महाराष्ट्र में महायुती की प्रचंड जीत का क्या रहस्य है?

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इस प्रश्न का किसी के पास ठोस उत्तर अभी तक नहीं है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों को यह छप्परफाड़ जीत किस आधार पर हासिल हो सकी, यह प्रश्न हरियाणा में मिली जीत से भी ज्यादा हैरान-परेशान करने वाली है। लेकिन चुनावी नतीजों के बाद समीक्षकों, राजनीतिक बतोलेबाजों को गाल तो बजाना ही है, इसलिए हर अखबार और यूट्यूब विश्लेषण में आपको रंग-बिरंगे कारण बता दिए जा रहे हैं।

यह प्रश्न हमारे लिए भी बेहद हैरान करने वाला रहा, लेकिन इसी बीच एक लोकसभा क्षेत्र के आंकड़े पर नजर गई, जिसका चुनावी पैटर्न बेहद हैरान करने वाला था। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ नांदेड़ लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव संपन्न हुए।

जून 2024, लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के वसंतराव बलवंतराव चव्हाण को नांदेड़ लोकसभा सीट पर जीत हासिल हुई थी, लेकिन अगस्त में उनकी मृत्यु के बाद इस सीट पर उप-चुनाव कराए गये। कांग्रेस की ओर से वी बी चव्हाण के बेटे रविन्द्र वसंतराव चव्हाण को मैदान में उतारा गया, और कांग्रेस इस सीट पर जीत दर्ज करने में सफल रही।

हालांकि आम चुनाव में स्वर्गीय वसंतराव चव्हाण ने भाजपा के प्रताप पाटिल चिखलीकर को 59,442 मतों के महत्वपूर्ण अंतर से हराया था। हालिया उप-चुनाव में रवींद्र चव्हाण ने भाजपा उम्मीदवार संतुकराव हंबार्डे को 1,457 वोटों के मामूली अंतर से पराजित किया है। नांदेड़ जिले को भाजपा के राज्यसभा सांसद, अशोक चव्हाण का गढ़ माना जाता है, जिनके पिता एसबी चव्हाण सहित खानदान 50 के दशक से इस क्षेत्र पर मजबूत पकड़ बनाये हुए था।

लेकिन इस लेख का मकसद महाराष्ट्र के नांदेड़ लोकसभा के उपचुनाव की जानकारी देना नहीं था। असल बात तो उसके बाद शुरू होती है, और वह यह है कि इस लोकसभा की 6 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर भाजपा गठबंधन को जीत हासिल हुई है। यानि मतदाता ने तय कर रखा था कि लोकसभा में कांग्रेस को जिताना है और विधानसभा में महायुती की सरकार बनानी है। यह संयोग है या प्रयोग है, इसके बारे में तो कांग्रेस, शिवसेना उद्धव ठाकरे और एनसीपी (शरद पवार) गुट को ही तय करना होगा।

चलिए मान लिया कि 6 सीटों में से अधिकांश पर मतदाताओं ने लाड़की बहन योजना से प्रभावित होकर भाजपा और सहयोगी दलों को विजयी बना दिया होगा, लेकिन यह स्ट्राइक रेट 100% कैसे संभव है, जब वही मतदाता सांसद का चुनाव करने के लिए वोट करता है?

सीटवार यदि इसका विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि भोकर विधानसभा सीट पर भाजपा की जीत को लेकर कोई संदेह नहीं था। यह सीट परंपरागत रूप से अशोक चव्हाण के परिवार की सीट रही है। 50 के दशक से ही भोकर सीट से कांग्रेस के एस बी चव्हाण लड़ते रहे हैं, और दो बार राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे। उनके पुत्र अशोक चव्हाण भी इसी सीट से चुनाव लड़े और मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे। उनके अलावा उनकी माँ ने भी इस सीट से परिवार का प्रतिनिधित्व किया था, और इस बार बेटी श्रीजया चव्हाण को मैदान में उतारा गया था।

लिहाजा श्रीजया 1,33,187 वोट और 57.08% वोट हासिलकर कांग्रेस के कदम कोंधेकर तिरुपति (82,636 वोट) से बड़े अंतर से जीत दर्ज करने में सफल रहीं। तीसरे स्थान पर वंचित बहुजन अघाड़ी के सुरेश टिकाराम राठोड़ (8872) काफी पीछे थे।

लेकिन इसके साथ ही अन्य 5 विधानसभा सीटों पर भी यही हाल देखने को मिला। नायगांव से बीजेपी के राजेश संभाजीराव पवार 1,29,192 वोट पाकर कांग्रेस की डॉ मीनल पाटिल खटगांवकर (81,563) को 47,629 मतों से पराजित करने में कामयाब रहे। वीबीए 16,043 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थी।

इसी तरह नांदेड़ दक्षिण से शिवसेना (शिंदे) के आनंद शंकर तिड़के 60,445 वोट पाकर कांग्रेस के मोहनराव मारोतराव हमबर्दे (58,313) को 2,132 मतों से पराजित करने में सफल रहे। इस सीट पर वंचित बहुजन अघाड़ी को हासिल वोट निश्चित रूप से निर्णायक साबित हुए हैं, क्योंकि इसके उम्मीदवार फारुख अहमद के पक्ष में 33,841 वोट पड़े।

