कहा जा रहा है कि पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर चलाया और पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों के शिविरों को तबाह कर दिया। सौ से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताई थी। लेकिन इसमें सच्चाई क्या है यह कोई नहीं जानता। इस ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान की और कितनी हानि हुई और भारत की रक्षा प्रणाली को कितना घात लगा, इसकी भी कोई माकूल जानकारी नहीं है। देश को कुछ भी पता नहीं है। देश को वही सब पता है जो सरकार कह रही है और सरकार की मीडिया प्रचारित कर रही है। सूत्रों के हवाले से खूब ख़बरें चल रही हैं लेकिन सरकार उस पर कुछ भी नहीं कह रही है। यह अमृत काल का सबसे बड़ा सत्य है और अर्धसत्य यह है कि सरकार जो कह रही है, पूरा देश उसे मानने को तैयार नहीं है।
इसी ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ी एक अलग कहानी यह है कि भारत -पाकिस्तान के बीच उपजा तनाव अचानक बंद हो गया। अमेरिका ने क्या कहा उस पर अगर नहीं भी ध्यान दिया जाए तो प्रधानमंत्री मोदी ने खुद ही कहा कि पाकिस्तान के डीजीएमओ के शरणागत होने पर सीजफायर का फैसला भारत ने लिया। सीजफायर का फैसला कहीं से भी गलत नहीं है। कोई भी इंसानी समाज कभी युद्ध नहीं चाहता। युद्ध वर्तमान को ही नहीं भविष्य को भी चौपट कर देता है। ऐसे में भारत ने अगर सीजफायर किया है तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता। लेकिन भारत की तरफ से सीजफायर की स्वीकृति तो कुछ न्यूनतम शर्तों पर हुई होगी। कम से कम यही शर्त कि अब भारत के भीतर कोई आतंकी हमला नहीं होगा और कोई भी आतंकी हमला पाकिस्तान का हमला माना जाएगा।
सीजफायर के दिन से ही जम्मू कश्मीर के कई इलाकों में हमले जारी हैं। मुठभेड़ चल रहे हैं और आतंकी मरे जा रहे हैं। हमारी सेना के जवान भी शहीद हो रहे हैं। सवाल यही है कि जब यह सब हो ही रहा है तो फिर सीजफायर क्यों? और बड़ा सवाल तो यही है कि पाकिस्तान का रवैया जिस तरह का रहा है उसमें भारत को उस पर यकीन क्यों करना चाहिए था। अगर भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया ही तो पाकिस्तान को ख़त्म कर देना ही बेहतर था। यही भारत की जनता भी चाहती थी और हमारी सेना भी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आखिर क्यों ? आज पाकिस्तान ठहाका लगा रहा है आखिर क्यों ? क्या पाकिस्तान ने हमें चित किया है? क्या पाकिस्तान ने कूटनीतिक रूप से हमें मात दे दी है। यह सब ऐसे कि दुनिया का कोई भी देश पाकिस्तान के खिलाफ नहीं है और न ही भारत के साथ खड़ा है।
लेकिन ये बातें तो अब पुरानी हो गई हैं और परदे के पीछे चली गई हैं। सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष चुनावी राजनीति को साधने में जुट गए हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जहाँ पूरा देश एक मत के साथ खड़ा था, अब फिर से विष वमन होने लगा है। सत्तापक्ष के लोग विपक्ष पर कई तरह के आरोप लगा रहे हैं तो विपक्ष भी सत्ता पक्ष की कलई को खोलने से बाज नहीं आ रहा है। और इस पूरे खेल में पार्टी को तोड़ने और जोड़ने की कहानी, रणनीति और कूटनीति भी खूब देखी जा रही है। इसका अंजाम क्या होगा यह भी परदे के पीछे की बात है लेकिन सच यही है कि बहुत कुछ हो रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर का परिणाम क्या हुआ इस पर शोध जारी है। बड़ी कहानी यह है कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद भारत में पाकिस्तानी जासूसों की पकड़ कुछ ज्यादा ही तेज हो गई है। कोई दर्जन भर पाकिस्तान के देसी जासूस भारत में पकड़े गए हैं। इनमें कुछ मुसलमान बिरादरी के हैं तो कुछ हिन्दू समाज के भी। वहीं हिन्दू समाज जो सीना तानकर कहता है कि आतंकी मुसलमान ही होते हैं और हिन्दू तो सत्य का प्रतीक और शांति का दूत।
लेकिन जिस अंदाज में भारत के कई इलाकों से पाकिस्तानी जासूसों की पकड़ हुई है उससे दो बातें सामने आ रही हैं। पहली बात तो यही है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद अचानक भारत में पाकिस्तानी जासूस कैसे पकड़े जाने लगे? और दूसरा सवाल यह है कि अगर भारत में इतने पाकिस्तानी जासूसों के जाल बिछे हैं तो फिर हमारी ख़ुफ़िया एजेंसी अभी तक क्या कर रही थीं? डोभाल क्या कर रहे थे और अमित शाह क्या कुछ कर रहे थे? लेकिन जवाब कौन देगा? और जवाब मांगता भी कौन है?
