देहरादून। आजादी के बाद भी स्वराज में विकास की किरण से महरूम रहने वाले उत्तराखंड के दुर्दिन राज्य स्थापना के 23 साल बाद भी खत्म नहीं हुए हैं। भौगौलिक परिस्थितियों के कारण प्रकृति का गाहे- बगाहे प्रकोप झेलने को अभिशप्त उत्तराखंड के गांवों को आज भी उस सुबह की प्रतीक्षा है जहां उनकी दिक्कतों का बोझ कम हो सके। लेकिन राज्य के विकास के लिए कोई स्पष्ट व यथार्थवादी कारगर नीति न होने के कारण इस सुबह के लिए लोगों का इंतजार बस इंतजार ही बना हुआ है।
यूं तो पहाड़ खुद ही लोगों के लिए समस्याओं की खान बन चुका है। लेकिन इन समस्याओं की एक बानगी यह भी है कि यहां इससे पहले ही एक समस्या का समाधान निकले, दूसरी समस्या उससे पहले ही मुंह बाए खड़ी हो जाती है। ऐसा ही कुछ राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के कल्जीखाल ब्लॉक में उस समय हुआ जब बंदरों को कैद करने के लिए लगाए गए पिंजरे में गुलदार ने ही दस्तक डाल दी। पिंजरे में बंद इस गुलदार को देखते ही ग्रामीणों के होश फाख्ता हो गए।
जैसा कि मालूम ही है कि लम्बे समय से राज्य के पर्वतीय व मैदानी क्षेत्र के बीच की पट्टी (भावर) के गांवों में वन्यजीवों का खौफ बना हुआ है। गुलदार, बाघ और जंगली हाथी जैसे हिंसक वन्य जीव लोगों की जिंदगी पर इतने भारी पड़ रहे हैं कि गांवों में कर्फ्यू लगाने के साथ ही सुरक्षा के लिए स्कूलों को बंद करने की नौबत आ चुकी है तो दूसरी तरफ बंदर, सूअर जैसे वन्यजीव ग्रामीणों के खेतों की फसलों को बर्बाद करने पर आमादा हैं।
यह बंदर अपने स्वभाव में इतने आक्रामक हो चुके हैं कि बंदरों से बचने के लिए पाले गए कुत्तों तक को इतना पीट देते हैं कि रखवाली वाले कुत्ते तक खुद बंदरों से बचने का प्रयास करते हैं। ऐसे में ग्रामीण सामूहिक हुंकारा लगाकर इन्हें भगाते हैं। लेकिन ऐसा हर समय संभव न होने के कारण इन्हें पकड़कर जंगल में छोड़ने के लिए पिंजरे का सहारा भी लेना पड़ता है।
ऐसे ही एक कोशिश के तहत गढ़वाल के कल्जीखाल ब्लॉक में बंदरों को पकड़ने के लिए वन विभाग की तरफ से लगाए गए पिंजरे में एक गुलदार कैद हो गया। गुलदार को पिंजरे में कैद होते देख ग्रामीण दहशत में आ गए। पहली समस्या के समाधान की बजाए अगली समस्या मुंह बाए साक्षात खड़ी थी।
ग्राम प्रधान मल्ली जयवीर सिंह के अनुसार क्षेत्र में बंदरों द्वारा ग्रामीणों को काटकर घायल करने की घटनाएं होने पर वन विभाग ने क्षेत्र में बंदर पकड़ने वाले पिंजरे लगाए थे। इन पिंजरों में पूर्व में कुछ बंदर कैद भी हुए थे। जिन्हें वन विभाग ने रेस्क्यू कर अन्यत्र भेज दिया था। लेकिन इस बार बंदरों को फंसाने के लिए लगाए गए पिंजरे में गुलदार फंस गया। जिसको देखकर ग्रामीणों के होश फाख्ता गए।

गुलदार की इस दस्तक से गांव में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। बंदरों को कैद करने के लिए लगाया गया पिंजरा हल्का होने के कारण कैद गुलदार पिंजरे में आक्रामक दिखाई दिया। जिसके कारण कोई भी ग्रामीण पिंजड़े के पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। ऐसे में वन विभाग को सूचना दी गई। जिसके बाद वन विभाग की टीम गुलदार का रेस्क्यू कर उसे नागदेव रेंज ले लाई है। रेंजर ललित मोहन के मुताबिक गुलदार को अब सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया जाएगा।
इस मामले में ग्रामीणों का कहना है कि गांव में दिन भर बंदरों के झुंड की आमद बनी रहती है। बंदरों के झुंड ग्रामीणों पर भी झपट पड़ते हैं। कई महिलाओं और बच्चों को इनके द्वारा काटे जाने की घटनाएं हो चुकी हैं। शाम होते ही जब इनका प्रकोप कुछ कम होता है तो जंगली सुअरों के झुंड उनकी फसलों को रौंदने के लिए उनके खेत में आ धमकते हैं।
जिस खेत में सुअरों का झुंड एक बार घुस जाता है, उस खेत की पूरी फसल ही तबाह कर देता है। इसके अलावा गुलदार की दस्तक भी उनके गांव में होती रहती है। जिसको लेकर बच्चे, बुजुर्ग और महिलाओं के लिए खतरा लगातार बना रहता है।

गांव में समस्याओं का आलम यह है कि गांव की नौजवान पीढ़ी अब गांव में रहना ही नहीं चाहती। अधिकांश युवा शहरों में रहकर छोटा मोटा काम करने को तैयार हैं। लेकिन समस्याओं से घिरे इन गांवों में रहने को तैयार नहीं हैं। गांव छोड़ने वाले ऐसे युवाओं के लिए सरकार की कोई यथार्थवादी पॉलिसी नहीं है। युवाओं के इस पलायन की समस्या केवल पलायन आयोग में दर्ज होने वाले आंकड़ों की फाइल में ही दम तोड रही है।
(देहरादून से सलीम मलिक की रिपोर्ट)
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