नई दिल्ली। झारखंड से एक और शख्स की भूख से मौत की खबर आयी है। दलित समुदाय से तालुक रखने वाले झिंगुर भुइयां पिछले 10 दिनों से भूखे थे। घटना चतरा जिले के कान्हा छट्टी ब्लाक की है। उनकी पत्नी का कहना है कि झिंगुर ने पिछले दस दिनों से भोजन नहीं लिया है। दोनों पति-पत्नी के पास राशन कार्ड नहीं था। और इस बात का भी आरोप है कि राशन डीलर ने अनाज सप्लाई करने से मना कर दिया था।
हालांकि झारखंड के सप्लाई मंत्री ने इस आरोप को खारिज किया है कि भूख पीड़ित शख्स को राशन नहीं दिया गया। उनका कहना है कि यह महज एक अफवाह है और अगर ऐसा होता तो उसके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज होती। उन्होंने रांची में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि ज्यादातर भूख से मौतों की बात महज अफवाह होती है। और सरकार उन सभी मामलों की जांच कराएगी। गौरतलब है कि राइट टू फूड एक्टिविस्ट ने झारखंड में इस तरह की 19 मौतों का आरोप लगाया था। जिसके बाद सप्लाई मंत्री सरजू राय ने कहा था कि “अगर कोई भूख से हुई मौत की अफवाह उड़ाने के लिए आमादा है तो यह सरकार का कर्तव्य बन जाता है कि उन मामलों की वह जांच कराए और अगर दावे झूठे पाए जाते हैं तो आरोपों का खंडन करे।”
फूड राइट एक्टिविस्टों का कहना है कि दिसंबर 2016 में भूख से मौत की पहली घटना सामने आयी थी उसके बाद से तकरीबन 19 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि सरकार ने उनके सभी दावों का खंडन कर दिया।
उसके बाद सरजू राय ने फूड राइट एक्टिविस्टों पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि “एक्टिविस्टों के साथ समस्या यह है कि उन्होंने एक रेखा खींच रखी है और वे उससे बाहर नहीं आना चाहते हैं। यहां तक कि किसी संदिग्ध मौत के बारे में अगर सच्चाई उनके साथ साझा की जाती है तो वो उसकी प्रशंसा नहीं करते हैं। ये ऐसे लोग हैं जो हमेशा प्रोपोगंडा फैलाते हैं।”
यह समस्या सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं है। उसका पड़ोसी सूबा ओडिशा भी इससे अछूता नहीं है। इसके पहले 10 जुलाई 2019 को यहां के नौपाड़ा जिले में एक बच्चे की भूख से मौत हुई थी। खबरों के मुताबिक 17 वर्षीय विकलांग युवक गौतम बहेरा की 6 जुलाई , 2019 को भूख से मौत हो गयी। उसको पांच दिनों तक कोई भोजन नहीं मिला था। इस मामले में एक फैक्ट फाइंडिंग टीम मौके पर गयी थी और उसने पूरे मामले की जांच की थी। उसके मुताबिक “गौतम अपनी बड़ी बहन देबंती बेहरा (22) के साथ रह रही थी। वे पिछड़े समुदाय से आते हैं। 4 साल की उम्र में ही गौतम की मां की मौत हो गयी थी। उनके पिता गजराज बेहरा पेशे से दिहाड़ी मजदूर थे और गजराज बेहरा भाई और बहन को तीन साल पहले ही छोड़ दिए थे। अब वह अपनी दूसरी पत्नी और बच्चों के साथ गांव के एक अलग लेन में एक दूसरे घर में रहते हैं।”
“संपत्ति के नाम पर दोनों भाई और बहन के पास एक जोड़ी कपड़ा, तीन बर्तन और पानी की एक बकेट और छाता है। खस्ताहाल घर में सामने दरवाजा तक नहीं है। और वह बिल्कुल खुला हुआ है।”