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत में पकड़े जा रहे पाकिस्तानी जासूसों पर एक नजर डालें तो कई चौंकाने वाली बात सामने आती है। नया मामला राजधानी दिल्ली का है, जहां केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ के एक जवान को गिरफ्तार किया गया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी, एनआईए ने दिल्ली में सीआरपीएफ के जवान मोती राम जाट को गिरफ्तार किया है। उस पर पाकिस्तान के खुफिया अधिकारियों के साथ भारत की संवेदनशील जानकारी साझा करने का आरोप है।
एनआईए ने बताया है कि मोती राम 2023 से पाकिस्तान के खुफिया अधिकारियों को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी दे रहा था। मोती राम को अलग-अलग तरीकों से पैसे भी मिल रहे थे। मोती राम को पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे छह जून तक एनआईए की हिरासत में भेज दिया गया।
क्या सरकार यह बताने की जहमत उठा सकती है कि अगर मोती राम 2023 से ही पाकिस्तान के लिए जासूसी कर रहा था तो हमारी ख़ुफ़िया एजेंसीज को इसकी जानकारी अब क्यों मिल रही है? क्या मान लिया जाए हमारी खुफिया एजेंसीज पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के सामने कमजोर हैं? और फिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? सीआरपीएफ तो गृह मंत्रालय के अधीन है। क्या अमित शाह जो गृह मंत्री हैं इसके बारे को कोई मुकम्मल जवाब दे सकेंगे?
इससे पहले 24 मई को गुजरात एटीएस ने कच्छ से एक शख्स सहदेव सिंह गोहिल को गिरफ्तार किया था। उससे पहले दिल्ली, हरियाणा और पंजाब से करीब एक दर्जन लोग गिरफ्तार किए गए, जिसमें एक चर्चित यूट्यूबर महिला भी थी।
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश से 11 पाकिस्तानी जासूसों को पकड़ा है। ये जासूस सोशल मीडिया और हनीट्रैप के माध्यम से आईएसआई को जानकारी दे रहे थे। इनमें ट्रैवल व्लॉगर और ऐप डेवलपर जैसे लोग शामिल हैं। हरियाणा के हिसार की ज्योति मल्होत्रा जैसी ट्रैवल व्लॉगर से लेकर पंजाब के मलेरकोटला के युवाओं तक, ये जासूस हनीट्रैप, मैसेजिंग ऐप्स और व्यक्तिगत यात्राओं के जाल में फंसाए गए।
भारत में गिरफ्तार पाकिस्तानी जासूसों की लिस्ट में हरियाणा हिसार की ज्योति मल्होत्रा तो है ही ,पानीपत हरियाणा के नोमान इलाही भी हैं। इसके साथ ही कैथल हरियाणा के देवेंद्र सिंह ढिल्लन भी हैं और जालंधर पंजाब के मोहम्मद मुर्तजा अली भी हैं। इसी के साथ मुरादाबाद यूपी के शहजाद भी हैं और गुरदासपुर पंजाब के सुखप्रीत सिंह भी हैं। इसी तरह गुरदासपुर पंजाब के करणवीर सिंह ,कोटला पंजाब के यामीन मोहम्मद ,कोटला पंजाब के गजाला खातून ,नूह हरियाणा के तारीफ और नूह हरियाणा के ही मोहम्मद अरमान को भी पाकिस्तानी जासूस के तौर पर गिरफ्तार किया गया है।
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, यह जासूसी नेटवर्क विशेष रूप से 20-30 आयु वर्ग के युवाओं को निशाना बनाता था, जो सोशल मीडिया पर सक्रिय थे। इनमें से कई लोग अनजाने में जाल में फंस गए, जबकि कुछ को पैसे और अन्य प्रलोभनों ने लालच में डाला। उदाहरण के लिए, ज्योति मल्होत्रा को कथित तौर पर एक फर्जी सोशल मीडिया प्रोफाइल के जरिए हनीट्रैप में फंसाया गया, जिसके बाद वह संवेदनशील जानकारी साझा करने लगीं। इसी तरह, पंजाब के मलेरकोटला से गिरफ्तार छह लोगों का समूह स्थानीय स्तर पर छोटे-मोटे काम करता था, लेकिन उन्हें सीमा पार से मिलने वाले निर्देशों के आधार पर सैन्य ठिकानों की तस्वीरें और जानकारी भेजने के लिए प्रेरित किया गया।
गुजरात आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने कच्छ सीमा के पास एक जासूस को गिरफ्तार किया है। उसकी पहचान सहदेव गोहिल के रूप में हुई है। अधिकारियों के मुताबिक, सहदेव गोहिल कच्छ के दयापार में एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहा था। वह कथित तौर पर पाकिस्तान की ओर से प्रायोजित जासूसी गतिविधियों में शामिल था। जांच में पता चला है कि सहदेव गोहिल अदिति भारद्वाज नाम की एक महिला के संपर्क में आया था, जो एक पाकिस्तानी जासूस है।
ये तो वे जासूस हैं जो पकड़े गए हैं। देश के बाकी हलकों में कितने पाकिस्तानी जासूस काम रहे हैं यह कौन जानता है? याद रहे देश के भीतर कब ये गद्दार सभी कौम, जाति और धर्म से जुड़े हैं। इस खेल में कोई किसी से कम नहीं। ऐसे में हम भले ही कितना ही ऑपरेशन सिंदूर चला लें भारत के भीतर बैठे इन दुश्मनों से देश की राजनीति कैसे निपट सकती है इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
लेकिन बड़ी बात यह है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद देश के भीतर इतने पाकिस्तानी जासूसों की पकड़ कैसे होने लगी है? कहीं इसके पीछे भी कोई बड़ा राजनीतिक खेल तो नहीं?
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)