नई दिल्ली। बच्चों के लिए कैलाश सत्यार्थी को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने की छठी वर्षगांठ के अवसर पर इंडिया फॉर चिल्ड्रेन और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) की ओर से ‘बच्चों के लिए नेतृत्व संवाद’ ऋंखला के तहत ‘कोविड-19 महामारी के दौरान बाल अधिकारों का महत्व और संरक्षण’ विषयक एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में पूर्व सांसद और एशिया कनवेनर, पार्लियामेंटेरियन्स विटाउट बार्डर श्री केसी त्यागी और राज्यसभा सांसद अमी याजनिक ने भाग लिया। परिचर्चा का संचालन लोकसभा टीवी के वरिष्ठ एंकर अनुराग पुनेठा ने किया।
परिचर्चा में हिस्सा लेते हुए केसी त्यागी ने कहा कि एक भारतीय के नाते कैलाश सत्यार्थी को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने पर हम गौरवान्वित महसूस करते हैं। कोरोना सन् 1918 के बाद के मानव इतिहास की सबसे बड़ी महामारी है, वहीं 1930 के बाद की इसने सबसे बड़ी मंदी भी पैदा कर दी है। कल-कारखाने बंद हैं। कारोबार पूरी तरह चौपट हो गया है। कोरोना ने बच्चों को सबसे ज्यादा अपना शिकार बनाया है। भारत में बाल श्रमिकों की संख्या में कटौती हुई है, लेकिन अभी भी एक करोड़ से ज्यादा बाल श्रमिक देश में कार्यरत हैं।
कोरोना काल में स्कूलों के बंद होने से बच्चों को मिड डे मील की सुविधा नहीं मिल पा रही है, जिससे वे कुपोषण के शिकार हुए हैं। वे बौने होंगे और उनका शारीरिक विकास रुक जाएगा। इंटरनेट ने पोर्नोग्राफी को बढ़ाने का काम किया है। वहीं कोरोना ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बढ़ा दिया है। सरकार को चाहिए कि वह इस पर अविलंब रोक लगाए। अब पुराने ढर्रे पर काम नहीं चलेगा और इसके खिलाफ सांस्कृतिक-सामाजिक माहौल बनाने की जरूरत है। सामाजिक-राजनीतिक जागरुकता बढ़ानी होगी।
अगर अगली पीढ़ी को बचाना है तो पोर्नोग्राफी को जघन्य अपराध की श्रेणी में लाना होगा। संसद में एक दिन सिर्फ और सिर्फ बच्चों पर बहस हो। यह चिंता करने की बात है कि भारत सरकार स्वास्थ्य पर मात्र एक प्रतिशत खर्च करती है। कोरोना काल में तो और रोग बढ़ गए हैं। अगर यह महामारी गांवों में पहुंच गई, तो हम सिर्फ लाशें गिनेंगे। केंद्र सरकार को चाहिए कि बदलते वक्त के अनुसार वह स्वास्थ्य पर कम से कम तीन प्रतिशत खर्च करे और राज्य सरकारें 7-8 प्रतिशत।
वहीं बच्चों की उपेक्षा पर चिंता जाहिर करते हुए राज्यसभा सांसद अमी याजनिक ने कहा कि सरकार और समाज की निष्क्रियता और संवेदनहीनता का बच्चों पर बुरा असर पड़ा है। कोरोना काल में बच्चों के साथ जो ज्यादती हुई है वह शुभ संकेत नहीं है, इसलिए बच्चों के लिए तत्काल एक सुरक्षा जाल फैलाने की जरूरत है। बच्चे हमारी भावी पीढ़ी हैं यह सोचकर सरकार को स्पेशल बजट बनाना चाहिए। उनके लिए अलग हटकर काम करना होगा। जब तक कुछ नया नहीं करेंगे तब तक बच्चों की सुरक्षा हम नहीं कर पाएंगे।
कानून बनाने में हम हमेशा आगे रहते हैं, लेकिन उसको लागू करवाने में पीछे रह जाते हैं, इसीलिए यही वह सही समय है जब हमें बाल अधिकारों के कानूनों को लागू करने की मांग करनी चाहिए। स्कूलों के बंद रहने से बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओं में ही अधिकांश समस्याओं का समाधान निहित है। बच्चों की सुरक्षा के बारे में यदि हम नहीं सोचेंगे तो हमारा समाज अधूरा रह जाएगा। जहां तक पोर्नोग्राफी की बात है, तो सरकार को चाहिए कि वह पोर्नोग्राफिक साइट्स को बंद कर दें। जैसा कि अन्य देशों की सरकारों ने भी किया है। बच्चों को उनका अधिकार दिलाने के लिए हमें पार्टी लाइन से ऊपर उठना होगा।
बच्चों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्ति की छठी वर्षगांठ के छठे दिन आयोजित यह कार्यक्रम ‘फ्रीडम वीक’ के तहत आयोजित किया गया। फ्रीडम वीक के तहत छह दिनों से चल रही वर्चुअल परिचर्चाओं और फिल्म स्क्रीनिंग का यह सिलसिला पूरे देश में चल रहा है।
