वन विभाग की वृक्षारोपण योजना को लेकर क्यों आक्रोशित है ग्राम सभा ?

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गढ़वा जिला अंतर्गत चिनिया रेंज में अवस्थित है मौजा हेताड़कला। बताया जाता है कि यहाँ वन विभाग द्वारा 25 हेक्टेयर वन भूमि पर वृक्षारोपण (प्लांटेशन) किया जाना है। इसके लिए वन भूमि और राजस्व भूमि के बीच ट्रेंच की खुदाई की जा चुकी है। वृक्षारोपण के लिए गड्ढे (पिट) भी खोदे गए हैं और जल संरक्षण के लिए 12 फीट लंबाई, 3 फीट चौड़ाई तथा 3 फीट गहराई वाले ट्रेंच पूरे वृक्षारोपण क्षेत्र में बनाए गए हैं। छोटे नालों पर जल संरक्षण के लिए छोटे-छोटे चेक डैम भी बनाए गए हैं। साथ ही गड्ढों की खुदाई भी हो चुकी है।

मजे की बात यह है कि गड्ढों की खुदाई को छोड़कर सारा कार्य जेसीबी मशीन से किया गया। झाड़ियों को काटकर साफ किया गया और उन्हें आग लगाकर पूरी तरह जमीन को साफ-सुथरा कर दिया गया।

उल्लेखनीय है कि 18 अप्रैल 2025 को सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक, भरी दोपहर में गाँव के प्रमुख लोग, जिनमें ग्राम प्रधान, वन अधिकार समिति के अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष सहित अन्य शामिल थे, ने योजना क्षेत्र का निरीक्षण किया और इस तरह की योजना का विरोध किया। इस दौरान ग्रामीणों से वृक्षारोपण योजना के विरोध के मूल कारणों पर चर्चा की गई और ग्रामीणों के पारंपरिक वन प्रबंधन ज्ञान को समझने का प्रयास किया गया।

इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज बताते हैं कि वृक्षारोपण योजना के विरोध और आक्रोश के जो मूल कारण सामने आए, उनसे स्पष्ट हुआ कि योजना में पारदर्शिता का अभाव है। विभाग द्वारा प्रस्तावित योजना के बारे में ग्रामीणों को कोई जानकारी नहीं दी गई, जैसे:

  • बजट का अनुमान कितना है?
  • परियोजना कितने वर्षों की है?
  • किस प्रजाति के पौधे लगाए जाएँगे?

इस संबंध में न तो कहीं कोई सूचना बोर्ड लगाया गया है, न ही गाँव की किसी सभा में सरकारी अधिकारियों ने योजना की जानकारी दी।

दूसरा प्रमुख कारण है पशुरोधक ट्रेंच की वास्तविक सीमा से बाहर खुदाई। निरीक्षण में पाया गया कि वन विभाग के कर्मचारियों ने वन भूमि की सीमा के पिलर से हटकर ग्रामीणों की राजस्व भूमि पर ट्रेंच खोद दी। आश्चर्य की बात है कि इस बारे में अंचल कार्यालय भी अनभिज्ञ है।

तीसरा कारण यह है कि झाड़ी सफाई के नाम पर आर्थिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक महत्व के पौधों को काट दिया गया। प्रस्तावित वृक्षारोपण क्षेत्र में झाड़ी सफाई के नाम पर कई मोटे पेड़ों को काटा गया। साथ ही ग्रामीणों के लिए महत्वपूर्ण कई पौधों को नष्ट किया गया, जो उनके आर्थिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक जीवन का हिस्सा हैं।

उदाहरण के लिए:

  • प्रस्तावित क्षेत्र में तेंदू पत्तों के पौधों की कटाई की गई, जिससे ग्रामीणों को आर्थिक नुकसान हुआ, क्योंकि वे तेंदू पत्ते एकत्र कर बेचते हैं।
  • कोरेया के पौधे, जिनके फूलों को ग्रामीण साग के रूप में उपयोग करते हैं, जड़ों से दवाइयाँ बनाते हैं और बीजों को बाजार में बेचते हैं, बड़े पैमाने पर काटे गए।
  • सीधा वृक्ष, जो आदिवासी समुदाय में सांस्कृतिक महत्व रखता है और शादी के मंडप में अनिवार्य रूप से उपयोग होता है, को भी नष्ट किया गया।
  • भेलवा के पेड़ और पौधों को काटा गया, जिनकी डालियाँ करम त्योहार के दूसरे दिन धान के खेतों में गाड़ी जाती हैं ताकि फसलों को कीड़ों से बचाया जा सके। साथ ही भेलवा के बीज सुगा (तोता) पक्षी के भोजन का स्रोत हैं।

पाया गया कि काटी गई अधिकांश लकड़ियों का उपयोग संजय साव ने व्यक्तिगत रूप से जलावन के लिए किया। वह गाँव में अवैध रूप से ईंट भट्टा चलाता है और आज वन विभाग का हिमायती बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि जंगल समुदाय का है और इसका निजी लाभ के लिए उपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

वर्षा जल के ठहराव के लिए खोदे गए ट्रेंचों में काटे गए पौधों और झाड़ियों को डालकर आग लगा दी गई। विभाग के इस कृत्य से ग्रामीण आक्रोशित हैं, क्योंकि इससे स्थानीय उपजाऊ मिट्टी को नुकसान हो रहा है।

वृक्षारोपण क्षेत्र में राजस्व भूमि और वन भूमि के बीच खोदा गया ट्रेंच कई जगहों पर सीमा पिलर से हटकर राजस्व भूमि में खोदा गया है। एक स्थान पर तो रैयत के जोत-आबाद खेत को भी वन सीमा के अंदर कर लिया गया।

पौधारोपण के लिए खोदे गए गड्ढों की लंबाई, चौड़ाई और गहराई अनुमान के अनुरूप नहीं है। 90 प्रतिशत गड्ढों की खुदाई मात्र 6 इंच गहरी है, जिससे पौधों के जीवित रहने की संभावना बहुत कम है। इससे ग्रामीणों को लगता है कि योजना के नाम पर केवल धन की बंदरबाँट की जा रही है।

जेम्स हेरेंज ने बताया कि ग्राम सभा के लोग चाहते हैं कि विभाग योजना के क्रियान्वयन में पूर्ण पारदर्शिता बरते। स्थानीय प्रजातियों जैसे महुआ, जामुन, कुसुम, आसन, अर्जुन, साल, पियार, इमली, बरगद, पीपल, बाँस आदि का वृक्षारोपण किया जाए। इसके लिए विभाग के अधिकारी ग्राम सभा में आकर अपनी बात रखें। ग्रामीणों ने चुनौती दी है कि यदि विभाग ऐसा नहीं करता, तो वे हर हाल में वृक्षारोपण का विरोध करेंगे।

हालाँकि, ग्रामीणों का यह भी कहना है कि जंगल उनकी धरोहर है। इसलिए प्रस्तावित क्षेत्र में वे स्वयं स्थानीय बीजों को संग्रहित कर आगामी बरसात में पौधारोपण करेंगे और अगले 3-4 वर्षों तक जिम्मेदारीपूर्वक पौधों को घरेलू जानवरों से बचाएँगे।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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