नीतीश कुमार के दांव का इंतजार, 22 जनवरी तक बिहार में हो सकता है बड़ा धमाका!


राजनीति के बारे कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती क्योंकि असली राजनीति मैदान में कम जेहन में ज्यादा होती है। कब कौन पलटी मारे और कब कोई किसी को पटखनी दे दे, यह केवल वही जानता है जिसके जेहन में राजनीति उमड़ती घुमड़ती रहती है। और फिर मौजूदा राजनीति जिस तरह से दोराहे पर खड़ी है और नीतीश कुमार जैसे राजनेता पर कई सवाल विपक्षी बीजेपी और गोदी मीडिया दाग रहे हैं ऐसे में क्या सच है और क्या झूठ इसका पूर्वानुमान लगाना कठिन है। लेकिन एक बात तय है कि नीतीश कुमार जो भी करेंगे वह बड़ा ही करेंगे। ऐसा बड़ा काम जिसकी कल्पना किसे ने की भी नहीं होगी।

नीतीश कुमार बिहार जैसे प्रदेश के दो दशक से मुख्यमंत्री हैं। वे बीजेपी के लिए भी उतने ही अहम् हैं जितने राजद और कांग्रेस के लिए। बीजेपी जानती है कि नीतीश के बिना बिहार को जीतना कठिन है। बीजेपी यह भी जानती है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में उनकी बाजी वाली राजनीति कारगर नहीं होगी। बीजेपी और गोदी मीडिया जानती है कि अगर नीतीश पाला नहीं बदलते हैं या फिर उनकी पार्टी जदयू नहीं टूटती है तो बिहार के साथ ही हिंदी पट्टी में उनकी राजनीति को वाट लग सकती है। यही वजह है कि पिछले महीने भर से बीजेपी की तमाम शाखाएं नीतीश और उनकी पार्टी को कमजोर दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

लेकिन यह सब सिक्के का एक पहलू है। दूसरा पहलू तो यह है कि नीतीश कुमार जो दांव खेलने वाले हैं उससे बीजेपी की आगामी राजनीति को बड़ा धक्का लग सकता है। जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक नीतीश कुमार अब बड़े खेल को अंजाम दे सकते हैं। पार्टी के भीतर जो रणनीति बन रही है उसके मुताबिक नीतीश कुमार बहुत जल्द ही कोई ऐसा फैसला करने वाले हैं जिससे बीजेपी की जमीन ही ख़राब हो जाए।

कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार दो फार्मूला पर काम करते दिख रहे हैं। पहला, काम तो यही है कि वह राजद के हाथ में सत्ता सौंप सकते हैं। तेजस्वी के हाथ में बिहार को सौंप सकते हैं और खुले रूप से वे केंद्र की राजनीति में उतर सकते हैं। ऐसा करके वे राजद को भी खुश कर सकते हैं और अपनी पार्टी को भी मजबूत कर सकते हैं। वे बिहार समेत पूरे हिंदी पट्टी का दौरा करेंगे और मोदी की राजनीति में पलीता लगा सकते हैं।

और दूसरा काम यह कर सकते हैं कि 22 जनवरी के आसपास वे बिहार की सरकार और विधान सभा को भंग करने की सिफारिश राज्यपाल से कर सकते हैं। इसकी तैयारी की जा रही है। भीतर ही भीतर इस पर मंथन भी चल रहा है। ऐसे में बीजेपी के पास कुछ कहने को बच नहीं पायेगा। बीजेपी सरकार भी नहीं बना सकती। उसकी पूरी राजनीति ही भोथरी हो सकती है। फिर खेल यही होगा कि लोकसभा चुनाव के साथ ही विधान सभा का चुनाव भी साथ ही होगा। बीजेपी इसके लिए कितना तैयार होगी अभी कहना मुश्किल है।

