‘मेरा नाम बबलू है और मैं ईसाई धर्म को मानता हूं। 5 फरवरी को मैं मोटरसाइकिल से बाहर जा रहा था कि उसी समय मेरे गांव में पड़ोस के गांव से सैंकड़ों की संख्या में लोग इकट्ठा हो गए। उन्होंने अचानक मुझे रोका और मेरी मोटरसाइकिल की चाबी निकाल दी और मारना शुरू कर दिया। मेरे पेट पर डंडों और लात से इतना मारा गया कि मेरा पेशाब रुक गया।
इन लोगों ने मुझे तीन दिन का समय दिया है और कहा है या तो गांव छोड़ दो या फिर ईसाई धर्म को मानना छोड़ दो। मेरा खेत, मेरा घर सब उसी गांव में है। मेरे साथ सात और लोगों को भी पीटा गया है। मारने वाले लोग गांव के भी थे और बाहर के गांवों से भी आए थे। इससे पहले गांव में एक बैठक भी हुई थी, मुझे नहीं मालूम कि बैठक किस ने ली थी लेकिन उसी के बाद हम लोगों के साथ मारपीट की गई।’
ये कहना है बस्तर जिले के एक गांव में रहने वाले बिल्लू (बदला हुआ नाम) का। आरोप है कि रविवार को बस्तर में ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों के साथ बेरहमी से मारपीट की गई।

पीड़ित समारू राम कावड़े, मुरागांव निवासी सन्नी राम, शंकर लाल कावड़े ने बताया कि रविवार को ये लोग मुरागांव में एक घर में प्रार्थना कर रहे थे, तभी कुछ लोग उनके घर आए और उनके प्रार्थना स्थल पर तोड़-फोड़ करते हुए उन पर हमला बोल दिया। हमलावरों ने इन सब लोगों के साथ बेतहाशा मारपीट की। ये भीड़ बेहद आक्रामक थी और करीब 10-15 गांवों के लोग उस वक्त वहां मौजूद थे।
विडंबना ये है कि जब ये लोग कांकेर जिला मुख्यालय में पहुंच कांकेर एसपी, कलेक्टर से मारपीट की शिकायत कर रहे थे उसी दौरान कांकेर के एक निजी होटल में सर्व हिंदू समाज की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस की जा रही थी, जिसमें 8 फरवरी को धर्मांतरण को लेकर धरना-सत्याग्रह की बात कही जा रही थी। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में ज्यादातर बीजेपी-आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ता मौजूद थे।

दरअसल छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों पर हमले बढ़े हैं। यहां हिंदूवादी संगठन धर्म बदल कर ईसाई बने आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से अलग करने की मांग कर रहे हैं और ऐसा पिछले दो-तीन महीनों से मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और झारखंड जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में भी देखने को मिल रहा है।
इसी के लिए जनजातीय सुरक्षा मंच का भी गठन किया गया है। इससे पहले कांकेर में जनजाति सुरक्षा मंच ने दर्जनों रैलियां और सभाएं भी की थी, जिनमें धर्मांतरण का आरोप लगाया जाता रहा है। लेकिन अब इन घटनाओं ने उग्र रूप अख्तियार कर लिया है और ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों के साथ हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है ।
पिछले कई सालों से भारतीय जनता पार्टी ईसाई संगठनों पर आदिवासियों के धर्मांतरण का आरोप लगाती रही है। कहा जा रहा है कि हिंदूवादी संगठन ग्रामीणों को बहलाकर धर्म बदलने वाले लोगों पर हमले करवा रहे हैं।
पिछले साल दिसंबर में यहां के दो ज़िलों कोंडागांव और नारायणपुर में 33 गांवों के ईसाई लोगों ने अलग-अलग सामुदायिक भवन, चर्च, प्रार्थना घर और खेल स्टेडियम में शरण ली थी। पीड़ित लोगों का आरोप है कि धर्मांतरण से नाराज़ कई गांवों के लोगों ने संगठित हो कर उन पर हमला किया था।
राज्य में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और धर्मांतरण का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा बनता जा रहा है जिसे लेकर कांग्रेस और बीजेपी जुबानी जंग लड़ रहे हैं। एक तरफ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बीजेपी को दंगा फैलाने वाली पार्टी बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ बीजेपी इसी मुद्दे के ज़रिए सरकार बदलने का चैलेंज दे रही है।

छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल का कहना है कि आभास विश्वास में बदलता जा रहा है। वो कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में मुर्दों के ऊपर राजनीति हो रही है।
हद तो तब हो गई जब कोंडागांव कलेक्टर ने एक ईसाई शख्स की लाश को खोदकर निकालने के आदेश दिए। जबकि लाश रायपुर से कोण्डागांव पहुंची ही नहीं थी और कब्र खुदी तक नहीं थी। ईसाइयों के अंतिम संस्कार को रोकना चलन बन गया है।
अब तक सरकारी श्मशान की जमीन को सभी धर्मों के लोग इस्तेमाल कर सकते थे, लेकिन सरकार की निष्क्रियता का आलम ये है कि जहां अभनपुर एसडीएम का फरमान देते हैं कि शव अपने खेत में गाड़े जाएं तो कोण्डागांव एसडीएम ने आदेश दिया था कि शव अपने खेत में नहीं गाड़े जा सकते।
दरअसल पिछले कुछ समय से आदिवासी से ईसाई बने लोगों की मौत के बाद शव दफ़नाए जाने को लेकर विवाद हो रहा है। कांकेर में इस तरह के मामले सामने आए हैं जहां स्थानीय गांव वाले शवों को मृतकों के अपने गांवों में दफ़नाए जाने तक की इजाज़त नहीं दे रहे हैं।
कई जगह दफ्न हो चुके शवों को कब्र से निकाला गया कि, गांव वालों का कहना था कि मृतक लोगों ने धर्म परिवर्तन किया था इसलिए इन्हें गांवों में अंतिम संस्कार की इजाज़त नहीं दी जा सकती।
वहीं छत्तीसगढ़ पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान कहते हैं कि ऐसा लगता है कि ग्राम स्वराज्य जल, जंगल और ज़मीन बचाने के लिए कथित जन आंदोलनों के मध्य हिन्दू फ़ासिस्ट ताक़तों की घुसपैठ हो चुकी है।
आदिवासी इलाकों में पेसा कानून की आड़ लेकर ये ताक़तें आदिवासी-ईसाई धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ गैर- ईसाई आदिवासियों को गोलबंद करने के अभियान में अति सक्रिय हैं। यह कहने की जरूरत नही है कि हिन्दू राष्ट्रवाद का यह एक स्वरूप है।
2011 की जनगणना के अनुसार, छत्तीसगढ़ की कुल आबादी 2.55 करोड़ है, जिनमें से 4.90 लाख जनसंख्या ईसाइयों की है, यानि इस ईसाई धर्म को मानने वालों की कुल आबादी 1.92 फीसदी है।
(छत्तीसगढ़ से तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट)
+ There are no comments
Add yours