नांदेड़ दक्षिण विधानसभा सीट भी शिवसेना (शिंदे) गुट जीतने में कामयाब रही। यहां से बालाजी देविदासराव कल्याणकार 83,184 वोट हासिलकर कांग्रेस के अब्दुल सत्तार गफूर (79,682) को 3502 मतों के अंतर से पराजित करने में सफल रहे। वीबीए 24,266 वोट हासिलकर इस सीट पर भी कांग्रेस उम्मीदवार को बड़ा झटका देने में कामयाब रही है।

देगलूर विधानसभा सीट पर बीजेपी के अन्तापुरकर जितेश रावसाहेब 1,07,841 वोट पाकर कांग्रेस के निवृत्ती कोंडिबा काम्बले (64842) को 42,999 वोटों के बड़े अंतर से हराने में कामयाब रहे।

और अंत में मुखेड विधानसभा की बात करें तो यहां से भी बीजेपी के तुषार गोविंदराव राठोड़ 98,213 वोट हासिलकर कांग्रेस के हनमंतराव वेंकटराव पाटिल को 37,784 मतों से पराजित करने में सफल रहे। कांग्रेस के खाते में 60,429 वोट आये जबकि निर्दलीय बालाजी नामदेव खटगाँवकर ने 48,235 वोट हासिल किया है।

इन 6 विधानसभा की सीटों पर महायुती गठबंधन को हासिल कुल मतों का योग करें तो बीजेपी (4) और शिवसेना (शिंदे) को कुल 6,12,062 वोट हासिल हुए, जबकि सभी 6 सीटों कांग्रेस के खाते में 4,27,465 वोट आये। इसका अर्थ है कि विधानसभा चुनाव में महायुती और कांग्रेस के बीच 1,84,597 वोटों का अंतर रहा।

उधर लोकसभा सीट पर नजर डालें तो कांग्रेस के रविन्द्र वसंतराव चव्हाण के पक्ष में 5,86,788 वोट पड़े, जबकि भाजपा के डॉ शांतुकराव मारोतराव हम्बार्दे 5,85,331 वोट पाकर 1,457 मतों के अंतर से मुकाबला हार गये। इसका मतलब हुआ कि कुल 1,86,054 मतदाताओं ने विधानसभा और लोकसभा में वोटिंग पैटर्न में बदलाव किया।

क्या इसका अर्थ यह निकाला जाना चाहिए कि महाराष्ट्र की जनता 6 महीने बाद भी लोकसभा में भाजपा या कहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्थान पर राहुल गांधी को वरीयता दे रही है, लेकिन राज्य में वह शिंदे, देवेंद्र फडनवीस और अजित पवार के शासन से बेहद खुश है? अगर ऐसा है तो एनडीए और इंडिया गठबंधन, दोनों के लिए यह बेहद अहम खबर है।

गोदी मीडिया और यूट्यूब चैनलों में भी लाडकी बहन योजना को सबसे बड़ा गेम चेंजर बताया जा रहा है। साथ में यह भी कहा जा रहा है कि विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी और सबसे बढ़कर किसानों की दुर्दशा, विशेषकर कपास और सोयाबीन की लागत मूल्य से कम पर बाजार मूल्य को भुना पाने में विफल साबित हुई।

यह भी खबर है कि आरएसएस ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जमकर पसीना बहाया है। आरएसएस ने करीब 60,000 बैठकों के माध्यम से एंटी इनकंबेंसी, मराठा समुदाय के बीच में भाजपा के खिलाफ माहौल को न्यूट्रल करने में बेहद अहम भूमिका निभाई है और ग्राउंड पर रहते हुए बेहद ख़ामोशी के साथ हिंदुत्ववादी विचारधारा को पुख्ता करने में अपना योगदान दिया है।

लेकिन यहां पर भी एक बात पर लगता है इन विश्लेषकों का ध्यान नहीं गया, और वह है नांदेड़ लोकसभा उपचुनाव और इसकी 6 विधानसभा सीटों के नतीजे। क्या आरएसएस भी यह चाहती थी कि भाजपा और सहयोगी दल को विधानसभा की सभी सीटों पर जीत हासिल हो लेकिन लोकसभा उपचुनाव को लेकर उसने उदासीनता बरती? क्या आरएसएस ने ऐसा सोची-समझी रणनीति के तहत किया? और यदि यह सब नहीं किया तो फिर क्या ईवीएम, चुनाव आयोग को दोष देने के बजाय इसे नांदेड़ के प्रबुद्ध मतदाताओं की समझ के हवाले छोड़ दिया जाये?

आखिर इन 1,86,054 मतदाताओं जो कि करीब 14% है, को यह सब करने की कैसे सूझी? राज्य में महायुती के प्रति उमड़े प्यार और केंद्र से इतने बड़े पैमाने पर विरक्ति का कोई तो रहस्य अवश्य है। इंडिया गठबंधन और बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दोनों के लिए इसका उत्तर हासिल करना लाख टके का प्रश्न है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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