आखिर क्यों बनते हैं बाघ और बाघिन नरभक्षी?

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हमें इस बात पर गौर करनी चाहिए कि आखिर कोई बाघ या बघिन आदमखोर क्यों हो जाते हैं? हम पर्यावरण, वैज्ञानिक व इंसानियत के दृष्टिकोण से सोचें तो हमारी आँखों के सामने अति क्रूरतापूर्ण ढंग से वन्य जीवों के आवास मतलब जंगलों को हम मानव प्रजाति अपनी सुविधा और स्वार्थ के लिए सड़कों, आवासीय कॉलोनियों, फैक्ट्रियों, कृषि, बगीचों, हीरे, कोयले, लोहे, अभ्रक, ताँबे आदि अयस्कों और ज्यादे से ज्यादे धन के लालच में बहुत तेजी से विनाश करते जा रहे हैं, काटते जा रहे हैं, आज केन्द्र में बैठी सत्तारूढ़ सरकार के कर्णधारों का वर्तमान समय में मध्यप्रदेश के बक्सवाहा के जंगलों का हीरे के लालच में सर्वनाश करने का उदाहरण आपके सामने है।

जंगल क्षेत्र के अतिदोहन से और उसके सिकुड़ने की वजह से मांसाहारी जीवों के अलावा अन्य शाकाहारी जीव जैसे हिरन, खरगोश, सेही आदि भी तेजी से विलुप्तिकरण के कगार पर पहुंचते जा रहे हैं, जो बाघों के आहार श्रृंखला में सर्वोपरि स्थान पर हैं, इससे बाघों को भूखों मरने को अभिशापित होना पड़ रहा होता है, जिससे वे मजबूरी में अपनी भूख के शमन के लिए सबसे आसान शिकार मानव शिशु या मानव का शिकार करने को मजबूर होते हैं, यह यथार्थ परक और वैज्ञानिक तथ्यात्मक बात है कि अगर बाघों या अन्य सभी वन्य जीवों को पर्याप्त वनक्षेत्र और आहार सुलभ रहे तो कोई भी माँसाहारी वन्य जीव अपने भोजन के लिए मानव का शिकार व उसकी हत्या नहीं करेगा।

नरभक्षी बन चुके बाघों और बघिनियों को किसी कुशल शिकारी को बुलाकर गोली मारकर हत्या कर देना इस समस्या का कतई समाधान नहीं है। इसका एकमात्र मनुष्योचित, न्यायोचित व समयोचित समाधान तो यही है कि हम वनों के अंधाधुंध विनाश को जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी रोकने की कोशिश करें, उसे पूर्णतः बन्द करें या सीमित मात्रा में आवश्यकतानुसार ही काटें।

इस देश में यह ढोंग और कुकृत्य जितनी जल्दी हो रुकना ही चाहिए कि एक तरफ हम धूम-धाम से समाचार पत्रों में इस भयंकरतम् गर्मी और लू में वृक्षारोपण करने का छद्म कृत्य करते हुए अरबों-खरबों रूपयों को बर्बाद करने का बेशर्म कृत्य करते रहें, साथ-साथ लाखों शिशु पौधों को मौत के घाट उतारकर, तमाम प्रिंट और दृश्य तथा सोशल मिडिया में अपना फोटो और विडियोज वायरल करते रहें, दूसरी तरफ लाखों-करोड़ों सालों से प्रकृति द्वारा संजोए और संरक्षित किए गए लाखों पेड़ों सहित हजारों तरह के जीव-जंतुओं यथा भृगों, तितलियों, चमगादड़ों, मधुमक्खियों, रंग-बिरंगे परिदों, हिरनों, खरहों, लोमड़ियों, सेहियों, भालुओं, बाघों और हाथियों आदि के आवासीय परिक्षेत्र को निर्दयता व क्रूरतापूर्वक विनष्ट कर दें। 

हकीकत यह है कि भूमध्य रेखा के बिल्कुल नजदीक के देशों यथा भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों को 42 से 44 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर पर्यावरण दिवस करने का यह ढोंग करना ही नहीं चाहिए, यह पूर्णतः बंद होना चाहिए। इन देशों में वृक्षारोपण तो जुलाई या अगस्त के बाद के महीनों में करनी चाहिए, जब बारिश लगातार हो रही हो, उस मौसम में वृक्षारोपण करने पर 90प्रतिशत तक शिशु पौधों को जीवित रहने की संभावना रहती है। हमें हर हाल में अपने वनों के विनाश करने के इस अमानवीय सरकार के क्रूर व अमानवीय कर्णधारों के कुकृत्य को रोकना ही होगा।

इससे वन्यजीव, शाकाहारी जीव आदि सभी सुरक्षित रहेंगे व पर्यावरण व हमारे वायुमंडल में ऑक्सीजन मतलब प्राणवायु भी संतुलित रहेगा। याद रखिए हीरों के बगैर मनुष्य सहित इस धरती के लाखों प्राणी जीवित रह सकते हैं, लेकिन ऑक्सीजन के बगैर वे पांच मिनट भी जीवित नहीं रह सकते। अभी हाल ही में आगरा में एक अस्पताल का नरभक्षी डॉक्टर द्वारा सिर्फ 5 मिनट ऑक्सीजन रोकने का मॉकड्रिल करके 22 लोगों को मौत के मुँह में धकेलने का पैशाचिक कुकृत्य करने का उदाहरण मीडिया में पिछले दिनों आ चुका है, इसलिए वर्तमान समय के सत्ता के मूर्ख सत्ताधीशों को यह बात इस देश की अरबों जनता को ठीक से समझानी ही चाहिए कि वे वनों का विनाश हर हाल में न करने को मजबूर कर दिए जाएं।

(निर्मल कुमार शर्मा गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षक हैं तथा पत्र-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन का काम करते हैं।)

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