हाईकोर्ट का एक असंवैधानिक आदेश और सुलग उठा मणिपुर !

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क्या आप विश्वास करेंगे कि मणिपुर हाईकोर्ट के एक एकल न्यायाधीश द्वारा अनुसूचित जनजाति के संबंध में एक संविधान विरोधी आदेश देने के कारण पूरा मणिपुर जल उठा और हजारों घर तहस-नहस कर दिए गए। इसमें कम से कम 54 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। यह हकीकत है और 8 मई को सुप्रीम कोर्ट में जब इस मामले की सुनवाई हुई तो यह सत्य उजागर हुआ कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने वर्ष 2000 में ही महाराष्ट्र के मामले में इसी तरह के विवाद का निस्तारण कर दिया था और कहा था कि अनुसूचित जनजाति की सूची में नाम जोड़ने या घटाने का अधिकार किसी अदालत को नहीं है बल्कि यह राष्ट्रपति में निहित है।

एक ओर मणिपुर और केंद्र सरकार ने दावा किया है कि राज्य सामान्य स्थिति में लौट रहा है वहीं चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को इस तथ्य पर आश्चर्य जताया कि 23 साल पुराने संविधान पीठ के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी अदालत या राज्य के पास अनुसूचित जनजाति की सूची में जोड़ने, घटाने या संशोधित करने की शक्ति नहीं है। उनका सवाल था कि क्या मणिपुर उच्च न्यायालय को अनुसूचित जनजातियों की सूची “दिखाई” नहीं गई थी।

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से कहा कि एक उच्च न्यायालय के पास अनुसूचित जनजाति सूची में बदलाव का निर्देश देने की शक्ति नहीं है। यह एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति को नामित करने के लिए राष्ट्रपति की शक्ति है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाए। सुनवाई के दौरान, पीठ ने मैतेई समुदाय के लिए एसटी दर्जे के संबंध में हाईकोर्ट के निर्देश के बारे में कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी कीं। हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े को संबोधित करते हुए पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय हैं, जो मानते हैं कि हाईकोर्ट किसी समुदाय को एसटी का दर्जा देने का निर्देश नहीं दे सकता है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ता उन निर्णयों को हाईकोर्ट के संज्ञान में लाने के लिए बाध्य था। मुख्य न्यायाधीश ने हेगड़े से कहा, “आपने हाईकोर्ट को कभी नहीं बताया कि यह शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं है, यह राष्ट्रपति की शक्ति है।”

27 मार्च को मणिपुर उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश खंडपीठ के बाद के दिनों में हिंसक झड़पें और मौतें हुईं, निर्देश दिया गया कि राज्य सरकार “अनुसूचित जनजाति सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं के मामले पर शीघ्रता से, अधिमानतः इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर इस पर विचार करेगी।

महाराष्ट्र बनाम मिलिंद मामले में नवंबर 2000 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने व्यवस्था दिया था कि संविधान का अनुच्छेद 342(1) स्पष्ट है। शक्ति पूरी तरह से राष्ट्रपति की है। अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित, संशोधित या बदलने के लिए यह राज्य सरकारों या अदालतों या न्यायाधिकरणों या किसी अन्य प्राधिकरण के लिए खुला नहीं है।

संविधान पीठ ने कहा था कि अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत अनुसूचित जनजातियों को निर्दिष्ट करने वाली अधिसूचना को केवल संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा संशोधित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, किसी भी जनजाति या जनजातीय समुदाय या किसी जनजाति के हिस्से या समूह को अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत जारी अनुसूचित जनजातियों की सूची से केवल कानून द्वारा और किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा शामिल या बाहर नहीं किया जा सकता है।

संविधान पीठ ने कहा था कि अनुसूचित जनजाति के आदेश को “जैसा है वैसा ही पढ़ा जाना चाहिए”। यह कहने की भी अनुमति नहीं है कि एक जनजाति, उप-जनजाति, किसी जनजाति या आदिवासी समुदाय का हिस्सा या समूह अनुसूचित जनजाति के आदेश में उल्लिखित पर्यायवाची है, यदि वे विशेष रूप से इसमें उल्लिखित नहीं हैं।

