मुंबई हमले का असली दोषी तो डेविड हेडली है, फिर तहव्वुर राणा के भारत आने पर इतना प्रचार क्यों?

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26/11 मुंबई आतंकवादी हमलों के सह-साजिशकर्ताओं में से एक तहव्वुर राणा गुरुवार को अमेरिका से भारत लाया गया। राणा को एनआईए के साथ बुधवार को अमेरिका से खास हवाई जहाज से दिल्ली के लिए भेजा गया। पहले माना जा रहा था कि राणा को मुंबई में उतारा जाएगा और उसे मुंबई के आर्थर जेल में रखा जाएगा। लेकिन उसे दिल्ली लाया गया। अदालती पेशी के बाद राणा को दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया है। चूंकि तहव्वुर राणा एनआईए के संरक्षण में है, इसलिए राणा से अब पूरी जानकारी एनआईए को ही लेनी है। याद रहे तहव्वुर राणा को भारत ने कोई गिरफ्तार नहीं किया है। अमेरिका ने राणा को भारत को प्रत्यर्पित किया है। प्रत्यर्पण संधि की कुछ अहम शर्तें होती हैं, जिसे अब भारत को निभाना पड़ेगा।

तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण निश्चित रूप से एक बड़ी उपलब्धि है। भारत सरकार का इस प्रत्यर्पण में बस यही भूमिका है कि मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के बीच राजनीतिक रूप से बहुत छनती है। वे एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं और कुछ ख्याल ऐसा भी, जिससे राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। मोदी अमेरिका में जाकर ट्रंप के समर्थन में प्रचार कर सकते हैं, तो क्या ट्रंप अपनी लाज बचाने के लिए तहव्वुर राणा जैसे दोयम दर्जे के अपराधी को भारत के हवाले भी नहीं कर सकते! फिर भी आतंकी तहव्वुर राणा का भारत आना बड़ी बात है और अब भारत सरकार उसके साथ कानून के मुताबिक जैसा भी सलूक करे, कर सकती है। लेकिन प्रत्यर्पण संधि के मुताबिक ही।

भारत में तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को लेकर प्रचार चरम पर है। कहा जा रहा है कि मुंबई हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर हुसैन राणा का प्रत्यर्पण इस बात का सबूत है कि भारत को टेढ़ी आँखों से देखने वाला कोई भी व्यक्ति दुनिया के किसी कोने में छिप नहीं सकता है। दुनिया को साफ संदेश है- भारत आतंकवाद के खिलाफ किसी भी स्तर तक जाकर लड़ेगा। यह प्रत्यर्पण सिर्फ राणा की भारत वापसी नहीं है, यह उन 175 बेगुनाहों के परिजनों को न्याय देने की शुरुआत है, जिन्होंने 26/11 की रात अपनी जान गँवाई थी। भारत ने यह दिखा दिया कि चाहे आतंकी कितना भी बड़ा क्यों न हो, उस पर किसी भी आका का हाथ क्यों न हो, आज न कल उसे भारतीय न्याय व्यवस्था का सामना करना ही पड़ेगा।

प्रचार यह भी किया जा रहा है कि राणा को अमेरिका से भारत लाना बिल्कुल भी आसान नहीं था, बल्कि कई स्तर पर कठिन से कठिनतम चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन कहते हैं न, ठान लेने पर क्या नहीं मिलता। भारत को राणा भी मिल गया। इसके लिए भारत सरकार के दो मंत्रालयों के साथ-साथ विभिन्न एजेंसियों ने तालमेल का शानदार उदाहरण पेश किया। अब एक खास फ्लाइट से राणा की दिल्ली में लैंडिंग हुई और इसके साथ ही भारत की आतंकवाद के खिलाफ जंग को एक बड़ी जीत मिली है। और यह सब मोदी जी ही कर सकते हैं।

निश्चित तौर पर तहव्वुर राणा का भारत आना बड़ी बात है और इसे सरकार की सफलता मानी जा सकती है, लेकिन इस सफलता में यह भी तो कहा जा सकता है कि यह तो सरकार का परम दायित्व भी है कि वह देश के दुश्मन को सामने लाए और दंडित करे। और फिर प्रधानमंत्री मोदी के रहते हुए ऐसा होना भी चाहिए। लेकिन कहानी तो कुछ और भी है।

अगर मोदी की डर से पूरी दुनिया काँप रही है और पूरी दुनिया मोदी जी के सामने झुकने को मजबूर है, तो फिर देश के उन आर्थिक अपराधियों को मोदी सरकार आज तक भारत में क्यों नहीं ला पाई? मेहुल चौकसी, नीरव मोदी से लेकर विजय माल्या आज भी भारत की पकड़ से दूर क्यों हैं? सवाल यह भी है कि देश के उसी महाराष्ट्र और मुंबई में बार-बार और न जाने कितनी बार तबाही मचाने वाले पाकिस्तान में बैठा दाऊद इब्राहिम कब भारत आएगा? देश के साथ गद्दारी करने वाले वे तमाम लोग कब दंडित किए जाएंगे? ऐसे बहुत से सवाल अब खड़े हो रहे हैं।