उधर, जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी की पुस्तक ‘कोविड-19: सभ्यता का संकट और समाधान’ का लोकार्पण भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने किया। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण ऑनलाइन माध्यम से संपन्न हुआ।
पुस्तक के लोकार्पण समारोह का संचालन प्रभात प्रकाशन के निदेशक प्रभात कुमार ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन पीयूष कुमार ने किया। ‘कोविड-19: सभ्यता का संकट और समाधान’ पुस्तक में कोरोना महामारी के बहाने मानव सभ्यता की बारीक पड़ताल करते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि मौजूदा संकट महज स्वास्थ्य का संकट नहीं है, बल्कि यह सभ्यता का संकट है। पुस्तक की खूबी यह है कि यह संकट गिनाने के बजाय उसका समाधान भी प्रस्तुत करते चलती है। ये समाधान भारतीय सभ्यता और संस्कृति से उपजे करुणा, कृतज्ञता, उत्तरदायित्व और सहिष्णुता के सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित हैं।
कैलाश सत्यार्थी ने इस अवसर पर लोगों का ध्यान कोरोना संकट से प्रभावित बच्चों की तरफ आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि महामारी शुरू होते ही मैंने लिखा था कि यह सामाजिक न्याय का संकट है। सभ्यता का संकट है। नैतिकता का संकट है। यह हमारे साझे भविष्य का संकट है और जिसके परिणाम दूरगामी होंगे। इसके कुछ उपाय तात्कालिक हैं, तो कुछ लगातार खोजते रहने होंगे। महामारी के सबसे ज्यादा शिकार बच्चे हुए हैं। आज एक अरब से ज्यादा बच्चे स्कूल से बाहर हैं।
इनमें से तकरीबन आधे के पास ऑनलाइन पढ़ने-लिखने की सुविधा नहीं है। बच्चों की दशा को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्रसंघ की संस्थाओं ने अनुमान लगाया है कि कोरोना से उपजे आर्थिक संकट की वजह से पांच साल से कम उम्र के तकरीबन 12 लाख बच्चे कुपोषण के कारण मौत के शिकार हो जाएंगे। उन्होंने इन परिस्थितियों को बदलने पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे बच्चों की सुरक्षा के लिए हमने दुनिया के अमीर देशों से वैश्विक स्तर पर ‘फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन’ की मांग की है।
महामारी से निपटने के लिए अमीर देशों ने अनुदान के रूप में कोविड फंड में आठ ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की थी, जिसमें उद्योग, व्यापार जगत और अर्थव्यवस्था को भी सुधारना था। हमने उसमें से आबादी के हिसाब से 20 प्रतिशत हिस्सा बच्चों के लिए देने की मांग की है, लेकिन अमीर देशों ने अभी तक बच्चों के मद में मात्र 0.13 प्रतिशत रकम ही दी है। न्याय की खाई कितनी चौड़ी है, इस उदाहरण से समझा जा सकता है। श्री सत्यार्थी ने इस अवसर पर कोरोना वैक्सीन को मुफ्त में सर्वसुलभ कराए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि संकट से उबरने के लिए हमें ‘करुणा का वैश्वीकरण’ करना होगा।
श्री सत्यार्थी ने दुनिया के बच्चों को शोषण मुक्त करने के लिए ‘100 मिलियन फॉर 100 मिलियन’ नामक दुनिया के सबसे बड़े युवा आंदोलन की शुरुआत की है, जिसके तहत 10 करोड़ वंचित बच्चों के अधिकारों की लड़ाई के लिए 10 करोड़ युवाओं को तैयार किया जाएगा। जबकि ‘लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन’ के तहत वे नोबेल पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं को एकजुट कर बच्चों के हक में आवाज बुलंद कर रहे हैं।
फिलहाल वे दुनिया की अमीर सरकारों से हाशिए के बच्चों को कोरोना महामारी संकट से उबारने के लिए ‘फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन’ नाम से अभियान चला रहे हैं, जिसके तहत वे बच्चों की आबादी के हिसाब से कोरोना संकट से उबरने के लिए अमीर सरकारों द्वारा दिए गए अनुदान में से उनके लिए हिस्सा मांग कर रहे हैं। इससे पहले भी उनकी हिंदी और अंग्रेजी में पांच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें से कुछ का विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है।
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