मिलिंद के फैसले में स्थापित कानून को जुलाई 2017 में जस्टिस चंद्रचूड़ (जैसा कि वह तब थे) द्वारा सीएमडी, एफसीआई बनाम जगदीश बलराम बहिरा में सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की बेंच के लिए राष्ट्रपति के आदेश पर ध्यान देने के लिए संदर्भित किया गया था। अनुसूचित जनजातियों के संबंध में अनुच्छेद 342 के तहत हमेशा “अंतिम” था।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने सोमवार को केंद्र सरकार को मणिपुर में हुई ‌हिंसा के पीड़ितों के लिए बनाए गए राहत शिविरों में भोजन और दवाओं की उचित व्यवस्था सुनिश्‍चित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि विस्थापितों के पुनर्वास और पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाए जाएं। कोर्ट के समक्ष केंद्र सरकार ने बयान दर्ज किया पिछले दो दिनों में मणिपुर राज्य में कोई हिंसा नहीं हुई है और राज्य में स्थिति सामान्य हो रही है।

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि मणिपुर में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की 52 कंपनियां और सेना/असम राइफल्स के 105 कॉलम तैनात किए गए हैं और अशांत क्षेत्रों में फ्लैग मार्च किया गया है। एसजी ने बताया कि सरकार ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया है। साथ ही एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को आपातकालीन स्थिति के बीच मुख्य सचिव के रूप में कार्य करने के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से राज्य में भेजा गया है। शांति बैठक आयोजित की गई है और लगातार चौकसी बरती जा रही है।

एसजी ने कहा कि इन उपायों के परिणामस्वरूप, पिछले दो दिनों में राज्य में कोई हिंसा नहीं हुई है और स्थिति सामान्य हो रही है। कर्फ्यू में आज चार घंटे की अवधि के लिए ढील दी गई थी और कल कुछ घंटों के लिए ढील दी गई थी। एसजी ने पीठ से मामले को एक सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा, “जमीन पर, सेना, अर्धसैनिक बल और अन्य सरकारी अधिकारी काम कर रहे हैं। सब कुछ शांत हो जाने दें।”

पीठ दो याचिकाओं पर विचार कर रही थी जिसमें एक, मणिपुर ट्राइबल फोरम दिल्ली की ओर से दायर की गई, जिसमें पीड़ितों के लिए राहत और राहत की एसआईटी जांच की मांग की गई थी; दूसरी याचिका मणिपुर विधानसभा की हिल एरिया कमेटी के चेयरमैन डिंगांगलुंग गंगमेई ने दायर की है, जिसमें उन्होंने मणिपुर हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती दी है, जिसमें केंद्र सरकार को अनुसूचित जनजाति सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने की सिफारिश को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया गया था।

गौरतलब है कि मैतेई समुदाय को एसटी दर्जा देने के मुद्दे पर पिछले हफ्ते राज्य में दंगे भड़क गए थे। मैतेई के एसटी दर्जे से संबंधित हाईकोर्ट के आदेश के संबंध में एसजी ने कहा कि राज्य सरकार सक्षम फोरम के समक्ष उचित कार्रवाई कर रही है।

पीठ ने एसजी से राहत शिविरों की संख्या और उनमें रखे गए लोगों की संख्या के बारे में पूछा। पीठ ने राहत शिविरों में भोजन और दवाओं की व्यवस्था के बारे में भी पूछा। पीठ का दूसरा सवाल उन लोगों के बारे में था जो हिंसा के कारण विस्थापित हुए हैं और उनकी सुचारू वापसी सुनिश्चित करने के लिए किए गए उपायों के बारे में पूछा। इसके अलावा पीठ ने कहा कि पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए कुछ कदम उठाए जाने चाहिए।

एसजी ने कहा कि धर्म की परवाह किए बिना हर व्यक्ति की संपत्ति की रक्षा की जाएगी। पीठ ने निर्देश दिया कि वह नियुक्ति की अगली तिथि 17 मई तक इन पहलुओं पर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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