सच तो यही है कि अमेरिका से भारत आया आतंकी तहव्वुर राणा भारत के लिए आज राजनीतिक रूप से इसलिए काफी अहम है, क्योंकि यह मुसलमान है और देश में अभी जो राजनीति चल रही है, उसमें हिन्दू-मुसलमान की कहानी चुनावी राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण है। संभव है, इस साल बिहार में जो चुनाव होने हैं और इसके बाद अगले साल गुजरात समेत कई राज्यों में जो चुनाव होने हैं, उसमें तहव्वुर राणा से जुड़ी कहानी काफी पॉपुलर हो सकती है। उसे प्रचारित किया जा सकता है, ताकि चुनावी राजनीति में ध्रुवीकरण हो सके। पाँच सेर अनाज पर पलने वाले देसी भक्त जन को क्या पता है कि अमेरिका भारत के साथ क्या खेल कर रहा है और किस तरह से भारत हिन्दू-मुसलमान बँटता जा रहा है। 

एक तरफ अमेरिका तहव्वुर राणा को भारत को सौंप रहा है, लेकिन दूसरी तरफ वही अमेरिका ट्रेड वॉर के जरिए भारतीय अर्थव्यवस्था को लहूलुहान करने पर भी आमादा है। क्या भारत पर भारी टैरिफ लगाने के बाद अमेरिका ने सरकार और सरकार के लोगों को खुश करने के लिए आतंकी तहव्वुर राणा सौंप दिया है? लेकिन इस सच्चाई से पर्दा कौन उठा सकता है? तहव्वुर राणा ने भारत के खिलाफ बड़ा आतंक किया है और इसका बदला भी भारत को लेना ही चाहिए, लेकिन क्या खेल यहीं तक है?

पूर्व केंद्रीय गृह सचिव जी. के. पिल्लई ने बुधवार को कहा कि राणा की इस 26/11 के नरसंहार में एक “छोटी भूमिका” थी, लेकिन मुख्य साजिशकर्ता को अमेरिका का संरक्षण प्राप्त था। द हिंदू के साथ एक साक्षात्कार में पिल्लई ने कहा कि “अमेरिका ने ‘बुरी नीयत’ से काम किया और आतंकी योजना के बारे में जानने के बावजूद, उन्होंने राणा के स्कूल के दोस्त और मुख्य साजिशकर्ता डेविड कोलमैन हेडली को उसकी ‘भारत विरोधी गतिविधि’ जारी रखने दी।”

पिल्लई के इस बयान के मायने को समझने की जरूरत है। और यह सब इसलिए कि पिल्लई कोई नेता नहीं हैं। वे देश के गृह सचिव रह चुके हैं और उनका ट्रैक रिकॉर्ड भी शानदार रहा है। ऐसे में सवाल तो यह भी है कि जब अमेरिका को हेडली, तहव्वुर राणा और भारत पर हमले की पूरी जानकारी थी, तब उसने भारत को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी? ऐसे में सवाल यह भी है कि अमेरिका ने जो अभी राणा का प्रत्यर्पण किया है, उसके पीछे केवल राजनीतिक खेल के सिवा और क्या हो सकता है?

जी. के. पिल्लई का हालिया बयान इसलिए अहम है, क्योंकि वे मुंबई आतंकी हमले के बाद भारत के गृह सचिव बने थे और उनके समय में भारत ने हेडली को अमेरिका से लाने का प्रयास किया था। लेकिन अमेरिका ने उसे भेजने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह अमेरिका का एजेंट था और डबल क्रॉस करके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी एजेंट बन गया था। हेडली की माँ अमेरिकी थी और पिता पाकिस्तानी था। लेकिन उसने अपने पासपोर्ट पर सिर्फ माँ का नाम रखा था, जिससे कभी उस पर पाकिस्तानी होने का संदेह नहीं गया। 

उसने मुंबई पर हमले की साजिश रची और उसको अंजाम देने का बंदोबस्त किया। लेकिन अमेरिका ने उसे भारत को सौंपने से इसलिए मना कर दिया कि उसने प्ली बारगेनिंग कर ली थी, यानी अपराध स्वीकार कर लिया था और उस डील के तहत उसे जो सजा होनी थी, वह वहाँ हो गई थी। कह सकते हैं कि भारत के खिलाफ जिसने साजिश रची, वह अमेरिका के कब्जे में है और अमेरिका में ही रहेगा। लेकिन छोटी मछली तहव्वुर राणा को भारत को सौंपकर अमेरिका भी भारत की नजरों में बड़ा बन रहा है और भारत को लग रहा है कि सरकार ने बड़ा काम किया है। सच तो यही है कि भारत सरकार को भी तहव्वुर राणा में ही ज्यादा दिलचस्पी है, क्योंकि वह मुसलमान है और तहव्वुर भारतीय राजनीति के लिए ज्यादा कीमती है और खेल का हिस्सा भी।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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