो जाए, इसलिए महंगी खेती करनी पड़ रही है। कम बारिश से इधर दो सालों से धान-गेहूं की खेती मुश्किल हो गई। बंधे, तालाबों और खेतों की ढलाई पर बने गड्ढों में जमे पानी से सिंचाई होती है। यहां नलकूप की जरूरत है।”
‘प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना’ के अलावा ‘सौभाग्य योजना’ विशेष रूप से गरीबों को बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए 25 सितंबर 2017 से शुरू की गई है। 21 मार्च 2019 तक इस योजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। ऐसे में साल 2023 आधा गुजर गया और औरवाटांड़ में बिजली के नहीं पहुंचने से कई सवाल उठ रहे हैं।
औरवाटांड़ (चिकनी) में बिजली नहीं होने की बात स्वीकारते हुए विद्युत विभाग चंदौली अधिशासी अभियंता एके सिंह ने बताया कि “विभाग द्वारा इस्टीमेट तैयार है। पड़ोसी गांव में बिजली है। औरवाटांड़ (चिकनी) में बिजली पहुंचाने के लिए वन विभाग की स्वीकृति आवश्यक है। इसके लिए विभागीय स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। वन विभाग द्वारा स्वीकृति मिलते ही औरवाटांड़ (चिकनी) में बिजली आपूर्ति का कार्य शुरू कर दिया जाएगा।”
(उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के नौगढ़ से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)
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