खबर यह भी मिल रही है कि नीतीश यह धमाका जनवरी के ठीक उसी समय कर सकते हैं जब अयोध्या में मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा को लेकर बीजेपी आयोजन करती दिखेगी। बीजेपी अयोध्या के जरिए देश को बीजेपी मय और राममय करने की कोशिश है और यह कोशिश सिर्फ लोकसभा चुनाव को लेकर है। बीजेपी के लोग जो गांव-गांव घूमते हुए अयोध्या का निमंत्रण लोगों को बांट रहे हैं और गांव के लोगों के कान में बस यही संदेश दे रहे हैं मोदी ने मंदिर का निर्माण कराया है और मोदी की तरफ से आपको निमंत्रण भेजा गया है।

इसके साथ ही बीजेपी के लोग यह भी चलते-चलते कह जाते हैं कि विपक्ष वाले मंदिर का विरोध कर रहे हैं इसलिए इस बार मंदिर का दर्शन कीजिये और बीजेपी को वोट दीजिये। अगली बार काशी और मथुरा को भी स्वतंत्र करा दिया जाएगा। नीतीश कुमार बीजेपी के इस खेल को समझ गए हैं। अब नीतीश कुमार को लगने लगा है कि हिंदी पट्टी के लोगों में जो बातें बैठाई जा रही है अगर इस पर प्रहार नहीं किया गया तो हिंदी पट्टी के लोग बीजेपी के साथ खड़े हो सकते हैं।

बीजेपी के इस खेल को नीतीश कुमार अब ध्वस्त कर सकते हैं। खबर तो यह भी मिल रही है कि नीतीश कुमार ने पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए जो खेल किया था वह सफल हो गया है। इस खेल में ललन सिंह भी बड़े किरदार रहे हैं। उन्होंने पहले बीजेपी और गोदी मीडिया द्वारा फैलाई गई सभी बातों को सुनते रहे। कुछ अपमान भी सहे लेकिन नीतीश कुमार के मकसद को पूरा कर गए। यह सच है कि ललन सिंह लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और यह भी सच है कि उन्होंने इस बावत पहले ही नीतीश कुमार को सब बता चुके थे कि उन्हें फ्री किया जाए ताकि अपने क्षेत्र में जाकर चुनाव की तैयारी कर सके। सच तो यही है कि बीजेपी और गोदी मीडिया नीतीश कुमार और ललन सिंह के झांसे में फंस गए।

अब जब नीतीश कुमार जदयू के अध्यक्ष बन गए हैं, इंडिया गठबंधन के सभी बैठकों में जायेंगे और हर बात को अपने तरीके से रखेंगे, सीट बंटवारे की कहानी हो या फिर कहां से किसे लड़ना है उस पर फैसला करना हो, अब नीतीश कुमार खुद ही इसका फैसला करेंगे। एक पार्टी अध्यक्ष होने के नाते वे कांग्रेस के साथ ही सभी पार्टियों से आधिकारिक रूप से फैसला लेंगे।

यह भी सच है कि सीट बंटवारे को लेकर बिहार से लेकर यूपी और बंगाल से लेकर महाराष्ट्र में जो परेशानी होने वाली है उसमे नीतीश कुमार बहुत जल्द ही सपा, शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस, टीएमसी और झामुमो के साथ बैठक कर सकते हैं। सूत्रों से मिल रही खबर के मुताबिक जदयू के भीतर अभी जो कुछ भी हुआ है उसकी जानकारी इंडिया गठबंधन के अधिकतर नेताओं को थी। कुछ जानकारियां तो राहुल और खड़गे को भी थी।

अब सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर सब कुछ सामान्य रहा तो जनवरी में बिहार से बड़ी खबर निकल सकती है। धमाका बिहार से होगा न कि अयोध्या से। अगर बिहार के प्लान को अमली जमा पहना दिया गया तो फिर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ेगी और अयोध्या का हिंदूवादी दाव विफल भी होगा।

(अखिलेश अखिल स्वतंत्र पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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