अडानी समूह एसीसी और अंबुजा सीमेंट से जुड़े कर्ज चुकाने के लिए मांग रहा है और समय

अडानी समूह की वित्तीय स्थिति काफी खराब हो चुकी प्रतीत हो रही है क्योंकि समूह अपनी सीमेंट कंपनियों अंबुजा सीमेंट और एसीसी से जुड़े कर्ज को चुकाने के लिए कुछ और समय मांग रहा है। इकोनॉमिक टाइम्स अखबार ने सूत्रों का हवाला देते हुए बताया है कि गौतम अडानी के नेतृत्व वाली फर्म बकाया ऋण की शर्तों पर फिर से बातचीत करना चाहती है, जो कि 4 बिलियन डॉलर के हैं। अडानी समूह ने यह क़र्ज़ पिछले साल अगस्त में स्विट्ज़रलैंड के होल्सिम समूह से लिया था।

समूह ने 3 अरब डॉलर के ब्रिज लोन की अवधि बढ़ाने के लिए उधारदाताओं के साथ बातचीत शुरू कर दी है। उसे उम्मीद है कि यह कार्यकाल मौजूदा 18 महीनों से पांच साल या उससे अधिक की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक अडानी समूह एक अरब डॉलर के एक और मेजेनाइन ऋण (यह ऋण और इक्विटी वित्तपोषण का एक मिश्रण है, जो ऋणदाता को डिफ़ॉल्ट के मामले में ऋण को इक्विटी ब्याज में परिवर्तित करने का अधिकार देता है) को, जिसकी वर्तमान पुनर्भुगतान अवधि 24 महीने है, को वरिष्ठ सुरक्षा ऋण में बदलने की मांग कर रहा है, जिससे इसकी अवधि 5 साल तक बढ़ जाएगी।

मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अडानी समूह के सभी 10 शेयर मंगलवार को गिरावट में कारोबार कर रहे थे, जिनमें से चार- अडानी पावर, अडानी ट्रांसमिशन, अडानी ग्रीन और अडानी टोटल गैस- का कारोबार अपेक्षाकृत अधिक खराब रहा। अडानी समूह को बाजार में ‘सबसे खराब प्रदर्शन’ करने वाला कहा गया।

गौरतलब है कि जनवरी के अंत में अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे, जिसके बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट देखी गई। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है। इसके बाद अडानी समूह को बाजार पूंजीकरण में करीब 100 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। हालांकि अडानी समूह ने किसी भी गलत काम और धोखाधड़ी के सभी आरोपों से इनकार किया है।

90 बिलियन डॉलर से अधिक संपत्ति वाली अमेरिकी कंपनी जीक्यूजी पार्टनर्स द्वारा एक दिन में 1.9 अरब डॉलर के अडानी शेयरों की हालिया खरीद पर विश्लेषक कहते हैं कि ‘जीक्यूजी ने अडानी के निजी कोष से शेयर खरीदे, न कि बाजार से। इसलिए इस खरीददारी ने अडानी को चार कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम करने में सक्षम बनाया। यह हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए मुख्य आरोपों में से एक को देखते हुए महत्वपूर्ण है।

गौरतलब है कि हिंडनबर्ग रिसर्च का मुख्य आरोप यह है कि इसने टैक्स हेवन देशों में कंपनियों का पता लगाया, ‘जिनकी सूचीबद्ध अडानी फर्मों में बड़ी हिस्सेदारी थी और जो गौतम अडानी के भाई विनोद से संबंधित थीं। लेकिन जैसा कि इन तथ्यों का खुलासा नहीं किया गया था, वास्तव में कई सूचीबद्ध कंपनियों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 75 फीसदी की कानूनी सीमा से अधिक हो गई थी। अगर जांच में पता चलता है कि ये संस्थाएं अडानी से संबंधित हैं, तो यह अडानी समूह के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है।

इस बीच लोकसभा की सदस्यता जाने के बाद राहुल गांधी के निशाने पर फिर कारोबारी गौतम अडानी आ गए हैं। अब उन्होंने आरोप लगाया है कि शेल कंपनियों के जरिए हजारों करोड़ रुपये का विदेशी पैसा अडानी ग्रुप में इन्वेस्ट किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि शेल कंपनियों के जरिए हजारों करोड़ रुपये का विदेशी पैसा अडानी ग्रुप में इन्वेस्ट किया गया, इसमें से कुछ भारत के डिफेंस सेक्टर में भी एक्टिव हैं।

