ASI संरक्षित इमारतें हो रही हैं लापता, स्मारकों के संरक्षण पर उदासीन है संस्कृति मंत्रालय

नई दिल्ली। ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक इमारतें किसी भी देश और समाज के लिए बेशकीमती होती हैं। ऐसी इमारतों को धरोहर के रूप मे संरक्षित किया जाता है। लेकिन भारत में ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के भवन गायब हो रहे हैं। ऐसे स्मारकों पर धार्मिक संगठन और भूमाफिया कब्जा करके उनके स्वरूप को बदल दे रहे हैं। वर्तमान में देश में 3,695 केंद्रीय संरक्षित स्मारक हैं। पिछले एक दशक में एएसआई द्वारा संरक्षित 1655 स्मारकों में से कम से कम 92 संरक्षित स्मारकों के गायब होने की खबर है। यानि या तो उनके अस्तित्व को मिटा दिया गया या उनके स्वरूप को बदल दिया गया।

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) द्वारा 2013 में संयुक्त रूप से किए गए एक निरीक्षण से पता चलता है कि केंद्रीय संरक्षित स्मारकों पर अवैध अतिक्रमण, पूजा एवं नमाज के लिए कब्जा या भूमाफियाओं द्वारा जमीन का गलत उपयोग करने से स्मारक अस्तित्वविहीन हो रहे हैं।   

“महरौली (कुतुब मीनार के पास) में अतिक्रमित स्मारकों में कई मस्जिदें, मदरसे और मंदिर संचालित हो रहे हैं।” लेखिका और विरासत संरक्षणवादी स्वप्ना लिडल का कहना है कि अगर स्मारकों में पूजा की अनुमति है तो एएसआई के लिए निर्माण और स्मारकों की आवश्यक संरचना में बदलाव को नियंत्रित करना असंभव है। 

पिछले साल कश्मीर के अनंतनाग में मार्तंड सूर्य मंदिर में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा पूजा आयोजित किए जाने के बाद एएसआई ने आपत्ति जताई थी।

देश के कई हिस्सों से संरक्षित स्मारकों के गायब होने पर संसदीय समिति ने गहरी चिंता और निराशा व्यक्त की है। परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर संसदीय स्थायी समिति ने अप्राप्य स्मारकों पर पैनल की सिफारिशों के जवाब में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने भी गंभीरता नहीं दिखाई।

पिछले हफ्ते संसद में पेश की गई अपनी 363वीं रिपोर्ट में,  वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सदस्य वी. विजयसाई रेड्डी की अध्यक्षता वाली समिति ने यह भी सिफारिश की कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) – जो संस्कृति मंत्रालय के तहत काम करता है वह धार्मिक महत्व के ऐतिहासिक केंद्रीय संरक्षित स्मारकों (सीपीएम) पर पूजा/ धार्मिक गतिविधियां… प्रदान करने के लिए “अनुमति देने की संभावना तलाशें।”

2017 में तत्कालीन संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने संसद को बताया था कि एएसआई ने पाया है कि केवल 24 स्मारक नहीं मिल रहे हैं।

संसदीय समिति ने पिछले साल अपनी 324वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि “एएसआई तुरंत शेष सीपीएम का सर्वेक्षण करे, जिनका सीएजी ऑडिट सर्वेक्षण में निरीक्षण नहीं किया गया था और यह पता लगाया जाए कि क्या 24 स्मारकों के अलावा देश में कोई अन्य गायब स्मारक हैं।”

324वीं रिपोर्ट “भारत में अप्राप्य स्मारकों और स्मारकों की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे” पर थी। नवीनतम 363वीं रिपोर्ट-324वीं रिपोर्ट पर संस्कृति मंत्रालय द्वारा की गई कार्रवाई पर है।

इसमें कहा गया है कि “समिति के पूछने पर, मंत्रालय ने सूचित किया है कि शेष स्मारकों का कोई और अध्ययन नहीं किया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कितने और स्मारक गायब हैं…। समिति यह जानकर परेशान है कि अध्ययन किए गए स्मारकों के नमूनों में से कम से कम 24 स्मारक अप्राप्य हैं, मूल अध्ययन के लगभग एक दशक बाद भी, शेष स्मारकों के लिए कोई और सर्वेक्षण नहीं किया गया। मंत्रालय ने इस टिप्पणी पर समिति को कोई जवाब नहीं दिया है।

संसदीय समिति ने संस्कृति मंत्रालय के इस व्यवहार पर पत्र लिखकर  “अपने दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन” करने का आग्रह किया है, और आगे कहा है कि “समिति महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने वाली समिति की सिफारिशों के जवाब में मंत्रालय की ओर से गंभीरता की इस स्पष्ट कमी पर अपनी गहरी चिंता और निराशा व्यक्त करती है। समिति के विचारों की अवहेलना करना देश की सांस्कृतिक विरासत के विकास और संरक्षण के प्रति मंत्रालय के विश्वास, विश्वसनीयता और गंभीरता को कम करता है।”

2014 में एएसआई के दिल्ली सर्कल ने 13 और स्मारकों की पहचान की जो उनके बताए गए स्थान पर मौजूद नहीं थे। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने जनवरी में “राष्ट्रीय महत्व के स्मारक: युक्तिकरण की तत्काल आवश्यकता” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसने एएसआई के तहत स्मारकों की संख्या में कमी की सिफारिश की थी।

संभावित अधिसूचना रद्द करने या राज्य पुरातत्व विभागों को हस्तांतरित करने के लिए नामित स्मारकों में औपनिवेशिक अधिकारियों की कब्रें, और मुगल काल के कोस मीनार राजमार्ग चिह्नक शामिल थे।

विरासत विशेषज्ञ सोहेल हाशमी ने कहा कि  “कौन सा स्मारक महत्वपूर्ण है या महत्वहीन यह एक ब्रिटिश अवधारणा है जो हम पर थोपी गई है।”

उन्होंने अंग्रेजों द्वारा अपनी ऐतिहासिक संरचनाओं के प्रति दिखाई गई देखभाल की तुलना भारत में स्मारकों के प्रति की गई उपेक्षा से की।

उदाहरण के लिए, ट्राफलगर स्क्वायर (लंदन में) के पास, चार ईंटें प्रदर्शित हैं जिन्हें रोमन-युग की सड़क के अवशेष के रूप में वर्णित किया गया है जो सीवर निर्माण के दौरान उजागर हो गई थी। जब नई दिल्ली बनी (20वीं सदी की शुरुआत में) तो यहां सेंट्रल विस्टा के लिए करीब 300 कुएं और बावड़ियां तोड़ दी गईं।”  

उन्होंने कहा कि “125 वर्ष से अधिक पुरानी किसी भी संरचना को संरक्षित किया जाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है या नहीं इसका निर्णय केवल विशेषज्ञ ही कर सकते हैं, नौकरशाह नहीं।”

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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