राहुल ने कहा कि अडानी की शेल कंपनियों में अचानक 20 हजार करोड़ रुपये आए। ये पैसा कहां से आया? किसका था? इनमें से कुछ डिफेंस कंपनियां भी हैं। रक्षा मंत्रालय सवाल क्यों नहीं पूछ रहा है? राहुल ने इस पूरे मामले में चीन के एक नागरिक की भूमिका पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, ‘कोई ये क्यों नहीं पूछ रहा है कि ये चीनी नागरिक कौन है? चीन के इसी नागरिक का जिक्र पहले हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में भी हुआ था। इसमें दावा था कि ये ताइवान में अडानी ग्रुप में रिप्रेजेंटेटिव है।

दरअसल फाइनेंशियल टाइम्स ने हाल ही में भारत के एफडीआई डेटा का एनालिसिस कर एक रिपोर्ट छापी थी। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि हाल के सालों में अडानी ग्रुप में जितना एफडीआई आया है, उसका लगभग आधा हिस्सा उनके परिवार से जुड़ी ऑफशोर कंपनियों से मिला है। रिपोर्ट में दावा किया गया है, कि अडानी और उनके परिवार से जुड़ी ऑफशोर कंपनियों ने 2017 से 2022 के बीच अडानी ग्रुप में कम से कम 2.7 अरब डॉलर का इन्वेस्ट किया है।

अडानी ग्रुप ने 2017 में डिफेंस और एयरोस्पेस के बिजनेस में एंट्री की। हालांकि, इंडिया टुडे ग्रुप ने जब कॉर्पोरेट फाइलिंग की समीक्षा की तो इससे पता चला कि अडानी ग्रुप से जुड़ी कम से कम 11 रजिस्टर्ड कंपनियां सीधे तौर पर डिफेंस सेक्टर में काम कर रहीं हैं। ग्रुप से जुड़ी अडानी डिफेंस सिस्टम एंड टेक्नोलॉजीस लिमिटेड ने हाल के कुछ सालों में कई अहम अधिग्रहण किए हैं। इनमें लड़ाकू विमान, अनमैन्ड एरियल सिस्टम, हेलिकॉप्टर, सबमरीन, एयर डिफेंस गन, मिसाइल और छोटे हथियार शामिल हैं।

इसके अलावा अडानी ग्रुप से जुड़ी 10 और दूसरी कंपनियां भी हैं जो डिफेंस से जुड़े अलग-अलग काम कर रहीं हैं। ऑर्डिफेंस सिस्टम लिमिटेड नेवी, आर्मी, एयर के साथ-साथ स्पेस डिफेंस सिस्टम पर भी काम करती है। अडानी नेवल डिफेंस सिस्टम एंड टेक्नोलॉजीस लिमिटेड नौसेना के लिए वॉरशिप 9 सिस्टम, डिफेंस सिस्टम और गोला-बारूद बनाने का काम करती है।

अडानी ग्रुप की अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीस प्राइवेट लिमिटेड में 26.26 फीसदी हिस्सेदारी है। ये कंपनी स्पेस टेक्नोलॉजी और सिस्टम पर काम करती है। अल्फा डिजाइन में एलारा इंडिया अपॉर्च्युनिटीज फंड की 0.53 फीसदी हिस्सेदारी है। अडानी एंटरप्राइजेज के निवेशकों में से एक एलारा इंडिया भी है।

फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट और पब्लिक डोमेन में मौजूद फाइनेंशियल डेटा के अनुसार 2017 से 2022 के बीच अडानी ग्रुप से जुड़ी ऑफशोर कंपनियों ने अडानी ग्रुप में 2.6 अरब डॉलर का एफडीआई किया। ये 20 हजार करोड़ रुपये के आसपास बैठता है। इस पैसे का असली मालिक कौन है? राहुल गांधी यही सवाल कर रहे हैं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार व कानूनी मामलों के जानकार हैं)

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